टीकाकरण के संबंध में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है।
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टीकाकरण के बारे में अचानक बहुत सी खबरें तूल पकड़ने लगी हैं। जैसे लगाए जाने वाले टीके सुरक्षित हैं या नहीं ? ये जरूरी क्यों हैं ? आदि सवाल मीडिया के माध्यम से लोगों के दिमाग में उठते रहे हैं और आज भी उठ रहे हैं। पहली बार सरकार द्वारा संचालित मिजल्स-रूबेला कार्यक्रम को चुनौती दी गई है। लेकिन अमेरिका और यूरोप में मिलल्स या खसरे के फिर से सिर उठाने की खबरें तेजी से आ रही हैं। यही कारण है कि हमें इनके टीकाकरण की आवश्यकता अभी भी है।कुछ दशक पहले पोलियो, टीटनस एवं छोटी माता जैसी आम बीमारियों को आखिरकार हमने विस्तृत टीकाकरण कार्यक्रम के माध्यम से दूर किया है। स्वच्छ जल, साफ-सफाई और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता मात्र से इन रोगों से लड़ाई नहीं जीती जा सकती है।
टीकाकरण की उपयोगिता
जिस विज्ञान ने भारत को सुरक्षित और प्रभावशाली टीकों के द्वारा इन रोगों से बचाया है, वही विज्ञान आज कटघरे में है। उस पर से लोगों का विश्वास डिगने की अफवाहें उड़ रही हैं। लेकिन दूसरी ओर न केवल भारत में बल्कि अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित राष्ट्रों में भी बच्चों की जिंदगी दांव पर लगी हुई है। और विज्ञान के अलावा इनका कोई निदान नहीं है।2012 में अमेरिका में जब टीकाकरण का क्षेत्र कुछ संकुचित हो गया था, तब काली खाँसी फिर भी प्रभाव में आने लगी थी। इसी प्रकार अब यूरोप में खसरा बच्चों की जान ले रहा है। फिर भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ स्वच्छ जल, साफ-सफाई और स्वास्थ्य सेवाओं की बहुत कमी है, वहाँ पर बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा हेतू एक सशक्त टीकाकरण कार्यक्रम की निरंतरता अत्यंत आवश्यक है।
टीकाकरण से जुड़ी अफवाहें हमारे राष्ट्र के स्वास्थ्य को अन्य देशों की तुलना में बहुत ज़्यादा हानि पहुँचा सकती हैं। 130 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में आर्थिक और सामाजिक भिन्नताओं को देखते हुए, सुरक्षात्मक स्वास्थ्य उपाय होने जरूरी हैं। हमारे देश में निमोनिया, डायरिया, और खसरे जैसे प्रमुख शिशु रोगों से निपटने और शिशु मृत्यु दर कम रखने में टीकाकरण का बहुत बड़ा योगदान है। जो बच्चे इन बीमारियों में बच भी जाते हैं, वे जीवनपर्यंत इसके दुष्प्रभावों का शिकार रहते हैं, और एक तरह से अपंगता का जीवन व्यतीत करते हैं।
टीकों की प्रभावशीलता
- वर्तमान समय में लगाए जाने वाले टीके बहुत ही सुरक्षित हैं और पहले से अधिक प्रभावशाली हैं।
- इनको लाइसेंस देने से पहले इन्हें कड़े वैज्ञानिक मानदण्डों से गुज़रना पड़ता हैं। हजारों बच्चों का वर्षों तक अध्ययन करने के बाद ही इनको प्रयोग में लाया जाता है।
- सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP) में शामिल किए जाने से पहले हर टीके के सुरक्षित एवं प्रभावशाली होने की जाँच स्वास्थ्य मंत्रालय एवं वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा की जाती है।
- जिन बीमारियों के लिए टीका लगाया जाता है, अगर उनके होने पर अस्पताल वगैरह के खर्चें का आकलन किया जाए, तो इसके टीके की कीमत नगण्य लगती है।
अगर हमें शिशु मृत्यु दर को कम करना है, और जानलेवा बीमारियों के दुष्प्रभावों से अपनी पीढियों को बचाना है, तो हमें अच्छे स्वास्थ्य के लिए ठोस कदम उठाने ही होंगे। इस दिशा में टीकाकरण एक तरह के तकनीकी उत्कर्ष का काम कर रहा है, जिसके द्वारा हम सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से मजबूत एवं संपन्न अन्य देशों की कतार में खड़े हो सकेंगे।
‘द हिंदू‘ में प्रकाशित प्रदीप हल्दर के लेख पर आधारित। लेखक, स्वास्थ्य मंत्रालय के टीकाकरण विभाग में डिप्टी कमिश्नर हैं।