कुटुम्बश्री : एक प्रेरक मॉडल

Afeias
15 Oct 2018
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Date:15-10-18

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देश में जब श्री आपदाएं आती हैं, तब इनसे बचकर ऊपर उठने के प्रयास में अनेक हाथों का योगदान होता है। केरल में पिछले दिनों आई बाढ़ के दौरान एक ऐसे ही अनोखे समूह ने लोगों को पुनर्स्थापित करने में जो प्रयास किए, वे उदाहरण के लायक हैं। केरल के इस अनोखे समूह का नाम कुटुम्बश्री है।

कुटुम्बश्री समूह की शुरुआत 1998 में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माँ) के शासन काल में हुई थी। इसकी स्थापना लोक कल्याण एवं स्थानीय प्रशासन को स्वयंसेवी बनाने के उद्देश्य से महिलाओं को केन्द्र में रखकर की गई थी। इस संस्था का निर्माण तीन स्तरों पर किया गया। पहला स्तर बेसिक यूनिट है, जिसमें आस-पड़ोस के समूह आते हैं। ये असंख्य हो सकते हैं। इससे ऊपर एशिया डेवलपमेंट सोसायटी और उससे ऊपर कम्यूनिटी डवलपमेंट सोसायटी है। तीनों स्तरों के समूहों में सदस्यों की संख्या को निश्चित रखा गया है। बेसिक यूनिट में कम से कम पाँच तथा डवलपमेंट सोसायटी में 21 सदस्यों का होना अनिवार्य है। इस समूह के प्रत्येक सदस्य को मताधिकार प्राप्त है, और सदस्यों का चुनाव इसी अधिकार के अंतर्गत किया जाता है।

समूह की विशेषता

इस समूह की विशेषता यह है कि इसमें गरीबी रेखा से नीचे या अपेक्षाकृत गरीब वर्ग की महिलाओं को शामिल करने को प्राथमिकता दी जाती है। दलित और आदिवासी महिलाओं के लिए आरक्षण की भी व्यवस्था है। इनकी सहायता करने हेतु जिला एवं राज्य स्तर पर सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है। अतः इस समूह में सामाजिक प्रतिनिधित्व के साथ-साथ राजकीय नेतृत्व भी है।

इस समूह के अंतर्गत राज्य भर की लगभग चार लाख महिलाएं शामिल हैं। केरल में आई आपदा के बाद यह समूह तुरंत ही गतिशील हो गया। आनन-फानन में 7,000 महिलाओं ने राहत कार्य शुरू कर दिया। कुटुम्बश्री की 38,000 महिलाओं ने पीड़ितों को आश्रय देने के लिए अपने घरों के द्वार खोल दिए। शहरों में फैली गंदगी साफ करने से लेकर, राहत सामग्री बांटने और लोगों को आपदा में हुई हानि के शोक से ऊपर उठने में मदद करने का बीड़ा इस समूह ने उठाया। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री राहत कोष में 7.4 करोड़ रुपये भी दिए। इस समूह द्वारा किया गया यह योगदान अभूतपूर्व है।

अन्य राज्यों के मॉडल

अन्य राज्यों में भी महिलाओं द्वारा संचालित कई स्वयं सहायता समूह बने, जिनमें संभ्रांत वर्ग की महिलाओं का प्रभुत्व रहा। गरीब, दलित और आदिवासी महिलाओं को इन समूहों में कोई निर्णयात्मक अधिकार नहीं दिए गए थे। धीरे-धीरे इन समूहों के सदस्य, अनेक कारणों से समूह छोड़ते गए, और ये विफल होते गए।

जबकि केरल का कुटुम्बश्री समूह एक आदर्श की तरह बढ़ता चला जा रहा है। यह समूह सामुदायिक संबंधों को मजबूत करता हुआ ऑर्गेनिक सब्जियों का उत्पादन, मुर्गी पालन, डेयरी, केटरिंग और सिलाई के छोटे-मोटे उद्यम भी चलाता है। आज, केरल में इस समूह के खेतों को कृषि उत्पादन में कायाकल्प करने वाला माना जाता है। समूह के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में महिलाओं को काम का प्रशिक्षण देने के साथ-साथ महिला अधिकारों, संवैधानिक व कानूनी प्रावधानों, बैंक संबंधी काम-काज तथा कौशल-विकास आदि भी सिखाया जाता है।

यद्यपि इस समूह की शुरुआत वामपंथी दल ने की थी, परन्तु यह समूह किसी राजनैतिक संस्था से संबंध नहीं रखता। इस ‘मेड इन केरल’ मॉडल को पूरे भारत में चलाया जाना चाहिए।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित वृंदा करात के लेख पर आधारित। 17 सितम्बर, 2018