किसानों की समस्याएं और उनके समाधान के लिए प्रयासरत सरकार
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हाल ही में मध्यप्रदेश में किसानों के उग्र होने और उनमें से पाँच के मारे जाने की चर्चा देश भर में हो रही है। वर्तमान सरकार को इसके लिए दोषी करार दिया जा रहा है। वास्तविकता यह है कि किसानों की खराब हालत के लिए केवल वर्तमान सरकार की नीतियों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। दशकों तक चले यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान ही किसानों की आत्महत्याओं में बहुत ज़्यादा वृद्धि हो गई थी। कृषि वृद्धि दर गिरकर 2% से भी कम रह गई थी। देश में किसानों को उग्र हिंसा तक पहुँचाने के लिए कोई एक राजनैतिक दल जिम्मेदार नहीं है। इसके पीछे बहुत से कारण हैं और उनका समाधान करने का भी प्रयत्न किया जा रहा है।
- किसानों की दयनीय दशा को देखते हुए अनेक राज्य कृषि ऋण को माफ करने की दिशा में कदम उठा रहे हैं। परंतु यह दीर्घकालीन समाधान नहीं कहा जा सकता। आरबीआई के गवर्नर ने भी संकेत दिया है कि ऋण माफी के कारण राजकोषीय घाटा बहुत बढ़ सकता है।
- सरकार ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। इस संदर्भ में फसल बीमा योजना अभूतपूर्व है। सभी मौसमों में प्रत्येक फसल के लिए बीमा योजना का लाभ उठाया जा सकता है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत सरकार ने 50,000 करोड़ व्यय करके आवश्यकतानुसार खेतों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयत्न किया है। किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड बांटे गए है। ई-नाम (E-NAAM) के द्वारा सभी कृषि – बाजारों को आपस में जोड़ दिया गया है। इससे वे अपनी फसल को अच्छे मूल्यों में बेचने के लिए स्वतंत्र हैं।
- सभी फसलों का समर्थन मूल्य बहुत बढ़ा दिया गया है। खास तौर पर दालों के समर्थन मूल्य में बहुत वृद्धि की गई है। मध्यप्रदेश की सरकार ने इस दिशा में कानून भी बना दिया है। वहाँ पर न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे की खरीदी को अपराध माना जाएगा।
- बिजली से वंचित गांवों में बिजली पहुँचाने हेतु एक व्यापक मिशन चलाया गया है।
- किसानों को अपने उत्पादों की शीघ्र ढुलाई के लिए गांवों की सड़कों में सुधार किया गया है।
- किसानों को नई तकनीकों की जानकारी देने के लिए दूरदर्शन ने अलग से ‘किसान चैनल‘ की शुरूआत की है।
जहाँ तक अकेले मध्यप्रदेश की बात है, तो वहाँ की सरकार ‘कृषक -मित्र‘ सरकार कही जा सकती है। पिछले कुछ वर्षों में वहाँ की कृषि में 20% की बढ़ोतरी देखी गई है। ब्याजरहित कृषि-ऋण और किसानों को कम-से-कम दस घंटे बिजली उपलब्ध कराने की दिशा में मध्यप्रदेश सरकार ने उपलब्धि हासिल की है। सरकार ने क्षिप्रा नदी को नर्मदा से जोड़कर किसानों को पर्याप्त जल देने का रास्ता आसान कर दिया है।मध्यप्रदेश में उपजी वर्तमान समस्या फसल के अतिरिक्त उत्पादन की है। दाल, प्याज, सोयाबीन आदि के बम्पर उत्पादन के कारण किसानों को अपनी फसल का अभीष्ट मूल्य नहीं मिल पाया। यही उनके उग्र होने का कारण बन गया।वर्तमान केंद्र सरकार किसानों की प्रत्येक समस्या के लिए समग्र रूप से प्रयासरत है। इसके लिए वह गोदामों का निर्माण, कोल्ड स्टोरेज, रेफ्रीजरेटर वैन, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, सार्वभौमिक फसल बीमा, विद्युत आपूर्ति, समय पर ऋण और बाज़ार उपलब्ध कराने की कोशिश में लगी हुई है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया‘ में प्रकाशित एम. वैंकैया नायडू के लेख पर आधारित।