बौद्धिक संपदा का बढ़ता महत्व
Date:12-03-19 To Download Click Here.
विश्व में आज बौद्धिक संपदा का महत्व तेजी से बढ़ता जा रहा है। यह ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का आधार है। अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में इसका महत्व होने के कारण यह उद्यमों की प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए उत्तरोत्तर प्रासंगिक व महत्वपूर्ण होती जा रही है।
बौद्धिक संपदा का अर्थ
विद्वान जेरेमी फिलिप्स के अनुसार बौद्धिक संपदा में ऐसी वस्तुएं आती हैं, जो व्यक्ति द्वारा बुद्धि के प्रयोग से उत्पन्न होती हैं। किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा सृजित कोई मौलिक कृति, डिजाइन, ट्रेडमार्क इत्यादि बौद्धिक संपदा हैं। भौतिक धन की तरह ही बौद्धिक संपदा का भी स्वामित्व लिया जा सकता है।
स्वामित्व के लिए बौद्धिक संपदा कानून बनाए गए हैं। इसके अंतर्गत कोई अपनी बौद्धिक संपदा का नियंत्रण कर सकता है और साथ ही उसका उपयोग करके बौद्धिक संपदा भी अर्जित कर सकता है। बौद्धिक संपदा का स्वरूप अमूर्त होता है, लेकिन राज्य ने संपत्ति की सामान्य व्याख्या के अंतर्गत इसे मान्यता प्रदान की है।
बौद्धिक संपदा और भारत
भारत सरकार ने 2016 में राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति को स्वीकृति प्रदान की थी। इस नीति के जरिए ही भारत में इसके संरक्षण और प्रोत्साहन में मदद मिल रही है। इस नीति के अंतर्गत सात लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं।
- समाज के सभी वर्गों में बौद्धिक संपदा अधिकारों के आर्थिक-सामाजिक एवं सांस्कृतिक लाभों के प्रति जागरुकता पैदा करना।
- बौद्धिक संपदा अधिकारों के सृजन को बढ़ावा देना।
- मजबूत और प्रभावशाली बौद्धिक संपदा अधिकार नियमों को अपनाना, ताकि अधिकृत व्यक्तियों तथा वृहद लोकहित के बीच संतुलन बना रहे।
- सेवा आधारित बौद्धिक संपदा अधिकार प्रशासन को आधुनिक और मजबूत बनाना।
- व्यवसायीकरण के जरिए बौद्धिक संपदा अधिकारों का मूल्य निर्धारण।
- बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघनों का मुकाबला करने के लिए प्रवर्तन एवं न्यायिक प्रणालियों को मजबूत बनाना।
- मानव संसाधनों तथा संस्थानों की शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान क्षमताओं को मजबूत बनाना और बौद्धिक संपदा अधिकारों में कौशल निर्माण करना।
गत वर्ष केन्द्रीय वित्त मंत्रालय ने बौद्धिक संपदा नियमों में कुछ संशोधन करते हुए, पेटेंट अधिनियम 1970 के सभी संदर्भों को हटा दिया है।
इस क्षेत्र में भारत सरकार की तत्परता का ही नतीजा है कि नित नए नवोन्मेष सामने आ रहे हैं। इसी के चलते एक ताजा अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक सूचकांक में भारत का स्थान आठ पायदान ऊपर आ सका है।
विश्व में बौद्धिक संपदा
1995 में विश्व व्यापार संगठन का जन्म हुआ और इस अधिकार के संदर्भ में ट्रिप्स इस संगठन का एक समझौता है। यह एक संतुलित तथा सुगम अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक संपदा पद्धति के लिए समर्पित है, जो रचनात्मकता, नौकरियों और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है। संगठन के सभी सदस्य देश इसे मानते हैं और अपने कानून इसी के मुताबिक बनाते हैं। इस अधिकार को संरक्षण और प्रोत्साहन देने के लिए प्रतिवर्ष 26 अप्रैल को ”विश्व बौद्धिक संपदा दिवस” मनाया जाता है।
बढ़ता खतरा
बौद्धिक संपदा संरक्षण के क्षेत्र में साहित्यिक चोरी और अवैध तरीके से नकल किया जाना एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है, जिससे किसी बौद्धिक उत्पाद और उसके रचनाकर्ता की मौलिकता और प्रामाणिकता को आर्थिक क्षति पहुंच रही है। यही वजह है कि बौद्धिक संपत्तियों और उसके स्वामियों के हितों के संरक्षण के लिए वैश्विक समुदाय उचित नीतिगत उपाय तथा रक्षा-तंत्र के जरिए अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा है।
विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित।