गरीबी को मापने के लिए कौन सा तरीका सही ?
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यह लेख गरीबी को मापने के तरीकों की पड़ताल कर, सर्वोत्तम मापन विधि पर चर्चा करता है। गरीबी को मापने के लिए दो विधियों का प्रयोग किया जाता है। पहले तरीके में संकेतकों और प्रवृतियों को देखा जाता है, जबकि दूसरे तरीके में खपत को देखा जाता है।
1) मल्टीडाइमेनशनल पॉवर्टी इंडेक्स (एमपीआई), ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) हयूमन डेवलपमेन्ट इंडेक्स (एचडीआई)
एम पी आई में स्वास्थ, शिक्षा और जीवन से जुडे ऐसे 10 संकेतक रखे गए है, जिनमें एक-तिहाई की कमी होने पर व्यक्ति को गरीब माना जाता है। हाल ही में नीति आयोग ने इसी संकेतक पर आधारित गरीबी सूचकांक जारी किया है।
जी एच आई चार संकेतकों पर आधारित है: अल्पपोषण, बौनापन, कम-वजन और बाल मृत्यु दर। प्रत्येक देश से जी एच आई स्कोर एकत्र करके उनकी रैंकिंग की जाती है।
एच डी आई, मानव विकास के तीन प्रमुख आयामों में उपलब्धियों का सारांश माप है। ये मापक एक लंबा और स्वस्थ जीवन, ज्ञान तक पहुंच और एक अच्छा जीवन स्तर है।
2) खपत या कंजम्प्शन
इस पद्धति में, कोई भी परिवार; जो उपभोग व्यय के न्यूनतम स्तर या गरीबी रेखा को पूरा करने में विफल रहता है, उसे गरीब परिवार माना जा सकता है। उपभोग या खपत का न्यूनतम स्तर प्राप्त करने के लिए खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं पर किए गए न्यूनतम व्यय को देखा जाता है।
पद्धतियों में सर्वोत्तम –
- खपत या उपभोग आधारित पद्धति, गरीबी रेखा और गरीबी अनुपात का सही निर्धारण कर सकती है।
- एम पी आईए मनमाने ढंग से एक-तिहाई संकेतको का कट-ऑफ निर्धारित करता है।
- एच डी आई तो केवल देशों की रैंकिंग बताता है।
- जी एच आई एक आंशिक सूचकांक है, जो संपूर्ण पारिवारिक घरेलू गरीबी से संबंधित नहीं है।
सांख्यिकी का बढता अंतर –
नेशनल सैंपल सर्वे और नेशनल अकांउटस स्टेस्टिक्स के द्वारा उपलब्ध कुल निजी खपत के आंकड़ों में बहुत बड़ा अंतर है। समय के साथ यह अंतर बढ़ता ही जा रहा है।
परेशानी की बात यह भी है कि 2011-12 के बाद से खपत संबंधी आंकड़ों को आधिकारिक तौर पर जारी ही नहीं किया गया है। इस मामले में दोनों ही एजेंसियों को सुझावों पर काम करते हुए डेटा के अंतर को कम करना चाहिए।
गरीबी को मापने के लिए अपनाए गए विभिन्न तरीकों के द्वारा सही परिणाम की उम्मीद में योजना आयोग ने समय-समय पर नए पैनल बनाए हैं। इसमें 2009 की तेंडुलकर समिति के बाद 2012 की रंगराजन समिति का गठन किया गया था।
समय-समय पर बनाए गए पैनल या समिति ने अपनी-अपनी पद्धतियों के आधार पर गरीबी को मापने का प्रयत्न किया है। सही आंकड़ों के अभाव में एक सही परिणाम की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित सी. रंगराजन एवं एस महेंद्र देव के लेख पर आधारित। 24 जनवरी, 2022