जल की हर बूँद कीमती है
Date:16-07-19 To Download Click Here.
नीति आयोग की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक देश के 21 नगरों के भू-जल स्रोत सूख जाने की आशंका है। वर्तमान में भी देश के कई नगर जल संकट से जूझ रहे हैं। दशकों के बाद चेन्नई के चार जलाशयों का पानी खत्म हो चुका है। पिछले 200 दिनों से वहाँ वर्षो नहीं हुई थी, और अब मानसून के साथ हल्की-फुल्की बरसात हुई है।
चेन्नई में जल संकट अचानक उत्पन्न नहीं हुआ है। इसकी आशंका को देखते हुए 2003 में मुख्यमंत्री जयललिता ने नई बनने वाली इमारतों के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य कर दिया था। इसके 16 वर्षों बाद भी एक गैर सरकारी संगठन की रिपोर्ट बताती है कि चेन्नई के सरकारी भवनों तक में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के ढांचे बेकार पड़े हैं। इस समय संकट की गंभीरता को देखते हुए इन ढांचों का निरीक्षण करने का आदेश दिया गया है।
देश के सभी नगरों में जल-प्रबंधन अस्थायी और ऊपरी स्तर का है। चेन्नई के संकट से सबक लेते हुए महानगरों में पहले ही ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि वे इस संकट से बच सकें।
- इसके लिए नगर नियोजन और प्रबंधन बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए। यह शहरी विकास प्राधिकरण की तरह का ही ऐसा निकाय हो, जो जल सेवाओं की आपूर्ति, मांग और देख-रेख का नियमन करे।
- आपूर्ति के क्षेत्र में यह भू-जल के दोहन का निरीक्षण करे। निजी टैंकर से होने वाली जलापूर्ति का नियमन करे, और उनकी कीमतों को नियंत्रण में रखा जाए।
- अलवणीकरण के अतिरिक्त प्लांट लगाए जाने चाहिए।
- विशेषज्ञों की सलाह है कि जलाशयों का गहरीकरण किया जाने से पानी की ज्यादा मात्रा को एकत्रित किया जा सकता है।
- बिजली की तर्ज पर ही महानगर जलापूर्ति और भू-जलापूर्ति की कीमत, उपयोग की मात्रा के अनुसार तय की जानी चाहिए। इसके लिए घरों में वॉटर मीटर लगाए जा सकते हैं।
- जलाशयों की गाद को नियमित रूप से साफ किया जाना चाहिए।
- महानगरों के घरों और कार्यालयों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग तंत्र का नियमित निरीक्षण किया जाना चाहिए।
- सरकार द्वारा बड़ी कंपनियों को दी जाने वाली अनुमति से जल-निकाय को अवगत कराया जाए।
चेन्नई में इस प्रकार के समन्वय का अभाव होने का परिणाम उसके आई टी सैक्टर की मुश्किलों में देखा जा सकता है। वहाँ के कर्मचारियों को जल संकट के चलते घर से काम करने की छूट दी जा रही है। आवश्यक है कि ऐसी कंपनियों के कार्यालय खोले जाने से पहले जल निकाय, उनके द्वारा उपयोग में लाए जाने वाली जल की मात्रा की समीक्षा कर लें।
इस संदर्भ में श्रीपेरंबदूर-ओरगाडैम बेल्ट का उदाहरण लिया जाना चाहिए। यहाँ की कंपनियों और निर्माण उद्योगों को जल की कोई कमी नहीं है, क्योंकि उन्होंने वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के साथ-साथ भू-जल रिचार्ज सुविधा पर ध्यान दिया है।
आवश्यक संसाधनों की कमी से न केवल आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि सामाजिक अशांति भी फैलती है। हमें विश्व के केप टाउन, दक्षिण अफ्रीका जैसे नगरों से सीखना चाहिए जहाँ पानी बचाने के लिए डे जीरो जैसे अभियान चलाए जाते हैं। सरकार की दृढ़ नीतियों के साथ जन-भागीदारी भी अत्यंत आवश्यक है। इसके माध्यम से ही हम अपनी भविष्य की पीढ़ियों की कठिनाइयों को कम कर सकेंगे।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित वी.नारायणन् और काव्या नारायणन् के लेख पर आधारित। 29 जून, 2019