अपराध और विकास

Afeias
13 Mar 2018
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Date:13-03-18

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विकास के साथ अपराध बढ़ने का कुछ विचित्र संबंध है। नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति एक लाख जनसंख्या पर 379 अपराध हुए। गत वर्षों की तुलना में यह वृद्धि दर्शाता है।अधिकांश लोगों का मानना है कि सरकार के विकास एजेंडे में अपराध नियंत्रण एवं उसमें कमी लाने का लक्ष्य होना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि जीवन की गुणवत्ता में सुधार करके अपराध की संख्या एवं उसके स्तर को कम किया जा सकता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री गैरी बेकर ने आपराधिक गतिविधि को किसी अन्य आर्थिक गतिविधि की तरह मानते हुए कहा है कि किसी भी अपराधी का अपराध करने का निर्णय लागत-लाभ पैमाने पर निर्भर करता है।

अपराध और विकास के बीच के उल्टे संबंध पर अनेक अध्ययन सामने आए हैं। संयुक्त राष्ट्र की ड्रग्स एण्ड क्राइस पर एक रिपोर्ट में बताया गया कि गरीब देशों की तुलना में अमीर देशों में आक्रामक अपराधों की संख्या कम है। भारत के संबंध में अपराध और विकास के विस्तृत संदर्भ में देखने पर पता लगता है कि विकास के साथ-साथ अपराध भी उतने ही बढ़ते रहे हैं। हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल और कर्नाटक जैसे अपेक्षाकृत धनी राज्यों में अपराध की दर अधिक है।यहाँ तक कि आतंकवाद से पीडित राज्य असम में भी यही स्थिति है। यहाँ 2004-05 और 2012-13 में प्रति व्यक्ति आय बढ़ने के साथ ही अपराध में भी बहुत वृद्धि हुई। जिला स्तर पर भी यही प्रवत्ति देखी गई।अपराधों से कानून के शासन पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। लोगों के अंदर निजी संपत्ति की सुरक्षा को लेकर संदेह पैदा होने लगता है। इससे आर्थिक व्यवस्था डगमगा जाती है। साक्ष्य यह भी बताते हैं कि अपराध के कारण घरेलू और विदेशी निवेश पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सुरक्षा पर अधिक निवेश किए जाने की स्थिति में लाभांश कम हो जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि अपराध का विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

दूसरी ओर, अपराध में कमी को विकास के प्रभाव से नापना आसान काम नहीं है। समृद्ध राज्यों में अपराध बढने का संबंध इसके बढे हुए सूचना और पंजीकरण से भी हो सकता है। विकास के कारण लोग साक्षर बनते हैं। स्कूल छोडने वालों की संख्या कम हो जाती है तथा पिछडे वर्ग का सशक्तीकरण होता है। इससे वहाँ के निवासी कानून-व्यवस्था को समझकर, उस तक पहुँच बनाने लगते हैं।इसके उलट, आर्थिक गतिविधियों के विभिन्न मार्ग खुलने के साथ ही अगर कानून-व्यवस्था की स्थिति को भी विकसित और समृद्ध नहीं किया जाता, तो अपराध बढ़ने की संभावना हो जाती है।विकास के साथ-साथ नागरिकों को उसका लाभ पहुँचाने के लिए नीति-निर्माताओं को चाहिए कि वे उस अनुपात में श्रमशक्ति और सुविधाएं बढ़ाते चलें, जिससे लोग अपेक्षाकृत कम अपराध वाले वातावरण में विकास का आनंद ले सकें।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित कुल सैकिया के लेख पर आधारित।