नागा शांति समझौते की कठिन राह

Afeias
28 Aug 2020
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Date:28-08-20

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नागालैंड में उग्रवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। इसके चलते 2015 में केंद्र सरकार और नागा समूहों के बीच ऐतिहासिक नागा फ्रेमवर्क समझौता किया गया था। केंद्र सरकार ने यह समझौता नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैण्ड के नेता इसाक मुइवा के साथ किया था। इस समझौते में अन्य विद्रोही गुटों का प्रतिनिधित्व भी था। परंतु यह समझौता सफल नहीं रहा । 23 वर्ष से चल रही इस शांति प्रक्रिया का हल ढूंढने के लिए 2019 में केंद्र सरकार ने वार्ताकार के रूप में आर.एन. रवि को नागालैंड का राज्यपाल नियुक्त किया था। अब इसाक मुइवा की पार्टी वार्ताकार की किसी टिप्पणी से असंतुष्ट होकर उन्हें हटाने की मांग कर रही है।

फ्रेमवर्क समझौता क्या है ?

3 अगस्त 2015 को केंद्र सरकार ने इसाक मुइवा की पार्टी से शांति समझौता किया। परंतु दोनों पक्षों ने इसकी सामग्री के बारे में गोपनीयता बनाए रखी। 2017 में नागा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप जैसे सात विद्रोही समूहों को शांति समझौते में शामिल किए जाने से कुछ नागा समूहों को निराशा हुई। इस समझौते ने शांति प्रक्रिया को समावेशी बना दिया। परंतु इसने नागाओं के अंदर इस बात का संदेह पैदा कर दिया कि केंद्र सरकार , नागालैण्ड के आदिवासी क्षेत्र और भूराजनीतिक क्षेत्र के आधार पर उनमें विभाजन करना चाहती है। प्रथम शांति समझौते की भी विफलता यही थी। 1975 के शिलांग समझौते की भी विफलता यही थी। 1975 के शिलांग समझौते को नागाओं ने खारिज कर दिया था। इसके चलते ही 1980 में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल का जन्म हुआ था। 1988 में यह इसाक मुइवा और रूपलांग समूहों में विभक्त हो गया। इन दोनों समूहों में अक्सर टकराव होते रहते हैं।

‘समझौते’ पर विवाद क्यों हुआ ?

कुछ दिनों पूर्व , इसाक मुइवा दल ने फ्रेमवर्क समझौते की सामग्री जारी की। संगठन का आरोप है कि श्री रवि ने भारत और नागा मातृभूमि के बीच ‘साझा संप्रभुता’ का हवाला देते हुए , मूल लाइन से ‘नए’ शब्द को हटा दिया , और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के एक स्थायी समावेशी नए संबंध का प्रस्ताव दिया है। इसाक मुइवा की पार्टी ने दावा किया है कि ‘नया’ , शब्द राजनीतिक रूप से संवेदनशील है , जिसने दो संस्थाओं या समूहों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के अर्थ को परिभाषित किया , और दृढता से भारत के संविधान के दायरे से बाहर समझौते का संकेत दिया था। समूह ने दावा किया है कि राज्यपाल रवि ने गोपनीयता बनाए रखने का अनुचित लाभ लेते हुए , समझौते की सामग्री में हेरफेर करना शुरू कर दिया है।

वर्तमान विवाद

जून 2020 में नेशनल सोशलिस्ट (आई-एम) ने रवि के उस पत्र पर नाराजगी व्यक्त की है , जिसमे उन्होंने समूह को ‘समानांतर सरकार चलाने वाला सशस्त्र गिरोह’ करार दिया है। समूह ने रवि को हटाने की मांग की है। परंतु सात प्रतिद्वंद्वी समूहों का दल उन्हें बनाए रखना चाहता है।

14 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में आई एम समूह के महासचिव ने जोर देकर कहा कि नागाओ का भारत में कभी विलय नहीं होगा। नागालैण्ड से सटे राज्य एन एस सी एन (आई एम) का मुख्यालय है , संप्रभुता के मुद्दे पर आशंकित हैं। इसका कारण है कि आई एम समूह का ग्रेटर नगालिम का विचार ,नागालैंड और उसके बाहर के सभी नागा-आबादी वाले क्षेत्रों को समाहित करता है। म्यांमार में 50 से अधिक नागा जनजातियों वाले क्षेत्र के अलावा ग्रेटर नगालिम के मानचित्र में अरूणाचल प्रदेश , असम और मणिपुर के बड़े क्षेत्र शामिल हैं। असम सरकार , अपनी एक इंच भूमि देने को तैयार नहीं है। वहीं ऑल अरूणाचल प्रदेश छात्र संघ ने किसी भी क्षेत्रीय बदलाव के खिलाफ चेतावनी दी है। केंद्र ने आश्वासन दिया है कि मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता प्रभावित नहीं होगी। परंतु गैर-नागा समूह आशंकित हैं , क्योंकि आई-एम समूह का मूल तांगसुल समुदाय मणिपुर का ही है , और संगठन ऐसे किसी समझौते को स्वीकार नहीं करेगा , जो उनके द्वारा आबाद क्षेत्रों को शामिल न करता हो।

राज्य में शांति स्थापित होना एक बड़ी चुनौती है। किसी भी नागा शांति पहल को लागू करते समय अन्य राज्यों की सीमाओं को अक्षुण्ण रखते हुए , इन राज्यों में नागा आबादी वाले क्षेत्रों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करते हुए , उनकी संस्कृति एवं विकास हेतु अलग से बजट आवंटन भी किया जा सकता है। संभव हो तो एक नए निकाय का गठन किया जाना चाहिए , जो नागालैण्ड के अलावा अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में नगाओं के अधिकारों की निगरानी कर सके।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित राहुल कर्माकर के लेख पर आधारित। 16 अगस्त , 2020

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