एशियाई राजमार्ग पर चीन और भारत की साझेदारी की आवश्यकता

Afeias
08 Jun 2018
A+ A-

Date:08-06-18

To Download Click Here.

एशिया के तमाम असैनिक मामलों में विवादों का एक बहुत बड़ा कारण इस क्षेत्र के दो दिग्गजों; भारत और चीन का आपस में खुलकर बात न करना, सहयोग और समन्वय न करना है। इस बीच हाल ही में सम्पन्न हुए शंघाई कॉरपोरेशन ऑर्गनाइजेशन के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का चीन की बेल्ट रोड नीति को खारिज करना एक रणनीतिक कदम माना जा सकता है।

  • 23 अप्रैल को शुरू हुए बांग्लादेश-भूटान-नेपाल-भारत (बी बी आई एन) मोटर वाहन समझौते के अंतर्गत पहला ट्रायल रन प्रारंभ हुआ है। इस माध्यम से एशिया के छोटे देशों के आपसी सम्पर्क बढ़ाने में भारत ने अहम् भूमिका निभाई है। इससे इन देशों के राजनीतिक अवरोध की स्थिति से बचा जा सकेगा।
  • दक्षिण एशिया के देशों में आपसी सम्पर्क की कमी के कारण यहाँ का अंतर्क्षेत्रीय व्यापार बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। इस विश्व की 1.8 अरब जनसंख्या रहती है। परन्तु अंतर्क्षेत्रीय व्यापार मात्र 5 प्रतिशत होता है।

क्षेत्र में करमुक्त बैरियर का भारी अभाव है। इसके लिए बुनियादी ढांचों का अभाव जिम्मेदार है। इनके तैयार होते ही 80 प्रतिशत बैरियर की समस्या सुलझ जाएगी।

  • व्यापार को बढ़ाने के लिए क्षेत्र के देशों के लोगों के बीच व्यक्तिगत सम्पर्क को बढ़ाया जाना चाहिए। इससे उनमें आपसी समझ, सहिष्णुता एवं बेहतर कूटनीतिक संबंध विकसित हो सकेंगे।
  • दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों को, चीन और भारत के नेतृत्व में चलने वाले अनेक कार्यक्रमों की धीमी प्रगति के कारण इनका लाभ नहीं मिल पा रहा है। बंगाल की खाड़ी के अनेक बंदरगाहों और जलमार्गों को व्यापार की बढ़ोत्तरी के काम में नहीं लिया जा रहा है।

भारत के नेतृत्व में चलने वाले बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एण्ड इकॉनॉमिक कॉरपोरेशन (बिम्सटेक) में एशिया के कई देश सम्मिलित हैं। यद्यपि विश्व व्यापार की दृष्टि से बंगाल की खाड़ी अति महत्वपूर्ण हो गई है। परन्तु विकास नहीं हो रहा है। इस दिशा में बिम्सटेक एनर्जी सेंटर और ट्रांस पावर एक्सचेंज एवं विकास पर बने कार्यबल से कुछ उम्मीद जगी है।

  • चीन ने बेल्ट रोड की योजना चला रखी है। अगर चीन और भारत सहयोग एवं समन्वय के साथ बेल्ट रोड, बिम्सटेक और बी बी आई एन जैसी योजनाओं को अंजाम देते है तो परिणाम कुछ अधिक सकारात्मक दिखाई दे सकते हैं।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित सैयद मुनीर खसरू के लेख पर आधारित। 22 मई, 2018