युवा भारत के लिए रोजगार-विस्तार
Date:24-10-19 To Download Click Here.
भारत की बेरोजगारी की दर, कुछ समय से सार्वजनिक वाद-विवाद का विषय बनी हुई है। 2017-18 के सरकारी श्रम बल सर्वेक्षण से पता चलता है कि यह 6.1 प्रतिशत तक पहुँच चुकी है। दशकों से 2 प्रतिशत पर रहने वाली बेरोजगारी की दर में ऐसी बढ़ोत्तरी का आखिर क्या कारण हो सकता है ?
सरकारी रोजगार के आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि 2018 में 47.15 करोड़ लोग रोजगार में संलग्न थे, जबकि 3.09 करोड़ लोग बेरोजगार थे। बेरोजगारी के केन्द्र में 15-29 वर्ष तक की पुरूष जनसंख्या थी, जो देश भर के बेरोजगारों में 68 प्रतिशत या 21.1 करोड़ ठहरती है। इनकी संख्या में अचानक हुई इस वृद्धि के पीछे के श्रम की मांग के कारणों के साथ-साथ श्रम बल्की आपूर्ति को भी समझना होगा।
- भारत में श्रमापूर्ति के क्षेत्र में 15-59 आयु वर्ग की जनसंख्या को तेजी से विस्तार मिला है। 2000 के दशक में यह जनसंख्या4 करोड़ प्रतिवर्ष की दर से बढ़ी है।
- श्रमापूर्ति का स्वरूप भी बहुत कुछ बदला है। अधिकांश वयस्क होते युवा शिक्षित हैं, और अलग प्रकार के काम की आकांक्षा रखते हैं। 15-29 वर्ष की महिलाओं में से 31 प्रतिशत स्कूल या कॉलेज जा रही है। 2005 में इनका3 प्रतिशत था, जो 2018 में बढ़ा है। उनकी शिक्षा प्राप्ति और कौशल विकास की गुणवत्ता का पहलू अलग माना जाना चाहिए।
- कृषि-कर्म में लगे कार्यबल में तेजी से कमी आ रही है। 2005 में जहाँ लगभग 52 प्रतिशत लोग कृषि से जुड़े थे, वहीं 2018 में यह संख्या घटकर पूरे कार्यबल का9 प्रतिशत हो गई है। इस गिरावट का कारण कृषि में निवेश के ठहराव से उत्पन्न हुई कम उत्पादकता है। निवेश में कमी का कारण शहरों और कस्बों में नए अवसरों की ओर निवेशकों का खिंचाव है।
इसके अलावा प्रच्छन्न बेरोजगारी की समस्या भी रही है। एक बेरोजगार व्यक्ति, जो घर की खेती में हाथ बंटा दिया करता है, उसकी रोजगार प्राप्त में गिनती नहीं की जा सकती है। ऐसे युवा, ग्रामीण क्षेत्रों से निकलकर कस्बों या शहरों में रोजगार तलाश रहे हैं।
ये तीन कारक ऐसे हैं, जिन्होंने गैर कृषि-कर्म रोजगारों की मांग को तेजी से बढ़ाया है। इनकी मांग रखने वाला कार्यबल 15-29 आयु वर्ग के ऐसे लोगों का है, जो न तो विद्यार्थी हैं, और न ही कृषि-कर्म में लगे हुए हैं। अगर इनको कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जाए, तो ये उद्योग, निर्माण और सेवाओं में संलग्न हो सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार 2005-2012 के बीच ऐसे कार्यबल में प्रतिवर्ष 1.42 करोड़ की वृद्धि हुई है। 2012-2018 के बीच यह बढ़कर प्रतिवर्ष 1.75 करोड़ हो गई है। 2005-2012 के बीच कृषि-कर्म से निकलने वाले कार्यबल के लिए निर्माण-कार्य में संलग्न होना आसान था, परन्तु उसके बाद स्थितियां बदल गई हैं।
श्रम की मांग के पिछड़ने के कारण
- 2012 के बाद से कृषि-आय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है।
- 2012-18 के बीच निर्माण कार्य में रोजगार के अवसरों में भारी कमी आई है। यह 2012 के89 करोड़ से गिरकर 16 लाख रह गया है।
- 2012-18 के बीच में सूक्ष्म और लघु विनिर्माण उद्योगों में लगे कार्यबल में 10 लाख की कमी आई है। खासतौर पर असंगठित क्षेत्र के उद्योगों को भारी नुकसान पहुँचा है।
- 2012 के बाद शिक्षा और व्यावसायिक क्षेत्र, व्यापार एवं संबंद्ध सेवाओं में रोजगार के अवसर बढ़े हैं।
सरकारी प्रयास
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने के लिए 2016-18 के बीच सरकार द्वारा किए गए निवेश ने राहत पहुंचाई है।
2005 से 2012 तक उद्योगों, निर्माण और सेवाओं में 1.42 करोड़ बेरोजगारों में से केवल 63 लाख लोगों को ही प्रतिवर्ष रोजगार प्राप्त हो सका है।
गैर कृषि-कर्म क्षेत्रों में श्रमापूर्ति 1.75 करोड़ रही है। परंतु रोजगार की मांग 45 लाख प्रतिवर्ष रहे हैं। मांग और पूर्ति के इस असंतुलन से 2012 के बाद संकट गहराता चला गया है।
क्या करना चाहिए ?
- मानव पूंजी में निवेश बढ़े।
- उत्पादक क्षेत्रों का पुनः प्रवर्तन हो।
- छोटे उद्यमों को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम चलाए जाएं।
अगर हम आज अपनी युवा जनसंख्या की शक्ति का सार्थक उपयोग नहीं कर पाए, तो यह आगे भी संभव नहीं हो पाएगा। आगे आने वाले दो दशकों में भारत की अधिकांश जनसंख्या वृद्धावस्था की ओर अग्रसर हो जाएगी। रोजगार के अभाव में जी रहे करोड़ों भारतीयों के लिए यह अभिशाप भी बन सकता है। अतः नीतिगत परिवर्तनों के लिए यही उचित समय है।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित जयंत थॉमस के लेख पर आधारित। 1 अक्टूबर, 2019