गाँवों की नगरों से नजदीकी बढ़ाने का समय

Afeias
11 Nov 2019
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Date:11-11-19

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अर्थव्यवस्था को सुधारने के उद्देश्य से की गई कार्पोरेट टैक्स में कमी से निवेश और विदेशी पूंजी में बढ़ोत्तरी के परिणाम भविष्य में अवश्य दिखाई देंगे। तब तक अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार को ऐसे कुछ कदम उठाने होंगे, जो रोजगार को बढ़ाने में मदद करें।

निकट अवधि में किए जाने वाले उपाय

  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार : ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार उत्पन्न करने के लिए विनिर्माण को बढ़ावा देना होगा। खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी, मुर्गीपालन और मत्स्य पालन ऐसे उद्योग हैं, जिनमें ग्रामीण रोजगार उत्पन्न किए जा सकते हैं। कोल्ड चेन को बढ़ाकर संरक्षण और आय में वृद्धि की जा सकती है। इसके अलावा बायो-ऊर्जा, कपड़े, फुटवियर और स्मारिका के तौर पर दी जाने वाली वस्तुओं के विनिर्माण से संबंधित इकाइयां लगाई जा सकती हैं।

सेवा क्षेत्र में मोबाईल, कम्प्यूटर रिपेयर; नर्सिंग, परिवहन, कृषि-पर्यटन आदि की सुविधाएं दिए जाने से विकास होगा। शहरों से जुड़े 25 कि.मी. की परिधि में शहरी सुविधाओं का प्रसार किया जाना चाहिए।

  • प्रथम व द्वितीय दर्जे के कस्बों के प्रति नीति – यहाँ भी विनिर्माण के अवसर बहुत मिल सकते हैं। भारत के अनेक कस्बों में कुछ हस्तशिल्प उद्योग प्रसिद्ध हैं, जैसे-मुरादाबाद का बर्तन उद्योग, अंबाला का चश्मे के फ्रेम, शिवकाशी का पटाखा उद्योग, तीरुपुर का कपड़ा उद्योग आदि। इन उद्योगों को कांट्रैक्ट लेब और सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह कुछ समय के लिए (तीन से पांच वर्ष) आयकर में छूट प्रदान करे। राज्य सरकार, उद्योगों की स्वीकृति को आसान बनाएं, और इंस्पेक्टर राज को समाप्त करें।
  • बड़े नगर – बड़े शहरों में सेवा क्षेत्र के रोजगार बड़ी मात्रा में उत्पन्न किए जा सकते हैं। शोध एवं अनुसंधान, सूचना प्रौद्योगिकी, बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं, पर्यटन, शिक्षा, मीडिया और मनोरंजन से जुड़ी अनेक सेवाओं की जरूरत बड़े नगरों को होती है। इससे जुड़े कई स्टार्टअप अस्तित्व में आ रहे हैं। इन सबको प्रोत्साहन देने के लिए आईआईटी, आईआईएम जैसे शोध संस्थानों की मदद की जानी चाहिए। निजी इक्विटी निवेशकों को इनमें भागीदारी के प्रस्ताव दिए जाने चाहिए।

मध्य अवधि तक परिणाम देने वाले उपाय (तीन वर्ष तक)

  • 2022 तक कृषि-आय को दोगुना करना – सरकार की नीति 2-3 फसलों को लेकर चलना, और उनकी उपज बढ़ाना है। इस हेतु पानी अधिक चाहिए। पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए वर्षा जल संग्रहण के माध्यम से भू-जल स्तर को बढ़ाने की आवश्यकता है। रोधक बांध और तालाबों के निर्माण से भी मदद मिलेगी।

माइक्रो ऐरिशन सिंचाई (सूक्ष्म सिंचाई योजना) को प्रोत्साहन देकर उस पर सब्सिडी दी जानी चाहिए। इसका उद्देश्य जल की प्रत्येक बूंद से अधिकतम उपज प्राप्त करना है। जल के न्यूनतम उपयोग से अधिकतम उपज प्राप्त करना सीखा जा सकता है। कांट्रैक्ट और कार्पोरेट फार्मिंग को भी प्रयोग में लाया जाना चाहिए।

  • बैंकों की भूमिका –बैंक की प्रत्येक बड़ी शाखा को कम-से-कम एक बड़ी तहसील को अपनाना होगा। इनसे प्रत्येक किसान को इतना ऋण मिले कि वह पशुधन के साथ अपनी उपज बेचने के लिए वाहन का उपयोग कर सके। ऋण पर दो वर्ष की अधिस्थगन अवधि होनी चाहिए। इसके अलावा खाद्यान्न बैंक भी बनाए जाएं। जिनके पास कोल्ड स्टोरेज की सुविधा हो, किसान, उनमें अपनी उपज रखकर उसके में ऋण ले सकें। इससे वह बीज, खाद आदि खरीद सकेगा। सरकार को बैंकों की तरलता में आए अंतर को भरना होगा।
  • प्रथम व द्वितीय दर्जे के नगर – इन नगरों को निर्यात केन्द्र की तरह उपयोग में लाया जाना चाहिए। यहाँ उत्पादों की गुणवत्ता के परीक्षण की सुविधा हो। इन उद्योगों के लिए निर्यात क्रेडिट गारंटी योजना का विस्तार किया जाना चाहिए। निर्यात प्रोत्साहन राशि के तुरन्त संवितरण की व्यवस्था होनी चाहिए।

क्षेत्रीय संस्थानों को उद्योगों के साथ मिलकर ऐसे पाठ्यक्रम चलाने चाहिए, जिससे स्थानीय उद्योगों को निर्यात केन्द्रों की तरह विकसित करने हेतु कौशलयुक्त कार्यबल मिल सके। बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग के लिए सूचना प्रौद्योगिकी केन्द्रों की भी आवश्यकता होगी।

यद्यपि ग्रामीण क्षेत्रों और जिलों की प्रगति से बड़े शहर पनपेंगे। लेकिन नगरों की ओर लोगों का प्रवास कम हो जाएगा। गांवों और शहरों के बीच की दूरी भी कम हो जाएगी।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित अरूण फिरोदिया के लेख पर आधारित। 22 अक्टूबर, 2019

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