जलवायु परिवर्तन में शहरों की भूमिका

Afeias
13 Dec 2021
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ग्लासगो में हुई कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज 26 के संदर्भ में कहा जा सकता है कि सम्मेलन ने जलवायु परिवर्तन में शहरों की महती भूमिका की कोई चर्चा नहीं की। इस प्रकार, जलवायु परिवर्तन पर हुई इस वैश्विक वार्ता में शहरों की चुनौतियों को पीछे ढकेल दिया गया है।

शहरों की बढ़ती आबादी – एक चुनौती कुछ तथ्य –

  • विश्व के इतिहास में पहली बार ग्रामों की तुलना में अधिक लोग कस्बों और शहरों में रहते हैं।
  • दुनिया के तीन-चौथाई कार्बन उत्सर्जन के लिए शहर जिम्मेदार हैं।
  • शहरी क्षेत्र, असमान रूप से तटों और नदियों के किनारे स्थित हैं, जो बाढ़ और समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसी आपदाओं की चपेट में आते हैं।
  • झुग्गी-झोपडी में रहने वाले तीन में से एक शहरी और चार में से एक व्यक्ति की दैनिक आय इतनी कम है कि ये जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने की क्षमता नहीं रखते।

शहरी चुनौतियों के लिए रोल मॉडल क्या हैं ?

  • व्यापक जलवायु कार्य योजनाओं को शहरी निवासियों की बड़ी संख्या के साथ वास्तविक परामर्श के माध्यम से तैयार करने की आवश्यकता है।

सूरत और पुणे ने इन्हें विकसित किया है।

  • शहरी निकायों से जुड़े लोगों को योजनाओं के क्रियान्वयन की जानकारी होनी चाहिए।

ओडिशा में नगर निकायों और अनुसंधान संस्थानों के बीच पब्लिक-प्राइवेट पार्टनशिप ने प्रमुख अधिकारियों के अंदर व्यावहारिक कदमों की बेहतर समझ पैदा की है, जो उत्सर्जन को कम करने और शहरों में लचीलापन लाने में मदद करेंगे।

  • चुनौतियों से निपटने के लिए शहरों को पर्याप्त निधि का प्रावधान मिलना चाहिए।

समाधानों के वित्तपोषण के लिए शहर क्या करें ?

  • म्यूनिसिपल ग्रीन बान्ड जारी किए जा सकते हैं। इस प्रकार का तरीका केपटाउन में पानी की कमी से निपटने के लिए अपनाया गया। इससे धन जुटाया जा सका था।

भारत के अधिकांश शहरों में इन्हें जारी करने के लिए बुनियादी वित्तीय प्रणालियों का अभाव है।

  • इससे जुड़े अन्य नवीन दृष्टिकोणों और सबक को साझा किया जाना चाहिए।
  • भविष्य के जलवायु समझौतों में हमारे शहरों की क्षमता बढ़ाने के लिए वित्तपोषण की प्रतिबद्धता को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

वैश्विक वार्ताओं का नेतृत्व करने वालों को यह समझना चाहिए कि शहरी जलवायु परिवर्तन के साथ गहन जुड़ाव महत्वपूर्ण है। उम्मीद की जा सकती है कि 2022 में मिस्र में होने वाली वार्ता में शहरों और उनसे जुड़े सबसे कमजोर नागरिकों को अंततः वह समर्थन मिलेगा, जिसकी उन्हें जरूरत है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित आदित्य वी बहादुर और शीला पटेल के लेख पर आधारित। 24 नवम्बर, 2021