गुट निरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता
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गुटनिरपेक्ष आंदोलन का गठन अफ्रीका, एशिया, लेटिन अमेरिका एवं विश्व के अन्य उन देशों को मिलाकर किया गया, जो तत्कालीन दौर में उपनिवेशी समस्याओं से गुजर रहे थे। आंदोलन की स्थापना के शुरूआती वर्षों में इसके सदस्य देशों में से कुछ ने तो स्वतंत्रता प्राप्त कर ली और कुछ स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रक्रिया में थे। इसका गठन करने वाले पाँच देशों के प्रमुखों में पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू भी थे।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन का गठन जिन परिस्थितियों और उद्देश्य को लेकर किया गया था, अब वे कितने प्रासंगिक हैं, इसमें संदेह है। हाल ही में वेनेजुएला में हुए इस सम्मेलन में हमारे प्रधानमंत्री के भाग न लेने की वजह भी यही रही है। भारत की ओर से उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के नेतृत्व में एक दल ने सम्मेलन में भाग लिया।
आंदोलन वास्तव में कितना प्रासंगिक है?
- ऐसा माना जा रहा है कि हमारे प्रधानमंत्री भारत को विकास और सुरक्षा के जिस मार्ग पर ले जाना चाह रहे हैं, उसके लिए अब गुट निरपेक्ष आंदोलन की सार्थकता नहीं है।
- एक तर्क यह भी दिया जा सकता है कि गुट निरपेक्ष आंदोलन का गठन ही असमान देशों को लेकर किया गया था। इसलिए इन देशों को आपस में जोड़ने वाले तत्वों का अभाव है।
- गुट निरपेक्ष देशों ने भारत के कठिन समय में कभी उसका साथ नहीं दिया। चाहे वह 1962 का चीनी आक्रमण हो या 2002 का मुुंबई आतंकी हमला। फिर भी कहा जा सकता है कि गुट निरपेक्ष देश किसी देश के साथ किसी विशेष अवसर पर भले ही खड़े न हुए हों, लेकिन विश्व-स्तर पर उनके मुद्दे एक ही रहे हैं। इस संगठन के अन्य देशों की समस्याओं से भारत ने भी अपने का अलग ही रखा है।
- गुट निरपेक्ष आंदोलन के पास ऐसी कोई विशेष विचारधारा नहीं है, जिससे चिपके रहने की आवश्यकता महसूस हो। इसका गठन उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और नस्लवाद के विरोध में किया गया था। इसमें परमाणु निरस्त्रीकरण पर भी आम सहमति थी। बाद में भारत ने ही परमाणु अप्रसार संधि से अलग होकर इस परंपरा को तोड़ा।
- सिंगापुर से लेकर क्यूबा तक के विभिन्न परिवेश के देशों का सदस्य होना इस संगठन की खूबसूरती है। लेकिन मिस्र के इस्राइयल के तथा भारत के सोवियत संघ के साथ हुए समझौते बहुत सफल नहीं रहे।
- यह सच है कि अब गुट निरपेक्ष आंदोलन की निरर्थकता के बारे में बहुत से तर्क दिए जा सकते हैं और दिए भी जा रहे हैं, परंतु कुछ बिंदु ऐसे हैं, जिन पर विचार करके लगता है कि इसकी सदस्यता बेमानी भी नहीं है।
- गुट निरपेक्ष संगठन का भारत के लिए महत्व
- पहली बात तो यह कि गुट निरपेक्ष संगठन किसी देश के व्यक्तिगत उत्थान में कोई अड़चन पैदा नहीं करता। इसके सदस्य देश अपने विकास के लिए निर्णय लेने को स्वतंत्र हैं।
- दूसरे, पाकिस्तान के साथ बदले रिश्तों को देखते हुए भले ही कोई गुट निरपेक्ष देश उसे अलग-थलग करने को सहमत न हो, परंतु आतंकवाद विरोधी हमारी मनोभावना के प्रदर्शन के लिए यह संगठन एक अच्छा मंच सिद्ध हो सकता है।
- भारत अब संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता प्राप्त करने का इच्छुक है। गुट निरपेक्ष देशों का समर्थन निश्चित रूप से उसकी इस मांग को वजनदार बनाता है।
- भारत जिस प्रकार की विदेश नीति को अपना रहा है, उसको देखते हुए गुट निरपेक्ष संगठन का आज भी महत्व है। गुट निरपेक्ष संगठन तो हमारे ही वृहद विश्व के सपने का हिस्सा है। हो सकता है कि आज की विदेशी नीति की व्यस्तता को देखते हुए भले जी इस संगठन की सदस्यता हमें अथपूर्ण न लगे, परंतु इस परिवर्तनशील दौर में विश्व समुदाय को साथ लेकर चलना ही दूरदर्शिता है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित टी.पी.श्रीनिवासन के लेख पर आधारित।