नागरिक-जागरूकता जरूरी है।
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हमारे देश में तीन प्रकार के राजनैतिक दल हैं- पैतृक, समूह या मंडल निर्मित और व्यक्तिगत। इन तीनों ही प्रकार के दलों की तह में जाकर देखें तो पता लगता है कि इन तीनों ही वर्गों को यह कहीं से नहीं मालूम कि ये प्रजातंत्र के मूल यंत्र हैं। अर्थात् ये सभी दल कहीं न कहीं जाकर अप्रजातांत्रिक हो जाते हैं। प्रजातंत्र के यंत्रों का अप्रजातांत्रिक होना बेहद खतरनाक है।वे राजनैतिक दल ही हैं, जो सरकार बनाते हैं, संसद चलाते हैं और देश का शासन भी संभालते हैं। अतः राजनैतिक दलों की कार्यप्रणाली में भी प्रजातांत्रिक वातावरण, वित्तीय पारदर्शिता एवं जावाबदेही होनी चाहिए। अगर किसी राजनैतिक दल की कार्यप्रणाली में ही प्रजातांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा नहीं की जा रही हो, तो उससे देश को चलाने में प्रजातांत्रिक सिद्धांतों के प्रति आदरभाव रखने की क्या अपेक्षा की जाए?राजनैतिक दल चाहे किसी भी प्रकार के हों, अंदरूनी तौर पर उनमें तानाशाही और बाहरी रूप से प्रजातांत्रिक चोले का दिखावा नहीं चल सकता। केवल राजनैतिक उपदशों और राजनीति विज्ञान पढ़ने से भी उनमें लोकतांत्रिक दृष्टिकोण नहीं आ सकता। प्रजातंत्र को जीवन तभी मिल सकता है, जब राजनैतिक दलों पर उसकी प्रजा का दबाव हो। यह सब एक दूसरे से मिला जुला क्रम है।प्रजातंत्र का जीवन राजनैतिक दलों की कार्यप्रणाली के प्रजातांत्रिक होने पर निर्भर करता है। यह तभी होगा, जब नागरिक इसकी मांग करें या राजनैतिक दल ऐसा तभी करेंगे, जब नागरिकों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता होगी। और जागरूकता तभी आएगी, जब हम अपने नागरिकों को स्कूली एवं महाविद्यालयीन स्तर पर जागरूक नागरिक बनने की शिक्षा देंगे।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित जगदीप एस. चोकर के लेख पर आधारित