कीटनाशकों का दुष्प्रभाव

Afeias
16 Nov 2017
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Date:16-11-17

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हाल ही में महाराष्ट्र में कीटनाशकों के जहर के कारण लगभग 40 किसानों की मृत्यु हो गई और 700 को अस्पताल में भर्ती किया गया। किसानों की मृत्यु का कारण मोनोक्रोटोफॉस कीटनाशक को बताया गया। अत्यंत दुखद है कि ये जहरीले कीटनाशक इतने खतरनाक हैं कि इस जहरीले कीटनाशक को 60 से अधिक देशों में प्रतिबंधित किया गया है। परन्तु हमारे देश में इसे बेचने की अनुमति है। ज्ञातव्य हो कि यही वह कीटनाशक है, मिड डे मील में जिसकी मिलावट से 2013 में बिहार के 23 बच्चों की मृत्यु हो गई थी। अमेरिका में 1991 में ही बड़ी संख्या में पक्षियों की मृत्यु के कारण इसे प्रतिबंंधित कर दिया गया था।

  • भारत में कीटनाशकों की बिक्री एवं उपयोग में नियमन की बहुत कमी है। आधिकारिक अनुमान के अनुसार कीटनाशकों के कारण प्रतिवर्ष 10,000 लोग मारे जाते हैं।
  • कीटनाशकों का दुष्प्रभाव सबसे अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में होता है। छिड़काव करने वाले व्यक्ति पर इसका सीधा असर पड़ता है। एक अध्ययन के अनुसार बिहार में गंगा किनारे रहने वाली ग्रामीण महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे ज्यादा पाया जाता है।
  • बच्चों के विकास पर भी इसका दुष्प्रभाव साफ देखा जा सकता है।
  • स्पेन में एक अध्ययन में कीटनाशकों के कारण वयस्कों में टाइप-2 डायबिटीज होना बताया गया है। 2015 में कैंसर पर काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने बताया है कि कई प्रकार के कीटनाशक कैंसर का कारण बनते हैं।
  • भारत में सैद्धान्तिक रूप से किसानों को कृषि एजेंटों के माध्यम से कीटनाशकों की मात्रा के बारे में शिक्षित करने की बात कही जाती है। पर असल में कृषकों को इसकी सलाह स्थानीय दुकानदार देता रहता है, जो स्वयं शिक्षित नहीं होता।
  • केन्द्रीय कीटनाशक बोर्ड फसलों के लिए कीटनाशकों को पंजीकृत करता है एवं FSSAI पंजीकरण के अनुसार फसल पर कीटनाशक की अधिकतम मात्रा तय करता है। विडंबना यह है कि किसान तो दुकानदार की सलाह के अनुसार ही काम करता है। अगर वह गोभी पर किसी अन्य कीटनाशक का प्रयोग करता है, तो एफ एस एस ए आई की अधिकतम सीमा का काई मूल्य नहीं रह जाता और इस कारण कई बार फसल जहरीली हो जाती है।
  • भारत में 2011 में ही एण्डोसल्फान की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके तीन साल बाद भी बिहार में लीची खाने से कुछ बच्चों की रहस्यमयी मौत हो गई थी। इसका संदेह लीची पर एंडोसल्फान के छिड़काव पर ही जाता रहा है।
  • हम ऐसे 93 रसायनों की बिक्री की स्वीकृति दे ते हैं, जिन्हें अधिकतर विकसित देशों के साथ-साथ नेपाल और बांग्लादेश में भी प्रतिबंधित किया गया है। इसके अलावा 18 ऐसे रसायन हैं, जिन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घातक बता रखा है।
  • सरकार ने कीटनाशकों के संबंध में वर्मा समिति बनाई थी, जिसने 2015 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। परन्तु उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है।

अधिकतर विकसित देशों में हर पाँच सालों में कीटनाशकों के प्रभाव की समीक्षा की जाती है। परन्तु भारत में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

माना कि हमारे पास इनकी समीक्षा के पर्याप्त साधन नहीं हैं। तो क्या हम विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं अन्य देशों के अनुभवों से नहीं सीख सकते ? आखिर हमारे नीति-निर्माता इन प्राणघातक रसायनों से हमें कब मुक्ति दिलाएंगे?

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित रीना गुप्ता के लेख पर आधारित।

 

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