लापता बच्चे और मानव तस्करी
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देश में लापता बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यह समस्या अब राष्ट्रीय समस्या का रूप लेती जा रही है। आंकड़े बताते हैं कि प्रत्येक वर्ष देश में 60,000 से अधिक बच्चे लापता हो जाते हैं। पिछले साल उत्तरप्रदेश में 2,953 बच्चे लापता हुए। इन लापता बच्चों में लड़कियों की संख्या अधिक होती है। ऐसा अनुमान है कि इन लड़कियों को मानव तस्करी के काम में लाया जाता है। लापता बच्चों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है। इससे भी ज्यादा चिंता का विषय इन बच्चों के माध्यम से मानव तस्करी का बढ़ना है। इस समस्या का कोई ठोस उपाय जल्दी ही किए जाने की जरूरत है।
- किए गए उपाय
- सन् 2012 में नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने अपनी संस्था ‘‘बचपन बचाओ आंदोलन’’ की ओर से लापता बच्चों के बारे में उच्चतम न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की थी। इसके जवाब में उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र एवं राज्य सरकारों को खोए बच्चों के बारे में समय-समय पर सूचना देने का निर्देश दिया।
- इसी कड़ी में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने भी एक वेबसाइट बनाई है। इस वेबसाइट पर हर राज्य में लापता बच्चों की जानकारी है। इसमें हर राज्य के पुलिस थानों और लापता बच्चों के सुराग की भी जानकारी है। इसी प्रकार सरकार ने (Khoyapaya.gov.in) नामक वेबसाइट भी बनाई है, जिसमें लापता बच्चों की सूचना दर्ज की जा सकती है।
- सरकार के ये प्रयास सराहनीय हैं। अभी जनता में इन वेबसाइट के प्रति जागरुकता लाने की जरूरत है। दूसरे, इन वेबसाइट को सुचारू रूप से चलाने के लिए अधिक कर्मचारियों की नियुक्ति की भी आवश्यकता होगी।
- सरकारी उपायों और न्यायालय के आदेश के अतिरिक्त लापता बच्चों का सुराग लेने के लिए अनौपचारिक माध्यम से उनकी तस्वीरों को सोशल मीडिया पर भेजा जा रहा है।
- लापता बच्चे और मानव तस्करी
- राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (National Crime Report Bureau) के अनुसार हर साल मानव तस्करी में लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही है। इस माह के प्रारंभ में विधि आयोग द्वारा न्यायिक नीति पर जारी संक्षिप्त पुस्तक में भी इस समस्या पर प्रकाश डाला गया है। इस क्षेत्र में सबसे पहले लापता बच्चों का सुराग लेने और तस्करी से जुड़े सभी संपर्कों के लिए कानूनी बदलाव की तुरन्त आवश्यकता है। 2013 और 2014 के बीच कम से कम 6,700 बच्चे लापता हुए। इनमें से 45 प्रतिशत बच्चे अवयस्क थे, जिन्हें वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया गया।
- राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार मानव तस्करी के पीछे अनेक कारण होते हैं। जबरन विवाह, बाल श्रम, घरेलू नौकर और लैंगिक शोषण इसके पीछे मुख्य कारण हैं। मार्च 2016 में लोकसभा में दिए गए एक प्रश्न के उत्तर के अनुसार 2014-15 में बड़ी संख्या में अवयस्क लड़कियों को मुक्त कराया गया। इसमें सबसे ज्यादा संख्या में मध्यप्रदेश से मुक्त कराया गया।
- यदि ‘‘बचपन बचाओ आंदोलन’’ की बात मानें, तो लापता बच्चों की दी गई संख्या से 10 गुना ज्यादा बच्चे लापता हैं। दरअसल, मानव तस्करी के जाल में फंस चुके बच्चों की गिनती न तो लापता बच्चों में होती है और न ही उनका कोई आधिकारिक दस्तावेज होता है।दुख की बात है कि राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो ने मानव तस्करी के मुख्य कारण के रूप में ‘‘अन्य कारण’’ दर्ज कर रखा है। जाहिर है कि उन्होंने अपनी सहूलियत के लिए सबसे ज्यादा मामले इसी श्रेणी में दर्ज कर रखे हैं।
लापता बच्चों का सही पता लगाने और मानव तस्करी की तह तक जाने के लिए अलग-अलग राज्यों की स्थितियों को देखते हुए उनके अनुसार खोजबीन की आवश्यकता है। जैसे मध्यप्रदेश में बच्चों के अपहरण का मुख्य कारण उन्हें घरेलू श्रम में लगाया जाना है। अन्य राज्यों में कारण भिन्न हो सकते हैं।भारत में लापता बच्चों और मानव तस्करी के बढ़ते जाल ने अब अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में जगह बना ली है। मानव तस्करी तो समस्त विश्व की चिन्ता का विषय बना हुआ है। भारत के लिए तो यह और भी चिंताजनक है, क्योंकि यहाँ इस प्रकार के आपराधिक समूह सबसे ज्यादा फल-फूल रहे हैं। मानव तस्करी (रोकथाम, सुरक्षा और पुनर्वास) से संबंधित विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में पेश नहीं किया जा सका। बजट सत्र में इसकी उम्मीद की जा सकती है।
इस समस्या की भयावहता को देखते हुए इससे निपटने के लिए एक सशक्त और सुसंचालित संगठन या मंच की आवश्यकता है। मुक्त हुए बच्चों के लिए पुनर्वास की अच्छी व्यवस्था करनी होगी।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित मेघा श्रीवास्तव के लेख पर आधारित।