16वें वित्त आयोग के लिए प्रशस्त मार्ग
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हाल ही में अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में 16वें वित्त आयोग का गठन किया गया है। अच्छी बात यह है कि इस आयोग को अपनी सिफारिशें देने के लिए मुक्त छोड़ दिया गया है। इससे आयोग को राजकोषीय संघवाद को मजबूत करने के लिए अधिक गुंजाइश रहेगी। कागजी तौर पर आयोग का काम केंद्र और राज्यों तथा राज्यों के बीच संसाधन हस्तांतरण में संतुलन सुनिश्चित करना है। लेकिन वास्तव में आयोग के काम में बहुत सी बारीकियां होती हैं। कुछ बिंदु –
- अपने पक्ष पर केंद्र चाहता है कि राज्य किए गए राजकोषीय हस्तांतरण के बड़े भाग का सदुपयोग करे। वह राज्यों को राजकोषीय उत्तरदायित्व की ओर प्रेरित करने का प्रयास करता है।
- आयोग का काम ऐसा हो, जो राज्यों को आश्वस्त कर सके कि संसाधनों को विभाजित करने का फॉर्मूला बेहतर प्रदर्शन को प्रोत्साहित करता है, और लोगों के ज्यादा पलायन पर अंकुश लगाने में मदद करता है।
- किसी राज्य को हस्तांतरण उसकी जनसंख्या के अनुसार किया जाता है। 16वें वित्त आयोग को जनसंख्या डेटा चुनने की भी स्वतंत्रता है। जिन राज्यों ने 2011 और 2021 के बीच में अपनी जनसंख्या को स्थिर कर लिया है, उनकी प्रति व्यक्ति आय बढ़ गई है। वे हिस्सेदारी में नीचे चले गए होंगे। आयोग के लिए 2021 के डेटा के बिना, पिछडने वाले राज्यों के प्रदर्शन का अनुमान लगाना कठिन होगा। इससे सामाजिक क्षेत्र के व्यय परिणामों का आकलन भी मुश्किल हो जाता है। आयोग के लिए इसकी चुनौती बनी रहेगी।
- केंद्र अब संयुक्त संसाधन पूल से राज्यों की तुलना में कम प्राप्त करता है, लेकिन पूंजीगत व्यय और कल्याण भुगतान के माध्यम से खर्च को निर्देशित कर रहा है। जैसे-जैसे अंतर बढ़ेगा, राज्यों को अपनी बड़ी जिम्मेदारी पूरा करने के लिए भाररहित वित्त की अधिक आवश्यकता होगी।
अपनी ओर से केंद्र राज्यों के राजकोषीय विवेक को दुरूस्त करने के लिए नैतिक पुलिसिंग कर रहा है। लेकिन इसके लिए स्वयं कोई उदाहरण प्रस्तुत नहीं कर रहा है। आगे के हस्तांतरण के लिए यह केंद्र को एक सबक है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 3 जनवरी, 2024
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