ये भी नागरिक हैं

Afeias
30 Apr 2019
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Date:30-04-19

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भारत के लगभग हर शहर और कस्बे में झुग्गियां पाई जाती हैं। अभी तक सरकारी एजेंसियां, मीडिया और यहां तक कि न्यायालय भी इन झुग्गियों को अतिक्रमण ही मानते रहे हैं। सामान्य रूप से शहरी झुग्गी और उनमें रहने वालों को शहर की सुंदरता पर एक धब्बा ही माना जाता रहा है। परन्तु 18 मार्च को आए दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले में झुग्गीवासियों को आम नागरिकों के समान दर्जा रखने वाला बताया गया है। न्यायालय ने यह भी कहा है कि अधिकारी इन्हें तभी हटा सकते हैं, जब यह सिद्ध हो जाए कि भूमि पर गैरकानूनी तरीके से अतिक्रमण किया गया है। साथ ही किसी पुनर्वास योजना के बिना अघोषित रूप से इन्हें हटाया नहीं जा सकता।

सामाजिक और आर्थिक न्याय की बात करने वाली राजनैतिक पार्टियों ने भी झुग्गीवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। न्यायालयों में भी समय-समय पर इससे जुड़े मामले आए, परन्तु कोई भी निर्णय इनके अधिकारों की रक्षा के लिए पर्याप्त सिद्ध नहीं हुआ। ओल्गा तेली बनाम नगर निगम, मुंबई के मामले में न्यायालय ने जीविका के अधिकार का जीवन के अधिकार को ही भाग बताया। परन्तु झुग्गीवासियों को राहत देने के लिए कोई विशेष दिशा-निर्देश नहीं दिए। इसी प्रकार सुदाना सिंह बनाम दिल्ली सरकार मामले में न्यायालय ने झुग्गियों को हटाने से पूर्व प्रक्रियाओं और सुरक्षा साधनों की बहाली पर निर्णय दिया, लेकिन इसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया कि केन्द्रीय एजेंसियों को भी समान प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए या नहीं।

हाल ही में आए न्यायालय के निर्णय से दो बातें सिद्ध होती हैं –

(1) झुग्गियों को खाली किए जाने का गैरकानूनी दबाव झेल रहे झुग्गीवासियों के भी समान नागरिक अधिकार हैं। इस निर्णय से यह भी सिद्ध हाता है कि ये लोग अतिक्रमणकारी नहीं बल्कि देश के नागरिक हैं। इनका अधिकार है कि भूमि से जुड़े कानून के अनुरूप इनका पुनर्वास किया जाए।

(2) इस मामले में अंतरराष्ट्रीय कानून का भी हवाला दिया गया। इस निर्णय में प्राकृतिक न्याय और उन संवैधानिक प्रावधानों पर चर्चा की गई, जो किसी सरकारी एजेंसी को मनमाने और गैरकानूनी रूप से भूमि खाली कराने से रोकते हैं।

दिल्ली की एक-तिहाई जनता झुग्गियों में रहती है। न्यायालय ने आवास को इनका अधिकार बताते हुए कहा कि बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन, स्वच्छ जल, सीवरेज और परिवहन सुविधाएं इनका भी अधिकार है।

हमारा संविधान सभी नागरिकों को समान मानता है। वह अमीर-गरीब में भेद नहीं करता। अतः झुग्गी में रहने वाले लोग दूसरे दर्जे के नहीं हैं। वे भी हमारे शहरों के आर्थिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग हैं। वे शहर को साफ-सुथरा और स्वच्छ रखने में अपना योगदान देते हैं। इनको आवासीय सुविधा देना न केवल नैतिक बल्कि कानूनी कर्तव्य है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित एकलव्य वासुदेव के लेख पर आधारित। 29 मार्च, 2019

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