आम जनता के लिए बंधन ही बंधन हैं

Afeias
04 Jul 2017
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Date:04-07-17

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भूमि पर प्रतिबंध

सार्वजनिक भू-संपत्ति सदैव ही विवाद का विषय रही है। भूमि के उद्भव के साथ कोई हदें नहीं थीं, और न ही कोई घेराबंदी थी। यह सब तो बाद में ऊपजी हक़ीकत बनी।आज स्थिति यह है कि जनता के पैर न केवल निजी क्षेत्र के अतिक्रमण से बंधे हुए हैं, बल्कि राज्य सरकारें भी ऐसे प्रयास करने में पीछे नहीं हैं।

हाल ही में चेन्नई के ऐन्नोर क्रीक में राज्य सरकार ने जनता के लिए प्रतिबंध लगाकर इसी बात का उदाहरण दिया है। अगर हम तटीय नक्शे पर गौर करें, तो उसमें स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है कि समुद्री क्षेत्र से लगती भूमि के 8,000 एकड़ क्षेत्र पर कोई विकास कार्य नहीं किया जा सकता। परन्तु इस क्षेत्र पर अनेक तेल कंपनियां तथा थर्मल प्लांट लगाए जा चुके हैं। यह क्षेत्र वैटलैंड कंसर्वेशन एण्ड मैनेजमेंट नियम 2010 के अंतर्गत आता है। हम जानते हैं कि जल विज्ञानी तत्व के लिए वैटलैंड कितने जरूरी हैं। चेन्नई के ही समुद्री किनारों पर कुछ गरीब बच्चों के सॉकर मैच के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया गया। कारण चाहे कछुओं के जीवन में बाधा आने का रहा हो, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 39(एफ) में राज्य को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि ‘बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए वह उन्हें पर्याप्त अवसर दे।’ ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि आज कांक्रीट के जंगलों में फंसे बच्चों के लिए क्या सार्वजनिक मैदान मुहैया नहीं कराए जा सकते?

बौद्धिक संपदा या सृजनात्मकता पर प्रतिबंध

भूमि की ही तरह बौद्धिक संपदा की सिकुड़न भी जनता के लिए हानिकारक सिद्ध होती हैं। सृजनात्मकता के सार्वजनिक होने का अर्थ एक अपेक्षाकृत समान और अन्वेषणयुक्त संसार बनाने के लिए ज्ञान और सृजनात्मकता की साझेदारी से है। बौद्धिक संपदा में कॉपीराइट के पीछे का दर्शन खुलेपन और साझेदारी से है। इसमें किसी प्रकार की मुद्रा नीति या प्रतिबंध नहीं होना चाहिए। भारतीय बौद्धिक संपदा कानून के संबंध में एक ब्लॉग में लिखा गया था कि ‘इस प्रयास का अर्थ हर बच्चे के हाथ में पुस्तक पहुँचाना है।’

सन् 2006 की विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में तो यह कहा गया था कि भारत जैसे विकासशील देशों को बौद्धिक संपदा संबंधी प्रतिबंधों को अधिक लागू नहीं करना चाहिए। इस प्रकार के प्रतिबंधों से तकनीक और अन्वेषण का लाभ उपभोक्ताओं (जो कि आम जनता होती है) को नहीं मिल पाता। ये वे लोग होते हैं, जो अधिकतर गरीब हैं।

न्यायिक क्षेत्र में प्रतिबंध

हमारी जनता को एक अन्य सार्वजनिक क्षेत्र न्याय से भी दूर किया जा रहा है। क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के अनुच्छेद 327 में स्पष्ट कहा गया है कि ‘किसी आपराधिक मुकदमे की कार्यवाही के लिए क्रिमीनल कोर्ट बनाया जाए, तो उसे जनता के लिए खुला रखना होगा।’ न्याय सबकी पहुँच में होनी चाहिए। लेकिन यह भी प्रतिबंधित और सीमित होती जा रही है, जो कि प्रजातंत्र के विरूद्ध है।स्पष्ट तौर पर कुछ स्थान आम जनता के लिए खुले और सीमाओं से परे होने चाहिएं। लेकिन हम इससे दूर किए जा रहे हैं।

हिंदू में प्रकाशित प्रभा श्रीदेवन के लेख पर आधारित।