केवल शौचालयों के निर्माण से बात नहीं बनेगी

Afeias
06 Dec 2017
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Date:06-12-17

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19 नवम्बर, 2017 को ‘विश्व शौचालय दिवस’ मनाया गया, जिसका विषय ‘अपशिष्ट जल एवं मल कीच प्रबंधन’ था। भारत के स्वच्छ भारत मिशन के चलते शौचालयों के प्रयोग को लेकर जागरूकता काफी बढ़ी है। 2015 के धारणीय विकास में भी स्वच्छता को लेकर कुछ लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। ये लक्ष्य शौचालयों से जुड़ी पूरी प्रक्रिया को अपने में समाहित करके चलते हैं।

चार स्तरीय चक्र

स्वच्छता स्वास्थ्य से जुड़ा विषय है। जब तक मल अपशिष्ट का निष्पादन सही एवं सुरक्षित तरीके से नहीं किया जाता है, तब तक हम समस्त नागरिकों के उत्तम स्वास्थ्य की कोई गारंटी नहीं दे सकते। इस अपशिष्ट के कारण हमारे पेयजल एवं खाद्य पदार्थ के दूषित होने की बहुत संभावना रहती है। इसके लिए चार स्तरीय प्रक्रिया का अनुसरण किया जाना चाहिए- (1) शौचालयों की उपलब्धता, (2) उचित एवं सुरक्षित नियंत्रण, (3) मल निष्कासन प्रणाली या मल कीच निष्कासन वाहनों द्वारा उचित वहन, तथा (4) उपचार एवं निपटान। इन चारों स्तर पर मल का निष्कासन अत्यंत ही सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। अन्यथा यह स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है।

भारत के शहरों में निष्कासन एवं निपटान के इन चार स्तरों में कई झोल हैं। वस्तुतः मल निष्कासन प्रणाली का निर्माण पूर्ण रूप से भूमिगत और ढंके हुए पाइपों के माध्यम से किया जाना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये कहीं भी वर्षा जल के निष्कासन वाले नालों से न मिलें। एक लंबे अरसे और दशकों के निवेश के बाद भारत में केवल मेट्रो शहरों में ऐसा करना संभव हो पाया है। इसका कारण यही है कि मल निष्कासन प्रणाली एवं मल उपचार प्लांट (STPs) का निर्माण अत्यंत खर्चीला होने के साथ-साथ रखरखाव में कठिन भी है।

  • इस प्रणाली के कुछ विकल्प भारत में प्रचलित हैं। इनमें सेप्टिक टैंक एवं गड्हे वाले शौचालय आते हैं। अगर इन दोनों ही प्रणालियों का निर्माण एवं प्रबंधन सही तरीके से किया जाए तो ये अत्यंत सुरक्षित हैं।
  • मल प्रबंधन से संबंधित सुरक्षित प्रणाली को मल कीच प्रबंधन का नाम दिया गया है। भारत सरकार ने भी इसकी उपयोगिता को समझकर इसे मान्यता दी है। मल कीच प्रबंधन एक बहुत ही व्यावहारिक दृष्टिकोण है। परन्तु इसे संभव बनाने में अनेक चुनौतियां मुँह बाए खड़ी हैं।

(1) पूरे देश में ऑन-साइट सिस्टम के अंतर्गत सेप्टिक टैंक एवं गड्ढे वाले शौचालयों के निर्माण के लिए सरकारी पैमाने तय किए गए हैं। अधिकतर लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। इसके गलत निर्माण से भूमिगत जल के दूषित होने की आशंका बनी रहती है।

(2) समय-समय पर मल-कीच के गड्ढ़ों को विशेष वाहनों द्वारा खाली किए जाने की आवश्यकता होती है। परन्तु तमिलनाडु के अलावा अन्य राज्यों के पास ऐसे वाहन ही नहीं हैं।

(3) इसके एकत्रण के बाद उचित उपचार की आवश्यकता होती है। परन्तु हमारे पास उपचार प्लांट की बहुत कमी है।

उपाय

  • इसी वर्ष राष्ट्रीय नगर स्वच्छता नीति के अंतर्गत मल कीच एवं सेप्टेज प्रबंधन नीति जारी की गई है। तमिलनाडु, ओड़ीशा एवं महाराष्ट्र ने इससे संबंधित दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं। अन्य राज्य भी मल-कीच वाहनों के प्रबंध में लगे हैं। इसके लिए वे निजी क्षेत्र को भी शामिल करने के लिए उत्साहित हैं।
  • ऑन-साइट सिस्टम में सेप्टिक टैंक एवं गड्ढ़ों के आकार-प्रकार के प्रति जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए।
  • नगरों के स्थानीय निकायों को सामुदायिक शौचालयों का निर्माण बढ़ा देना चाहिए। इसके अलावा बहुमंजिली इमारतों के निर्माण को तभी मंजूरी दी जाए, जब वे सही सेप्टेज डिजाइन उपलब्ध करा सकें।
  • टैंक और गड्ढ़ों की सफाई के लिए कर्मचारियों को सही उपकरण उपलब्ध करवाए जाएं। उनके स्वास्थ्य एवं सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए।
  • हर नागरिक को मल-गड्ढों एवं सेप्टिक टेंक की नियमित सफाई के लिए जिम्मेदार बनना होगा।
  • सरकार पर उपचार सुविधाओं की उपलब्धता बढ़ाने हेतु दबाव बनाना होगा।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित कविता वानखेड़े के लेख पर आधारित।

 

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