महिलाओं की भागीदारी बढ़ाएं

Afeias
28 May 2020
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Date:28-05-20

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भारत , लैंगिक समानता का एक शक्तिशाली पक्षधर रहा है। यह 2030 के धारणीय विकास लक्ष्यों में से एक लक्ष्य भी है। यह मूलभूत मानवाधिकार और समृध्द विश्वत के लिए अनिवार्य शर्त भी है। लगभग दो दशकों से यह यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम ( यू एन डी पी) के केन्द्रक में रहा है। भारत में भी 2010 से इस क्षेत्र में सक्रियता से काम किया जा रहा है। इसका लक्ष्य  लिंग , गरीबी एवं बहिष्काभर के बीच के अंतर्विरोधों को दूर करना है।

लैंगिक असमानताएं तो किसी को भी प्रभावित कर सकती हैं। इससे धारणीय विकास लक्ष्यों  की प्राप्ति में विलंब हो सकता है। इस प्रकार की असमानता का सामना सबसे अधिक स्त्रियों को ही करना पड़ता है।

कुछ तथ्य

  • भारत की महिलाएं अधिकतर असंगठित क्षेत्र या वेतन के बिना ही देखभाल वाले काम करती हैं। 2005 में महिला कार्यबल 36.5% था, जो 2018 में घटकर 26% पर आ गया। जबकि यदि कामकाजी महिलाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी की जा सके, तो यह पुरुषों की तरह ही सकल घरेलू उत्पालद में 27% तक की भागदारी कर सकती हैं।
  • 2018 से वंचित वर्ग की महिलाओं के सशक्तींकरण की दिशा में उन्हें कुशल बनाने के लिए समावेशी विकास और दिशा कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसमें निजी क्षेत्र की भी भागीदारी है।
  • कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय और यू.एन. डी.पी. के सहयोग से बिज़-सखी जैसा कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसमें कुछ महिला व्यवसायी, कस्बों और गांवों की महिलाओं को अपना व्यहवसाय शुरू करने में मदद दी जाती है।
  • प्रमुख भारतीय अर्थशास्त्री् अमर्त्य सेन ने अपनी पहली मानव विकास रिपोर्ट में कहा था कि, ‘तमाम प्रकार की गुलामी से मुक्ति ही विकास का रास्ता बनाती है।’ लैंगिक दृष्टिकोण निश्चित नहीं होता और समय के साथ बदलता रहता है। संस्कृति और कार्यक्रमों के बीच यह इधर-उधर होता रहता है। लैंगिक समानता के लिए बनाए जाने वाले कार्यक्रम इस दृष्टि से बनाए जाएं कि वे किसी व्यक्ति को उसकी भूमिका, दायित्व और निर्णयात्मक क्षमता में आने वाली बाधाओं को दूर कर सकें।

यूं तो भारत के प्रतिव्यिक्ति सकल घरेलू उत्पा्द में वृध्दि हुई है, परन्तु इसमें महिला कार्यबल की भागीदारी नहीं है।

  • ऑर्गनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक कोआपरेशन एण्ड डेवलपमेंट की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय पुरूष जहाँ 52 मिनट का अवैतनिक काम करते हैं, वहीं महिलाएँ 352 मिनट प्रतिदिन देती हैं।
  • पिछले कुछ वर्षों में गरीबी में कमी आई है। परन्तु वर्तमान में फैली दरिद्रता की मुख्य जड़ लैंगिक असमानता ही है। महिलाओं को कार्यबल में जोड़ने से उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होती है। वे अधिक आत्मानिर्भर और आत्मविश्वासी बनती जाती हैं।

वैश्विक स्तर पर देखें,  तो 2020 के मानव विकास परिप्रेक्ष्य  में 90% पुरुषों के अंदर महिलाओं को लेकर ही पक्षपात है। इसको खत्म करने का एक ही तरीका समझ में जाता है कि कस्बों और गांव-देहात की महिलाएं छोटे-मोटे उद्यम शुरू करें। युवतियों को भी अपने पैरों पर खड़े होने में मदद दी जाए। कैरियर गाइडेन्स और कांउंसलिंग की व्यवस्था हो। काम के क्षेत्र में मांग वाले कौशल विकास पर ध्यान दिया जाए। इसके लिए होने वाले कार्यक्रमों की समय-समय पर जानकारी दी जाए।

महिलाएं और युवतियां समाज को बदलने की क्षमता रखती हैं। हमारे समाज को ही उनके प्रति रवैये में ऐसा परिवर्तन करना होगा कि वे अपने लिए सही चुनाव करने को स्वतंत्र हो सकें।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित शोको नोडा के साक्षात्कार पर आधारित। 13 मई 2020

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