पर्यटन में असीम संभावनाएं

Afeias
04 Dec 2018
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Date:04-12-18

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किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का बहुत महत्व होता है। यह एक ऐसा उद्योग है, जो देश को राजस्व देने के साथ-साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार के अनेक अवसर भी उत्पन्न करता है। इसके माध्यम से देश की धरोहर और पर्यावरण को सुरक्षित रखने में भी मदद मिलती है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन उद्योग का 9.6 प्रतिशत योगदान है। इसका 88 प्रतिशत घरेलू पर्यटन से प्राप्त होता है।

देश के कुल रोजगार के अवसरों में से 9.3 प्रतिशत अवसर, पर्यटन के माध्यम से आते हैं। ऐसा अनुमान है कि 2028 तक इस उद्योग के माध्यम से वर्तमान में उत्पन्न होने वाले 42.9 करोड़ रोजगार के अवसरों की तुलना में 52.3 करोड़ रोजगार उत्पन्न होंगे। पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत कई छोटे-छोटे कदम उठा रहा है। परन्तु इससे ज्यादा प्रयास करने की आवश्यकता है।

  • इस संदर्भ से पहला प्रयास उड्डयन क्षेत्र का है। संपूर्ण विश्व के संदर्भ में देखें, तो विमानन क्षेत्र में भारत तेजी से अपनी पैठ बढ़ा रहा है। भारत के घरेलू यात्रियों की संख्या ही लगभग 10 करोड़ है। यहाँ आने वाले विदेशी यात्रियों की संख्या लगभग 90 लाख के निम्न स्तर पर है। भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय यात्रियों व पर्यटकों की संख्या को बढ़ाने के लिए अनेक अवसर हैं। उनका यथासंभव उपयोग किया जाना चाहिए।

भारत की भौगोलिक स्थिति ऐसी है, जिसमें आसानी से उसे वैश्विक वायु पारगमन केन्द्र के रूप में विकसित किया जा सकता है। इस मामले में दुबई का उदाहरण लिया जा सकता है। विश्वस्तरीय हवाई अड्डे का निर्माण करने के साथ-साथ दुबई ने विदेशी यात्रियों के अनुकूल अनेक व्यवस्थाएं कर ली हैं, और अब पारगमन के क्षेत्र में दुबई एक अत्यंत व्यस्त हवाई अड्डा बन गया है। भारत भी अपनी स्थिति का लाभ उठाते हुए यूरोप और सुदूर-पर्व के बीच की उड़ानों के लिए ईंधन की पूर्ति जैसी सुविधाओं के साथ स्टॉप ओवर का काम कर सकता है। इस प्रकार की उड़ानों से आने वाले यात्रियों में अनेक पर्यटक भी बन जाते हैं।

‘उड़ान’ योजना के चलते भारत ने घरेलू क्षेत्रीय वायु संपर्क को बहुत ऊँचा उठा लिया है। इस योजना को आगे बढ़ाते हुए पर्यटन आधारित स्थानों को आपस में जोड़ने का लक्ष्य होना चाहिए। इसके लिए बुनियादी ढांचों की कमी को पूरा करना सबसे बड़ी चुनौती है।

  • ई-वीज़ा को 160 देशों तक विस्तृत कर दिया गया है। परन्तु हाल ही में इसके शुल्क में की गई 60 प्रतिशत बढ़ोत्तरी से व्यावसायिक व मेडिकल पर्यटकों की संख्या प्रभावित होने की आशंका हो गई है। खास बात यह है कि इस प्रकार के बढ़े हुए शुल्क से एकत्रित राशि, पर्यटकों के बढ़ने से होने वाली आमदनी की तुलना में बहुत ही कम है। पूरे विश्व में पर्यटन प्रतिस्पर्धा सम्पन्न उद्योग है। सिंगापुर, बाली और थाईलैण्ड जैसे भारत के पड़ोसी देशों में पर्यटकों की संख्या 3 करोड़ के आसपास होती है। जबकि भारत में यह मात्र 90 लाख है। ब्रिटेन, फ्रांस, स्विट्जरलैण्ड एवं अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी पर्यटन को प्रमुख उद्योग की तरह ही विकसित किया गया है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा में खरा उतरने के लिए भारत को वस्तु एवं सेवा कर के अंतर्गत 28 प्रतिशत स्लैब में आने वाले लक्जरी होटलों पर पुनर्विचार करना चाहिए। दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में यह 10 प्रतिशत से भी कम है।
  • अनेक भारतीय धरोहरों को गोद लेने की प्रथा का प्रारंभ करके पर्यटन मंत्रालय ने अच्छी पहल की है। “पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप“ की इस मुहिम से कुछ बेहतर होने की संभावना है।
  • भारत में लगभग 50 विदेशी पर्यटक बोर्ड हैं। परन्तु इनके समेकित विकास के लिए देश का कोई केन्द्रीय विदेशी पर्यटक बोर्ड नहीं है। यही कारण है कि अनेक विभागों और मंत्रालयों के बीच उलझा हुआ पर्यटन क्षेत्र बिखरा-बिखरा सा है।

इन सभी मुद्दों पर यथोचित ध्यान देते हुए भारत के पर्यटन को इस प्रकार विकसित किया जाना चाहिए कि वह विश्व के प्रत्येक पर्यटन की सूची में शामिल हो सके।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित दीप कालरा के लेख पर आधारित। 1 नवम्बर, 2018