चुनाव सुधारों के पीछे की वास्तविकता

Afeias
07 Mar 2017
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Date:07-03-17

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हाल ही में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने अपने बजट भाषण में चुनाव सुधारों की भी घोषणा की है। ऊपर से देखने पर ये सुधार प्रशंसा के योग्य लगते हैं, लेकिन वास्तव में ये चुनाव सुधारों की लगातार मांग करने वाले चुनाव आयोग एवं प्रजातांत्रिक सुधार कार्यकत्ताओं का ध्यान भटकाने वाले मात्र हैं। वित्तमंत्री की चुनाव सुधारों संबंधित घोषणा की वास्वविकता को चार बिंदुओं में अधिक स्पष्ट तौर पर समझा जा सकता है।

  • उन्होंने राजनैतिक दलों को एक व्यक्ति से प्रतिवर्ष मिलने वाली नकद दानराशि की सीमा को 20,000 रु. से घटाकर 2,000 रु. कर दिया है। दिसम्बर 2016 में चुनाव सुधारों का प्रस्ताव रखते हुए चुनाव आयुक्त ने यही मांग की थी। यदि वित्त विधेयक पर नज़र डालें, तो वास्तविक स्थिति कुछ और ही कहती है। वित्त मंत्री ने जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 23 में 20,000 की नकद राशि की सीमा में कोई छेड़छाड़ नहीं की है। बल्कि 2,000 रु की सीमा तय करने के लिए एक नया खण्ड जोड़ दिया है।
  • चुनाव आयुक्त ने यह भी मांग की थी कि किसी भी राजनैतिक दल को बेनामी माध्यमों से 20 करोड रु. या उसको मिले कुल दान का 20% से अधिक न हो। वित्तमंत्री ने इस मांग को कोई तवज्जो नहीं दी है। इसलिए राजनैतिक दलों के कोष में पारदर्शिता आने की कोई संभावना नहीं दिखती।
  • राजनैतिक दलों को मिलने वाली दान राशि प्रायः पार्टी के नेताओं की जेब में जाती है। वह उसमें से थोड़े से धन को बैंक खातों में जमा करा देते हैं। इस काले धन का बाकायदा हिसाब तैयार करवाकर इसे सफेद बनाया जाता है। गौर करने की बात यह है कि यह सफेद बनाई जाने वाली राशि न्यूनतम कही जा सकती है। पहले जिस प्रकार पार्टी को मिलने वाली बड़ी धनराशि को अलग-अलग व्यक्तियों के नाम पर 20,000 रु. में बांटकर दर्ज किया जाता था, अब उसे 2,000 में बांटा जाएगा। इस कानून से मात्र दानकर्ताओं की सूची लंबी हो जाएगी और सी.ए. को ज्यादा फीस मिलेगी।
  • दूसरे बिंदु के रूप में वित्तमंत्री ने घोषणा की कि सभी राजनैतिक दल चैक या किसी भी डिजीटल माध्यम से दानराशि लेने के लिए स्वतंत्र हैं।चैथे बिंदु में उन्होंने राजनैतिक दलों से तय समय सीमा के अंदर आयकर भुगतान की अपील की, जिससे दलों को आयकर में छूट दी जा सके।
  • इन दोनों ही बिंदूओं के माध्यम से वित्तमंत्री ने कोई भी नई बात नहीं कही है। दलों को चैक या डिजीटल माध्यम से मिलने वाली दानराशि के संबंध में नया कानून लाने की बहुत आवश्यकता थी। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इसी प्रकार आयकर रिटर्न की समय सीमा के बारे में वित्त विधेयक की धारा 13 (ए) के खण्ड (डी) में एक नया प्रावधान किया गया है, लेकिन इसके उल्लंघन पर दण्ड का कोई प्रावधान नहीं है। अगर राजनैतिक दलों का पुराना रवैया देखें, तो आज तक लगभग सभी दल तय समय सीमा के बहुत बाद तक रिटर्न भरते हैं। इसके लिए आज तक इन्हें दण्डित नहीं किया गया। आगे भी ऐसा ही होता रहेगा।
  • वित्त मंत्री ने निर्वाचन बांड्स (Electoral Bonds) की नई योजना लाने की बात कही है। इसके अंतर्गत किसी राजनैतिक दल को दान देने का इच्छुक व्यक्ति निर्धारित बैंक से बांड्स खरीद सकता है। इन बांड्स को किसी भी पंजीकृत राजनैतिक दल के खाते में नियत अवधि में भुनाया जा सकेगा। ये बांड्स बियरर बांड्स की तरह होंगे, जिनमें खरीदने वाले का नाम तो ऊजागर होगा, परंतु इसका लाभ किसको मिल रहा है, इसे जाना नहीं जा सकेगा।
  • राजनैतिक दल के बैंक खाते में आने वाले बांड्स का पता तो चलेगा, परंतु दानकर्ता का नाम पता नहीं चलेगा। इन बांड्स के माध्यम से दान में दानकर्ता का नाम, राजनैतिक दल का नाम और दानराशि के बारे में न तो चुनाव आयोग और न ही आयकर विभाग को कोई जानकारी मिल सकेगी। इस दानराशि को आयकर से मुक्त करने के लिए आयकर अधिनिमय में भी बदलाव कर दिए गए हैं। इस प्रकार बांड्स के माध्यम से दी जाने वाली दानराशि का पता केवल दानकर्ता और ग्रहणकर्ता को ही होगा।

इन बांड्स से दान लेने के लिए राजनैतिक दल कई भ्रष्ट तरीके अपना सकते हैं। किसी भी व्यापारिक वर्ग को लाभ पहुँचाकर उससे एक बड़ी धनराशि लेने जैसा समझौता भी कर सकते हैं। उधर कंपनी इस राशि से ‘निर्वाचन बांड्स‘ की खरीद दिखाकर उसे आयकर मुक्त बना लेगी। और दूसरी ओर राजनैतिक दल भी यही करेंगे। अगर इस योजना को लागू कर दिया गया, तो राजनैतिक क्षेत्र में रही सही पारदर्शिता और उत्तरदायित्व भी खत्म हो जाएगी। इसके लागू होने के बाद कोई भी चैक या डिजीटल माध्यम से राजनैतिक दलों को दान देकर फंसना क्यों चाहेगा ?चुनाव सुधारों के नाम पर की गई वित्तमंत्री की मिथ्या घोषणा की सच्चाई को सामने लाकर इसके गलत प्रावधानों का बहिष्कार किया जाना चाहिए। इसके लिए जनता के साथ-साथ चुनाव आयोग को भी मोर्चा संभालना होगा।

हिंदू में प्रकाशित योगेन्द्र यादव के लेख पर आधारित।

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