कौशल विकास के लिए

Afeias
24 Jun 2019
A+ A-

Date:24-06-19

To Download Click Here.

पिछले दस वर्षों में, सरकार ने कौशल विकास की दर और गुणवत्ता, दोनों में ही बढ़ोत्तरी की है। इसके लिए 2009 में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम, 2015 में कौशल विकास मिशन और 2016 में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना की शुरूआत की गई थी। इससे आर्थिक विकास, सामाजिक गतिशीलता और उद्यमों में उत्पादकता को गति मिलने की संभावना बहुत बढ़ जाती है।

इस विकास यात्रा के बावजूद कौशल विकास के यात्रियों के सामने दो तरह की चुनौतियां खड़ी हैं। ये चुनौतियां कौशल विकास की पारिस्थितिकी से जुड़ी हुई हैं, जो अवरोध बन रही है।

1) सूचना तंत्र की विषमता –

व्यक्तिगत स्तर पर युवाओं को इस बात की सही जानकारी ही नहीं मिल पाती है कि उनके लिए कौशल विकास क्यों और कितना महत्वपूर्ण है। रोजगार के अवसरों की मांग और आपूर्ति का सही डाटा नहीं मिल पाता है। उच्च स्तरीय सेवा प्रदाताओं और अच्छे रोजगार के अवसरों की जानकारी के लिए कोई सुलभ और विश्वसनीय मंच नहीं मिल पाता है। इसलिए युवाओं को अपने व्यक्तिगत स्त्रोतों या प्रशिक्षण प्रदाताओं पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इसका दुखद परिणाम यह होता है कि वे ऐसे क्षेत्र में प्रशिक्षित हो जाते हैं, जिसकी स्थानीय और बदलते रोजगार के बाजार में अधिक मांग नहीं होती है।

2) गुणवत्ता की समस्या –

फिलहाल, देश में तीन ऐसे निकाय हैं, जो कौशल विकास की गुणवत्ता की प्रक्रिया पर नजर रखते हैं। नेशनल कांउसिल फॉर वोकेशनल ट्रेनिंग लंबी अवधि के कौशल विकास कार्यक्रम देखता है। नेशलन स्किल डेवलपमेंट एजेंसी और नेशलन स्किल डेवलपमेंट सेंटर, अल्पकालीन कार्यक्रमों के लिए है।

प्रक्रिया के विभिन्न स्तरों पर एक असंतुलन है, जिसमें सुधार की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, विभिन्न सेवा प्रदाताओं के लिए परिणाम आधारित सवितरण मॉडल में प्रोत्साहन की कमी रहती है, क्योंकि इसमें प्रशिक्षण देने वाली एजेंसियों की जगह, मूल्यांकन एजेंसियों पर अधिक ध्यान दिया जाता है।

समाधान –

कौशल विकास से जुड़ी पारिस्थितिकी को चुस्त-दुरूस्त करने के लिए तकनीक आधारित परिवर्तन के साथ-साथ बाज़ार सक्षम प्रशासन की आवश्यकता है।

  • तकनीक आधारित सूचना व्यवस्था से अपेक्षित स्तर तक पहुँचा जा सकता है। इंटर-ऑपरेबिलिटी और कौशल विकास के लिए इंटरनेट के अधिक उपयोग को बढ़ावा देना होगा।
  • आदान-प्रदान के स्केलेबल फॉर्म और ऑटोमेटेड स्वरूप से कौशल विकास की पारिस्थितिकी एवं प्रशिक्षुओं, सेवा प्रदाताओं और नियोक्ता की निर्णय-क्षमता को बेहतर किया जा सकता है।

इस हेतु दो प्रयोग किए जा सकते हैं।

1)  बेहतर सुरक्षा और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल सर्टिफिकेट की शुरूआत की जा सकती है।

2) प्रशिक्षुओं और प्रशिक्षकों की पब्लिक रजिस्ट्री की जाए, ताकि इससे जुड़े लोगों को एक केंद्रीकृत सूचना तंत्र से लाभ मिल सके। साथ ही प्रशिक्षण संस्थानों के लिए रेटिंग का प्रावधान हो। इस आधार पर बाज़ार में उनकी साख बनेगी।

  • कौशल विकास की गुणवत्ता पर नजर रखने वाले तीन निकायों को मिलाकर नेशनल कांउसिल फॉर वोकेशनल  एजुकेशन एण्ड ट्रेनिंग बना दिया गया है। इस निकाय से उम्मीद है कि यह ऐसी यूजर फ्रेंडली गाइडलाइन विकसित करेगा, जिससे इस क्षेत्र के प्रशिक्षण संस्थानों को मान्यता प्रदान करने एवं मूल्यांकन करने वाली एजेंसी की पहचान और नियमन में मदद मिलेगी।
  •  नेशनल कांउसिल फॉर वोकेशनल एजुकेशन एण्ड ट्रैंनिंग प्रशिक्षुओं और सेवा प्रदाताओं के बीच बाज़ार आधारित डाटा के अंतर को भी कम करेगा। इस निकाय में न तो उपस्थिति की जरूरत होगी, और न ही कागजी औपचारिकता की। इसकी महत्वपूर्ण बात यह होगी कि यह अपने निर्णय प्रशिक्षुओं पर आधारित रखेगा।

कौशल विकास एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को पारिस्थितिकी सुविधा की भूमिका पर ध्यान देना होगा। इससे नियोक्ता का विश्वास बढ़ेगा और कुशल कर्मचारियों को आगे बढ़ने में आसानी होगी। इस हेतु तकनीक और प्रशासन को साथ मिलकर काम करना होगा। इस मेल से कौशल-विकास कार्यक्रम को दृढता के साथ आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।

द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित के पी कृष्णन् और रूपा कुदवा के लेख पर आधारित। 4 जून, 2019