आत्मनिर्भर बनने की ओर तीन कदम

Afeias
31 Aug 2020
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Date:31-08-20

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पिछले कुछ महीनों से चल रही प्रतिकूल परिस्थितियों ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे एक देशव्यापी अभियान की शुरूआत कर दी है। इसका सफर चीन से फैले कोविड-19 से लेकर चीनी विनिर्माण कंपनियों के बंद होने तक चलता रहा है। बंद हुई कंपनियों से भारत को कच्चा माल मिलना बंद हो गया , और इसके चलते इन पर निर्भर अनेक देशों में संकट खड़ा हो गया। केंद्र सरकार ने समाधान के रूप में अपनी सप्लाई को इतना सुदृढ करने का निश्चय किया कि भविष्य में हमारी विनिर्माण कंपनियों को नुकसान न सहना पड़े। आत्मनिर्भरता का अभियान मुख्य रूप से दो क्षेत्रों में काम करने के लिए चलाया जा रहा है।

  1. फार्मासूटिकल्स और इलैक्ट्रॉनिक क्षेत्र में , तथा
  1. चीन की अनेक ऐप पर प्रतिबंध लगाने के बाद सरकार ने इंटरनेट और मोबाईल उत्पादों का स्वदेशीकरण करने हेतु ‘इनोवेट फॉर आत्मनिर्भर इंडिया’ जैसी प्रतिस्पर्धा का शुभारंभ किया है।

वैश्विक स्तर पर देखें , तो सबसे ज्यादा इनोवेटिव देशों की तुलना में भारत तीन स्तरों पर मात खा जाता है।

  1. सफल उत्पादों और समाधानों के पीछे के नवोन्मेषी मस्तिष्क को अपने विषय की अच्छी पकड़ होनी चाहिए। यह ज्ञान पुस्तकीय दुनिया से आगे बढ़कर ज्ञान के व्यावहारिक एप्लीकेशन पर आधारित होना चाहिए। हर बच्चा अपने आप में वैज्ञानिक होता है , बशर्तें उसको प्रयोगशाला के लिए वातावरण और संसाधन दिए जाएं।

हमारे देश के उच्च शिक्षा संस्थानों से अनेक प्रतिभावान विद्यार्थी निकलते हैं , जो अपने नवोन्मेषी विचारों को छोडकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी करने लगते हैं।

  1. चीन जैसे नवाचार के केंद्र बने देशों में प्रतिभावान लोगों को स्टार्टअप या अन्य उद्यमिता के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

हमारे देश में उद्यमिता के लिए सरकार की ओर से वास्तविक प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है।

  1. अन्य देशों के नवाचार को बौद्धिक संपदा के अंतर्गत सुरक्षित रखा जाता है , और इसके लिए उन्हें उचित लाभ और प्रोत्साहन भी मिलता है।

भारत में नए उत्पाद बनाने वालों को व्यक्तिगत स्तर पर कटु अनुभव का सामना करना पड़ा है। नवाचारों को सुरक्षित रखने और बौद्धिक संपदा के अंतर्गत लाने में अनेक बाधाए आती हैं। भारत में पेटेंट की प्रक्रिया भी अत्यंत जटिल है।

नवाचार की प्रक्रिया अत्यधिक संरचनात्मक होती है। इसकी शुरूआत बहुत निचले स्तर से की जानी चाहिए। किसी समस्या को पहचानकर उसका ऐसा हल ढूंढने के प्रयत्न , जो व्यावहारिक जीवन में काम आएं , की पहल स्कूल और कॉलेज स्तर से ही की जानी चाहिए। इससे ही देश में जोश और उत्साहयुक्त नवाचार का वातावरण तैयार होगा , जो उद्यमिता तक बढता चला जाएगा।

नई शिक्षा नीति ने कुछ ऐसे परिवर्तनों का संकेत दिया है , जो रटंत विद्या से हटकर काम करेंगे। उम्मीद की जा सकती है कि ऐसी नीति देश के उज्जवल भविष्य की दिशा में काम करेगी।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित के टी रामाराव और जयेश रंजन के लेख पर आधारित। 14 अगस्त , 2020

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