उच्च न्यायालयों में मामलों को वैज्ञानिक तरीके से सूचीबद्ध करना जरूरी है।

Afeias
19 Jul 2018
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Date:19-07-18

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हाल ही में उच्चतम न्यायालय की एरियर कमेटी ने उच्च न्यायालय में लंबित पड़े मामलों का खुलासा किया है। इसको देखते हुए सर्वोच्च न्यायधीश दीपक मिश्र ने उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया है कि 5-10 साल पुराने मामलों को निपटाने के लिए कार्ययोजना बनाई जाए। उन्होंने एरियर कमेटी से कार्ययोजना पर समय-समय पर नज़र रखने को भी कहा है। इस समस्त प्रक्रिया में न्यायिक प्रदर्शन और जवाबदेही का ध्यान रखा जाना अत्यंत आवश्यक है।

सदियों से न्यायालयों को मामले निपटाने की क्षमता पर आंका जाता रहा है। इससे न्यायिक निर्णयों की गुणवत्ता परोक्ष हो जाती है। दूसरे, ऐसी स्थिति में न तो मामलों की प्रकृति पर ध्यान दिया जाता है, और न ही यह देखा जाता है कि किस प्रकार के मामले सबसे ज्यादा लंबित पडे हुए हैं। इस समस्या से निपटने के लिए न्यायालयों को ही अपने केस के डाटा को खंगालकर यह पता करना होगा कि किस विशेष प्रकार के मामले सबसे ज्यादा हैं या किस स्तर पर आकर मामलों पर कार्यवाही रुकने से यह इकट्ठा हो रहा है।

सूचीबद्ध करने की तकनीक की खामियां

एक उच्च न्यायालय के पाँच वर्षों के डाटा का रिकार्ड खंगालने पर पता चला कि (1) लिस्टिंग पैटर्न ही अनियमित है। एक ही कोर्टरूम के लिए 1-126 तक के मामलों की सुनवाई निर्धारित की गई है, जबकि दूसरे में 80-120 केस प्रतिमाह की सुनवाई की जा रही है। (2) एक ही दिन में बहुत ज्यादा मामलों को डाल देने से वे दिन के अंत तक लंबित ही रह जाते हैं। अतः अंतिम पड़ाव पर चल रहे मामलों की सुनवाई रुक जाने से जाम लग जाता है। (3) पुराने मामलों को अक्सर टाला जाता है। डाटा बताते हैं कि इनमें से 91% मामले लटके पड़े हैं। इसका कारण इनका दिन की दूसरी पारी में होना बताया जाता है। उस दौरान अक्सर ही अन्य आवश्यक मामलों पर काम होने लगता है। वकील भी उन पुराने मामलों पर काम नहीं करना चाहते, जहाँ मुवक्किल ही पीछे हट गया हो, या उसने पैसे देने बंद कर दिए हों।

 समाधान क्या हो सकता है ?

  • सबसे पहले लिस्टिंग की प्रक्रिया को व्यवस्थित किया जाना चाहिए। मामलों की प्रकृति को देखकर, उनके चरण को समझकर, और यह जानकर कि कौन सा मामला लंबा समय ले रहा है, लिस्टिंग की प्रक्रिया को वैज्ञानिक बनाया जा सकता है। इससे प्रतिदिन निपट सकने वाले मामलों का अनुमान लगाकर ही लिस्टिंग की जा सकेगी।
  • मामलों के प्रकार और उनके चरण के अनुसार लिस्ट में वितरण किया जाए, क्योंकि इनमें न्यायाधीशों को अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है। वर्तमान में ऐसी सुनवाई सूची के अंत में रखी जा रही हैं।
  • पुराने और लंबित मामलों का निपटारा जल्द-से-जल्द किया जाए। फिलहाल उच्च न्यायालयों में पुराने मामलों की सुनवाई के लिए सप्ताह में दो दिन निर्धारित हैं। नए मामलों की सुनवाई जल्दी-जल्दी की जाती है, परंतु पुराने मामलों में यह धीमी गति ले लेती है। इससे बचने का अच्छा रास्ता यही है कि तुच्छ कारणों को लेकर स्थगन न करने दिया जाए।

मामलों की लिस्टिंग या सूचीबद्ध करने को वैज्ञानिक बनाने के अनेक लाभ होंगे। सभी न्यायालयों में एक निश्चित मानक काम कर सकेंगे। यह मनमानी करने वाले न्यायाधीशों को सूचीबद्ध मामलों की संख्या और प्रकृति में विवेकाधीन प्रथाओं का उपयोग करने से रोकने में मदद करेगा। यह निष्पक्षता को बढ़ावा देगा। इससे न्याय की गुणवत्ता में सुधार होगा। अप्रैल माह में ही उच्चतम न्यायलय ने न्याय की गुणवत्ता खराब होने की स्थिति में, एक मामले को वापस उच्च न्यायालय को भेज दिया था।

अब समय आ गया है, जब न्यायपालिका को चाहिए कि वह एक संस्था के रूप में अपने को स्वस्थ और सुव्यवस्थित बनाने के लिए अन्य बाहरी एजेंसियों की मदद ले, जिससे उसके डाटा का बेहतर तरीके से प्रबंधन किया जा सके।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित अमृता पिल्लई और सुमति चंद्रशेखरन के लेख पर आधारित। 3 जुलाई, 2018