लैंगिक वेतन असमानता को दूर करने में मनरेगा कैसे प्रभावी है ?
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पिछले एक दशक में पुरूषों और महिलाओं के बीच वेतन असमानता बढ़ गई है। उच्च वेतन स्तर पर यह अधिक है। हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय की लैंगिक समानता पर जारी एक रिपोर्ट में ऐसी असमानता स्पष्ट की गई है। इस असमानता के कुछ कारण हैं –
- कोविड लॉकडाउन के बाद शहरों से गांवों की ओर पलायन करने से महिलाओं की श्रम भागीदारी बहुत कम हो गई।
- महिलाओं को अनियमित घंटे या ओवरटाइम काम करने में परेशानी होती है।
- नौकरी स्थलों तक पहुँचने में कठिनाई आती है।
- पारिवारिक जिम्मेदारी के कारण वे कार्य-अनुभव में पिछड़ जाती हैं।
- लैंगिक वेतन असमानता का एक बड़ा घटक भेदभाव है।
समाधान –
इनमें से कुछ कारकों को मनरेगा के द्वारा संबोधित किया गया है।
- महामारी के दौरान गांव-वापसी के दौर में श्रमिकों को वहीं काम दिया गया। इसमें कोई लिंग-भेद नहीं किया गया।
- 2020 में मनरेगा के लिए बजट बढ़ाया गया। इससे महिलाओं के लिए रोजगार की कुछ पूर्ति की जा सकी।
- मनरेगा में हर समय, समान काम के लिए समान वेतन दिया जाता है।
- काम के घंटे दिन तक ही दिए जाते हैं। ओवरटाइम का कोई प्रावधान नहीं है।
- इसके अंतर्गत स्थानीय स्तर पर काम होता है। महिलाओं को काम की तलाश में दूर जाने की जरूरत नहीं पड़ती है।
- मनरेगा की एक लंबे या थोड़े अंतराल के बाद काम पर लौटी महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है।
सच यह है कि कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में गिरावट पहले ही शुरू हो गई थी। महामारी के साथ यह और तेज हो गई। फिलहाल, जिन राज्यों में तेजी से वेतन असमानता बढ़ रही है, उन्हें नीतिगत परिवर्तन करने की जरूरत है। अपने स्तर पर केंद्र मनरेगा आवंटन में अधिक सतर्क हो सकता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 20 मार्च, 2023
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