कसौटी पर खरी उतरती भारतीय कूटनीति

Afeias
03 Jan 2018
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Date:03-01-18

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बीते दिनों केन्द्र सरकार ने अपनी विदेश नीति के अंतर्गत अनेक कूटनीतिक कार्यक्रमों को अंजाम दिया है। भारत की इस बहुदिशात्मक विदेश नीति में नए भारत के उदय के चिन्ह दिखाई देते हैं, जो उसे बहुध्रुवीय विश्व की ओर ले जाएंगे।

  • सर्वप्रथम, बिम्सटेक (बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल एवं श्रीलंका के अलावा दो दक्षिणी एशियाई देश बर्मा और थाईलैण्ड) के 20वें सालगिरह को ‘बोधि पर्व’ के रूप में मनाया गया।
  • आसियान (दक्षिण एवं पूर्वी एशिया देशों का समूह) का सम्मेलन संपन्न हुआ। इसमें भारत के अलावा दस अन्य देश सम्मिलित हैं।
  • पिछले 15 वर्षों से चले आ रहे रशिया, चीन और भारत के त्रिकोणीय सम्मेलन की मेजवानी भारत ने की। इसी प्रकार का एक त्रिभुज भारत, जापान और आस्ट्रेलिया के बीच बना हुआ है। इन तीनों देशों के राजनयिक पिछले तीन वर्षों से नियमित रूप से बैठकें करते रहे हैं। आस्ट्रेलिया एवं भारत के रक्षा एवं विदेश सचिवों के बीच भी वार्ता होती रही है।
  • इसी बीच भारत ने ब्रिटेन के प्रिंस चाल्र्स की अगवानी की। राष्ट्रमंडल के महासचिव को भी आमंत्रित किया गया। इन देशों में भारत की भागीदारी बढ़ाए जाने को भी सुनिश्चित किया गया।
  • हाल ही में भारतीय-प्रशांत क्षेत्र के चतुर्भुज; जिसमें अमेरिका, जापान, भारत और आस्ट्रेलिया शामिल हैं, से राजनीतिक जगत में भारत के गुट-निरपेक्ष आंदोलन के प्रति प्रतिबद्धता के लिए संदेह का माहौल बनने लगा था। ऐसा संदेह किया जाने लगा था कि कहीं भारत अमेरिका के प्रति झुकाव न दिखाने लगे। परन्तु भारत रशिया और चीन से अपने रिश्तों का सुलझा हुआ रखना चाहता है। इनके बीच आपसी सहयोग को बढ़ाना और मतभेदों को खत्म करना चाहता है।
  • परंपरावादी राजनीतिज्ञों की विदेश नीति से अलग भारत बदलते विश्व में अपना स्थान सुरक्षित कर लेना चाहता है।
  • शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से व्यावहारिकता एक अनिवार्यता बन गई है। पश्चिम से जुड़ने तथा अमेरिका, जापान या रूस के साथ मिलकर त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय समूह बनाए जाने की शुरूआत पी.वी.नरसिंह राव और अटल बिहारी बाजपेयी के समय हो चुकी थी। वर्तमान प्रधानमंत्री ने उन कार्यक्रमों में जान फूंक दी है एवं पूर्व के अवरोधों को दूर कर दिया है।
  • शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् ही भारत ने गुट निरपेक्ष आंदोलन से अलग जी-20, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, ब्रिक्स एवं शंघाई कोआपरेशन आर्गनाइजेशन से जुड़ना शुरू किया। इतने वर्षों तक राष्ट्रमंडल देशों से अलग रहने के बाद अब भारत उस मंच की ओर सकारात्मक दृष्टि रखता है, जिसमें 50 सदस्य देश होंगे।

वर्तमान परिपेक्ष्य में भारत विश्व की बेहतरीन अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जिसकी सैन्य-शक्ति भी बढ़ती जा रही है। भारत उस स्थिति में है, जब वह शक्ति आधारित राजनीति को प्रभावित करने के साथ-साथ भारतीय-प्रशांत क्षेत्र एवं यूरेशिया में भी शक्ति-संतुलन बनाए रख सकता है।

भारत की संजोई बहुधु्रवीय विश्व की संकल्पना साकार होती दिखाई दे रही है। किसी एक या द्वय शक्ति से नियंत्रित विश्व की तुलना में बहुध्रुवीय विश्व में अधिक अस्थिरता बनी रहती है। अतः भारत को चाहिए कि वह बहुपक्षीय एवं द्विपक्षीय मंचों पर अपनी स्थिति को सशक्त बनाए रखे।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित सी. राजा मोहन के लेख पर आधारित।