अखबारों से कैसे निपटें-1
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चलिए इस बात से शुरू करते हैं कि अखबार क्या हैं और वे आपके लिए क्या हैं? क्या वे पिछले चौबीस घंटों की घटनाओं का एक संकलन मात्र हैं? क्या वे मात्र तीन रुपए में खरीदे गए लम्बे-चौड़े कुछ ऐसे पृष्ठ हैं, जिन्हें चौबीस घंटे के बाद एक ढेर में तब्दील कर दिया जाता है और बाद में रद्दी के भाव बेच दिया जाता है? क्या अखबार टाइमपास करने का जरिया है कि आप सैलून में या टी स्टॉल पर अपनी बारी का इंतजार करते हुए कुछ समय इसके साथ गुज़ारते हैं? या फिर यह महज़ समाचार देने वाला एक ऐसा माध्यम है जिससे आपको देश और दुनिया की खबरें मिल जाती हैं?
दरअसल अखबार वह सब कुछ है जो अभी बताया गया है, लेकिन जहाँ तक आपके लिए अखबार का सवाल है, वह इन सबसे परे आपके लिए बहुत कुछ है। अखबार क्या है, इसका उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि उसे पढ़ कौन रहा है और किस मकसद से पढ़ रहा है। यदि मुझे एक आई.ए.एस. के स्टूडेन्ट की ओर से इस प्रश्न का उत्तर देना पड़े, तो मैं इस प्रश्न के जवाब में एक प्रश्न ही पूछना चाहूँगा कि ‘वह क्या नहीं है?
आप प्रारम्भिक परीक्षा के सामान्य ज्ञान का पेपर उठाकर देखें। आप मुख्य परीक्षा के सामान्य ज्ञान के चारों पेपर्स उठाकर देखिए। आप इन्टरव्यू में पहुँचे हुए विद्यार्थियों से पूछे गए प्रश्नों को पढ़ें। आप पाएँगे कि इन सब में जो कुछ पूछा गया है, उसके लगभग तीन-चौथाई हिस्से की तैयारी आप अखबारों से कर सकते हैं, सिर्फ अखबारों से। यहाँ तक कि बाकी 25 प्रतिशत की तैयारी में भी अप्रत्यक्ष रूप से बहुत कुछ योगदान इन अखबारों का ही होता है। यदि आप किसी समसामयिक विषय पर निबंध लिखने का मन बना रहे हैं, तो ऐसा तब तक मत कीजिए जब तक आपने अखबारों के साथ पूरी वफ़ादारी नहीं निभायी हो।
अब आप खुद समझ सकते हैं कि आपके लिए अखबार क्या हैं और कितने महत्व के हैं। यदि आपको अखबार पढऩे से एलर्जी है, तो मैं यह मानकर चलूँगा कि आपको आई.ए.एस. बनने से भी एलर्जी है और आपको तुरन्त अपने इस विचार को छोड़ देना चाहिए। सच पूछिए तो अखबार ही तो हैं जो आई.ए.एस. की तैयारी को सुन्दर, सरल, विशिष्ट, कठिन तथा चुनौतीपूर्ण बना देते हैं। किताबें तो किताबें ही होती हैं। कोई भी उन्हें पढ़कर, रटकर कुछ भी कर सकता है। लेकिन अखबार इस मायने में उनसे बिल्कुल अलग हैं और इनका अलग होना ही आई.ए.एस. की परीक्षा को दूसरी सभी परीक्षाओं से अलग कर देता है।
अखबारों को लेकर केंडीडेट्स के जेहन में जो परेशानियाँ पैदा होती हैं, उनसे मैं अच्छी तरह वाकिफ हूँ। मूल रूप से उनकी परेशानियाँ होती हैं कि-
- कितने अखबार पढ़ें,
- कौन-कौन से अखबार पढ़ें,
- अखबारों में क्या-क्या पढ़ें, तथा
- अखबारों को कितना समय दें।
अधिकांश विद्यार्थी अखबारों के महत्व को तो जानते हैं, लेकिन अखबारों में कौन-सी बातें महत्व की हैं, इसे नहीं जान पाते। इसका नतीजा यह होता है कि वे ढेर सारे न जाने कितने अखबार पढ़ते हैं। मुझे यह सुनकर आश्चर्य नहीं होता, जब कोई मुझसे कहता है कि ‘मैं रोज़ाना पाँच अखबार पढ़ता हूँ और उसमें मेरे दो से तीन घंटे लग जाते हैं। यदि इतना समय अखबार में लग गया, तो फिर बाकी के लिए समय ही कितना बचा रहेगा!’ लेकिन उसकी चिन्ता यह नहीं है। उसकी मुख्य चिन्ता यह होती है कि इतने सारे अखबारों को उसने इतने सारे घंटे लगाकर पढ़ा तो, लेकिन सच में उसने पढ़ा क्या? सच्चाई यही निकली कि उसने सब कुछ पढ़ा, लेकिन कुछ भी नहीं पढ़ा, क्योंकि उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ा।
दरअसल, इस तरह के विद्यार्थी बहुत डरे हुए विद्यार्थी होते हैं। उन्हें लगता है कि सामान्य ज्ञान के नाम पर कुछ भी पूछा जा सकता है। इसलिए सब कुछ पढ़ लिया जाए, ताकि परीक्षा में कुछ छूटे नहीं। लेकिन वे हमारे मस्तिष्क के इस विज्ञान की अनदेखी कर जाते हैं कि यदि दिमाग में इतने सारे तथ्यों का ढेर लगा दिया जाएगा, तो उसमें से कोई भी तथ्य हमारे काम का नहीं रह जाएगा। पता नहीं क्यों वे इस बात को भी नहीं समझ पाते कि सामान्य ज्ञान का अर्थ कुछ भी ज्ञान नहीं होता। सामान्य ज्ञान का अर्थ होता है ‘ऐसा ज्ञान, जिसकी अपेक्षा किसी भी पढ़े-लिखे नागरिक से की जा सकती है।’ यदि आप इन दोनों तथ्यों को अच्छी तरह समझ लेते हैं, तभी आप अखबार पढऩे के साथ न्याय कर सकेंगे अन्यथा यह एक ऐसा जादुई जाल है, जिसमें फँ सते चले जाएँगे और जिससे निकलने की आपको कोई सूरत नज़र नहीं आएगी। निश्चित रूप से आई.ए.एस. की परीक्षा की दृष्टि से अखबारों को व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक रूप से पढऩा एक महत्वपूर्ण चुनौती है और इस चुनौती को समझे बिना आई.ए.एस. की तैयारी करना समझदारी नहीं होगी।
कौन-कौन से अखबार पढ़ें?
क्या ज्य़ादा से ज्य़ादा अखबार पढऩे चाहिए? या कि क्या सभी महत्वपूर्ण अखबार पढऩे चाहिए, जैसा कि बहुत से अति-संवेदनशील और पढ़ाकू किस्म के स्टूडेन्ट्स करते हैं? मैं इसके विरोध में हूँ। आप एक काम करें। जिन्हें आप बहुत महत्वपूर्ण अखबार समझते हैं, एक दिन वे सभी ले आएँ और पूरा दिन केवल इनकी स्केनिंग करने में लगाएँ। यह जानने की कोशिश करें कि वे कौन-कौन से महत्वपूर्ण तथ्य हैं जो एक में हैं किंतु दूसरे में नहीं हैं। ध्यान रखिएगा कि मैं ऐरे-गैरे, छोटे-मोटे और फालतू के तथ्यों की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं महत्वपूर्ण तथ्यों की बात कर रहा हूँ। आपको यह जानकर खुशी होगी कि यदि सचमुच में ये अखबार स्तरीय हैं, तो सारे महत्वपूर्ण तथ्य सभी अखबारों में मौजूद होंगे। हाँ, यह बात अलग होगी कि उन तथ्यों का वर्णन थोड़ा अलग-अलग होगा, छपने के उनके स्थान अलग-अलग होंगे, लेकिन उनका कवरेज सभी में होगा।
तो फिर अलग-अलग क्या होगा? मैं बताता हूँ। सम्पादकीय पृष्ठ पर जो बड़े लेख होते हैं, वे अलग-अलग विषयों पर हो सकते हैं और यदि विषय भी एक होगा, तो वे अलग-अलग लोगों के द्वारा लिखे गए होंगे। इसके कारण लेखों का स्तर अलग-अलग होगा। बीच के इसी पृष्ठ पर जो सम्पादकीय टिप्पणियाँ होती हैं, वे अलग-अलग विषयों पर हो सकती हैं और यदि एक ही विषय पर हुईं, तो उनके भी स्तर अलग-अलग हो सकते हैं।
तो क्या फिर आपको इन सम्पादकीय लेखों एवं सम्पादकीय टिप्पणियों के लिए ही कई-कई अखबार पढऩे चाहिए? मुझे नहीं लगता कि यह जरूरी है। यदि आपका अखबार स्तरीय है, तो आप यह विश्वास कीजिए कि वे जिस विषय पर भी लेख छापेंगे और जिस विषय पर भी वे सम्पादकीय लिखेंगे, वे विषय अपने-आपमें महत्वपूर्ण ही होंगे। अन्य अखबारों में जिस विषय पर लेख और सम्पादकीय छपे हैं, वे या तो इस अखबार में पहले छप चुके होंगे या फिर वे आगे छप सकते हैं- बशर्ते कि वे विषय और वे घटनाएँ महत्वपूर्ण हों। यदि ऐसा नहीं भी होता है, तो आपको इसके लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है। आप दुनिया के सारे ज्ञान को लेकर नहीं चल सकते। जो सब कुछ पकड़कर चलना चाहता है, उसकी पकड़ में कुछ भी नहीं रह पाता। प्रकृति के इस नियम को कभी भूलिएगा मत। इस बारे में यदि आपका कोई साथी आपको डराता भी है, तो डरिए मत।
इसलिए अखबार के साथ आपके व्यवहार का सबसे पहला बिन्दु यह होता है कि आप अपने लिए कई-कई अखबार न चुनकर निम्न में से केवल एक-एक अखबार ही चुनें और उनके साथ निरन्तरता निभाएँ। यदि कोई बहुत बड़ी बात न हो, तो इसे लगातार बदलते न रहें। वैसे मैं यह भी कहना चाहूँगा कि इस बात से बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन-सा अखबार पढ़ रहे हैं, बशर्ते कि आपका अखबार एक स्तरीय अखबार हो। जो भी फर्क पड़ता है, वह इस बात से पड़ता है कि आप उस अखबार को पढ़ कैसे रहे हैं।
आपको सामान्यत: निम्न अखबार पढऩे चाहिए-
- राष्ट्रीय स्तर का एक अखबार,
- एक वह अखबार जो आपके अपने राज्य से निकलता हो लेकिन स्तरीय हो, तथा
- अर्थव्यवस्था से संबंधित एक अखबार।
मैं भाषा की बात नहीं कर रहा हूँ। आपको उसी भाषा का अखबार पढऩा चाहिए, जिस भाषा को आप आई.ए.एस. में अपना माध्यम बना रहे हैं। इसको लेकर अधिक परेशान होने की जरूरत नहीं है। यदि आप हिन्दी माध्यम के स्टूडेन्ट हैं, तो इस भय से अनावश्यक दुबले न हों कि ‘द हिन्दू’ या ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ पढ़े बिना आप आई.ए.एस. नहीं बन सकते। हाँ, यह जरूर है कि यदि आपकी अंग्रेज़ी थोड़ी ठीक है, तो आप कुछ समय इन अखबारों के साथ बिता सकते हैं- और वह भी खासकर उनके सम्पादकीय लेखों एवं टिप्पणियों के लिए। इससे अधिक की जरूरत नहीं होती है।