चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (China-Pakistan Economic Corridor)
To Download Click Here
लगभग डेढ़ साल पहले चीन और पाकिस्तान ने जिन आर्थिक समझौतों की घोषणा की थी, वे अब साकार रूप में आ गए हैं। ‘काशगर से ग्वादर’ के व्यापार मार्ग से चीन का पहला जहाज खाड़ी एवं अफ्रीका से होता हुआ ग्वादर पहुँचा है। चीन-पाकिस्तान के इस आर्थिक गलियारे से समस्त उप महाद्वीप में एक नया आर्थिक भूगोल लिखा जा रहा है। इस प्रसंग में क्षेत्रीय अखण्डता पर सामरिक दृष्टि से विचार करने की आवश्यकता होगी।
- आर्थिक गलियारा क्या है और उसका इतिहास क्या है?
चूंकि विश्व की अधिकतर जनसंख्या उत्तरी गोलाद्र्ध में निवास करती है, इसलिए नए बाजारों की खोज में शुरू से ही समुद्रों का सहारा लिया गया। भारत भी उसी खोज का परिणाम रहा। कुछ एक अपवाद जैसे ब्रिटेन के महाशक्ति रहने के दौरान व्यापार दक्षिण से उत्तर की ओर हुआ, अन्यथा यह सामान्य रूप से उत्तर से दक्षिण की ओर ही होता आया है। इसी तरह का एक व्यापार मार्ग मध्य एशिया से पाकिस्तान, उत्तरी भारत में होता हुआ प्रायद्वीपीय भारत तक पहुंचा करता था।
- भारत-पाकिस्तान विभाजन के कारण उत्तरी भारत, अफगानिस्तान जैसे बाजारों से कट गया। पाकिस्तान को भी हानि हुई।
- सन् 1991 में भारत में उदारीकरण के साथ ही नए आर्थिक द्वार खुले और तब से पाकिस्तान को भारत के साथ आर्थिक और व्यावसायिक द्वार खोलने पड़े।
चीन-पाकिस्तान के इस आर्थिक गलियारे ने पारंपरिक उत्तर-दक्षिण व्यापार पथ को पलटकर रख दिया है। पाकिस्तान ने ऐसे आर्थिक और भौगोलिक मार्ग को चुन लिया है, जिसका नक्शा चीन तय करता रहेगा।
- भारत एवं दक्षिण–एशिया पर इसका प्रभाव
यह समझौता पाकिस्तान के लिए भी अनवरत संघर्ष का विषय बना रहेगा। पाकिस्तान को इससे लाभ होने की भी कोई किरण दिखाई नहीं दे रही है। यह एक तरह से चीन का पाकिस्तान में निवेश है, जिसे लौटाया जाना है। इसके अलावा चीन का निवेश पाकिस्तानी जनता के किसी काम का नहीं होगा, क्योंकि यह चीनी बैंकों से सीधा पाकिस्तान में उसकी निर्माणाधीन उन परियोजनाओं पर लगाया जाएगा, जिनमें चीनी लोग ही काम करेंगे।
- चीन के लिए यह समझौता अवश्य ही बहुत लाभ का है। इससे चीन को हिंद महासागर में प्रवेश मिल गया है। इसके माध्यम से चीन ने भारत और उसके पड़ोसी देशों के अलावा पश्चिम एशिया में अपना राजनैतिक और सैनिक प्रभुत्व बनाने के लिए एक उपनिवेश स्थापित कर लिया है।
- यही कारण है कि इसे चीनी ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह देखा जा रहा है।पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चीन और पाकिस्तान की सेनाओं का मिलन भी भारत के लिए चिंता का दूसरा विषय है।
बहरहाल पाकिस्तान ने इस पूर्व-पश्चिम गलियारे को अपनाकर न केवल उत्तर-दक्षिण व्यापार पथ को ठुकरा दिया है, बल्कि दक्षिण-एशिया की ओर से मुँह भी मोड़ लिया है। दरअसल पाकिस्तान अपने को पश्चिम एशिया का ही भाग समझता है और वह शायद चीन के राजनैतिक-आर्थिक क्षेत्र का हिस्सा बनकर गौरव का अनुभव भी करता है। कुल मिलाकर इसका अर्थ यही है कि आने वाले दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था को चाहे जितना विस्तार मिले, पाकिस्तान इस व्यापार-पथ में रुचि नहीं दिखाएगा।भारत चाहे तो राजनैतिक और कूटनीतिक दांव पेंच लगाकर पाक-चीन गलियारे में अड़चन लगा सकता है, परंतु ऐसा संभव हो सके यह जरूरी नहीं।
2015 में प्रधानमंत्री मोदी के चीन दौरे के समय भारत ने चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का तिरस्कार करते हुए इसे अस्वीकृत भी कर दिया था। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में गिलगीत-बाल्तिस्तान में चल रही परियोजना का भी विरोध किया था। इन सबके बावजूद चीन-पाकिस्तान अपनी योजनाएं आगे बढ़ाते गए। अब चीन काशगर-ग्वादर को वन बेल्ट-वन रोड ;व्ठव्त्द्ध की योजना को साकार करने का मार्ग मान रहा है, जिसमें श्रीलंका, बांग्लादेश और अफगानिस्तान भी जुड़े हुए हैं। भारत इस समुद्री सिल्क मार्ग से जुड़ने का इच्छुक नहीं है। भारत के लिए यह हानिकारक हो सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अशोक मलिक के लेख पर आधारित।