स्थानीय गति को तय करने के रास्तें

Afeias
27 May 2020
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Date:27-05-20

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कोविड-19 के चलते प्रधानमंत्री ने जिस प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की है, उसको चरितार्थ करने के लिए तीन आधार चाहिए। इन आधारों में नुमाइशी प्रौद्योगिकी को परिवर्तित करना, घरेलू उद्यमों में बढ़ोतरी करना और ऋण के प्रवाह को बनाए रखना है । अगर हम इस पर काम कर सकें , तो इस वित्तीय वर्ष में विकास दर को बनाए रख सकते हैं।

  • विकास की दिशा में सर्वप्रथम हमें कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी परिवर्तन की वास्तिविकता को उतारना होगा।
  • भूमि के अधिकार का डिजीटलीकरण करके न्यारयालयों के भार को कम किया जा सकता है।
  • खेत से घरों तक अन्न पहुँचाने के लिए ई-नाम सुपर किसान व अन्यो मंचों का सहारा लिया जा सकता है।
  • ऊर्ध्वाधर कृषि ( वर्टिकल एग्रीकल्च ) को भारतीय नगरों की खाद्य सुरक्षा का कोड़ बनाया जा सकता है। इससे हम सब्जियों, बेरियों आदि की मृदाहीन खेती कर सकते हैं। इसमें पानी की खपत भी बहुत कम होती है। उत्पादकता दस गुना बढ़ जाती है।
  • राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) को निधि देकर इस हेतु तैयार किया जा सकता है। वह फॉलो ऑन पब्लिक ऑफर (एफ पी ओ ) के लिए इक्विटी जारी कर सकता है। सूक्ष्मक, लघु और मझोले उद्योगों एवं अन्य उद्यमों की क्षमता को देखते हुए उन्हें ऋण मुहैया करा सकता है।
  • सूक्ष्मि, लघु और मझोले उद्योगों के लिए घोषित पैकेज से 5 लाख करोड़ रुपये के ऋण को उपलब्ध कराया जा सकेगा। अब घरेलू आपूर्ति श्रंखला को भी इसका लाभ मिल सकता है।
  • नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनीज (एनबीएफसी) के माध्याम से दिया जाने वाला ऋण भी सार्थक सिध्द हो सकता है। सरकार की गारंटी वाले इस चैनल को अधिक सुरक्षित बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए ऋण-आकलन और देखरेख को डेटा आधारित बनाया जाना होगा।
  • विनिर्माण की प्रक्रिया को वहाँ शुरू किया जाए , जहाँ श्रमिक पुनर्स्थामपित हो चुके हैं। अगर ऐसा होता है, तो भारत में लगभग एक लाख ऐसे नये स्थान विकसित हो सकेंगे।
  • सब्सिडी के माध्यम से कम कीमत पर उच्चे गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं।
  • भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को कम कीमत पर विश्‍वस्तणरीय माल तैयार करने के लिए 3डी प्रिंटिंग तकनीक की आवश्य्कता है।
  • वाहनों के लिए बायो ईंधन, इलैक्ट्रिक वाहनों के लिए बड़े पैमाने पर कदम उठाना, तथा खाद्यान्न के लिए पोषण बढ़ाने में बायो तकनीक का इस्तेमाल जैसी विभिन्नं प्रौद्योगिकी को उपयोग में लाए जाने की आवश्यकता है।

आज 30 करोड़ भारतीय गतिविधियों और हस्तशिल्प में संलग्न हैं। इसके अलावा वर्क फ्रॉम होम की संस्कृति बढ़ती जा रही है। इस पूरे वर्ग के लिए मार्केटिंग और प्रौद्योगिकी के नए तरीकों की खोज की जरूरत है। जिन योजनाओं के आर्थिक स्रोत सूख चुके हैं , उन्हें नगदी हस्तांतरण और लागत में सब्सिडी देकर पुनर्जीवित किया जा सकता है।

सरकार के आर्थिक पैकेज का कितना प्रभाव है, इसका मूल्यांकन उसके कार्यान्वयन के आधार पर ही किया जा सकता है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित शैलेश हरीभक्ति के लेख पर आधारित। 15 मई 2020