उत्तर-पूर्वी राज्यों की विकास-यात्रा
Date:12-07-18 To Download Click Here.
पिछले दो-तीन वर्षों में सरकार ने उत्तर-पूर्वी राज्यों में अभूतपूर्व विकास किया है। आठ राज्यों को समेटे हुए यह क्षेत्र; विविधता लिए हुए लगभग 200 स्वदेशी नृजातीय समूहों को अपने में समाहित करता है। भारतीय भू-भाग के इस 8 प्रतिशत क्षेत्र की जनता 4.6 करोड़ है। अथाह प्राकृतिक संपदा का स्वामित्व रखने के बाद भी अन्य संसाधन और कौशल की कमी के कारण यह आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है। स्वतंत्रता के पश्चात् प्रधानमंत्री नेहरू के उत्तर-पूर्वी राज्यों के सलाहकार वेरियर एलविन ने क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए एक राजनैतिक दृष्टिकोण की बात कही थी। पंचशील सिद्धांतों में इस दृष्टिकोण का प्रतिबिंब भी मिलता है। तब से लेकर 2014 तक, जहाँ पूरे देश में तेजी से औद्योगिकीकरण किया गया, वहीं इस क्षेत्र के लिए क्रमिक विकास की नीति अपनाई गई।
- 2014 से पहले भारत के रेल-नक्शे में अरुणाचल प्रदेश का कोई अस्तित्व ही नहीं था। अब वहाँ नियमित रेल-सेवाएं हैं।
- सिक्किम में विमानतल तैयार हो चुका है। व्यावसायिक उड़ानें भी जल्द ही फिर से शुरू होने वाली हैं।
- उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) योजना के तहत् इस क्षेत्र में 92 नए हवाई मार्गों पर यात्रा प्रारंभ की जाएगी।
- 2017 में क्षेत्र की सड़कों के लिए 1.45 खरब रुपये के निवेश की घोषणा की गई है। असम और अरूणाचल प्रदेश को जोड़ते हुए 9 कि.मी. लंबे भूपेन हजारिका सेतु का निर्माण किया गया है। इसी प्रकार देश के सबसे लंबे पुल बोगीबिल ब्रिज का निर्माण भी जल्द ही पूरा होने वाला है।
- डिजीटल संपर्क में भारत नेट के द्वारा 2019 तक यहाँ अभूतपूर्व परिवर्तन किए जाएंगे।
- पनबिजली के क्षेत्र में, 1200 मेगावाट की तीन योजनाएं सिक्किम में और 60 मेगावाट की एक परियोजना मिजोरम में शुरू की जाने वाली है। अरूणाचल में भी 710 मेगावाट की दो परियोजनाओं का जल्द ही परिचालन किया जाएगा।
- मार्च, 2018 में लाई गई उत्तर-पूर्वी औद्योगिक विकास नीति, पाँच वर्षों तक आयकर से छूट के साथ-साथ वस्तु व सेवा कर में छूट, परिवहन सब्सिडी एवं अन्य यहाँ के हितों की झलक दिखाती हैं। इससे देश-विदेश के उद्यमियों की इस क्षेत्र में निवेश करने में रुचि बढ़ेगी।
- यह क्षेत्र देश की एक्ट ईस्ट नीति का भी आधार है। म्यांमार, थाईलैण्ड, सिंगापुर और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय बुनियादी ढांचा योजनाओं के द्वारा व्यापार एवं अन्य तरह के आर्थिक संपर्क बढ़ाए जा सकते हैं।
भारत सरकार को अब उत्तर-पूर्वी राज्यों व देश के अन्य भागों के लोगों के बीच भावनात्मक मेल-जोल पर काम करने की जरूरत है। इसको अमल में लाने के लिए संपर्क-साधनों का विकास किया जा रहा है। क्षेत्र की युवा पीढ़ी, भारत की विकास-यात्रा में कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहती है। हमें, ध्यान इस बात का रखना है कि विकास के इस पावन यज्ञ में यहाँ की नृजातियों की स्वाभाविकता को भी सुरक्षित रखा जा सके।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित आशीष कुन्द्रा के लेख पर आधारित। 30 जून, 2018