पूर्वोत्तर में नई लोकतांत्रिक पहल – अफस्पा
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हाल ही में असम, मणिपुर और नगालैण्ड के बड़े हिस्से से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम या अफस्पा को वापस ले लिया गया है। कुछ वर्ष पहले तक यह अकल्पनीय था। 32 वर्ष पहले, इसे लागू करने से लेकर, अब तक विभिन्न सरकारों के कार्यकाल में 62 बार इसके विस्तार का अनुरोध किया जाता रहा है।
अफस्पा को हटाने के दो प्रमुख कारण –
- भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में कानून और व्यवस्था की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुए हैं। इस दौरान कई उग्रवादी संगठनों ने हथियार डाल दिए हैं।
- केंद्र की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था ऐसी है, जिसमें जमीनी स्तर पर सुधार करने के लिए ठोस कदम उठाने का उत्साह है।
कुछ अन्य कारण –
- सहयोगात्मक निर्णयों और सफलताओं के परिणामस्वरूप चरणबद्ध तरीके से अफस्पा की वापसी के लिए भूमिका तैयार करना।
- राज्य सरकारों और केंद्रीय गृह मंत्रालय के बीच चर्चा के बाद नगालैण्ड के संदर्भ में गठित समिति की सिफारिशों के आधार पर यह निर्णय लिया जा सका है।
- गृह मंत्री द्वारा प्रदर्शित दृढ़ता और निर्णायकता के परिणामस्वरूप ऐतिहासिक बोडो शांति समझौता और कार्बी आंगलोंग शांति समझौता हो सका।
- त्रिपुरा में हुए इन दो समझौतों ने 6900 से अधिक विद्रोही कैडरों और 4800 हथियारों के समर्पण को संभव बनाया।
- मिजोरम के जातीय संघर्षो ने समुदाय के 37000 लोगों को पड़ोसी राज्य त्रिपुरा में पलायन को मजबूर कर दिया था। जनवरी 2020 में उन्हें एक समझौते के द्वारा किसी भी राज्य में रहने का विकल्प दिया गया।
वर्तमान की इस नई रणनीति में सुरक्षा संबंधी चुनौतियों को हल करने के लिए एक समग्र समाधान की कल्पना है। इसके लिए सभी संभावित बलों और संसाधनों को एकत्रित और मुस्तैद भी रखा जाएगा।
एक संयुक्त पूर्वोत्तर में स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए गृह मंत्रालय ने सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्राधिकार को बढ़ाया है। मानव तस्करी, नशीले पदार्थों और पशु तस्करी आदि से निपटने के लिए विभिन्न केंद्रीय कानूनों को सशक्त बनाने के लिए कदम उठाये गए हैं । उम्मीद की जा सकती है कि इन कदमों के फलस्वरूप पूर्वोत्तर सीमाओं को सुरक्षित किया जा सकेगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित हेमंत बिस्वा सरमा के लेख पर आधारित। 13 अप्रैल, 2022