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राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की रूपरेखा

Afeias
16 Nov 2021
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पिछले दो दशकों में राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी अवधारणाओं में मूलभूत परिवर्तन हुए हैं। इन मूलभूत परिवर्तनों से यह स्पष्ट हो गया है कि भूगोल, जनसंख्या और सकल घरेलू उत्पाद की दृष्टि से चाहे देश बड़ा हो, परंतु वह किसी भी देश के लिए बाधक नहीं बनेगा। इसका कारण साइबर हमले हैं, क्योंकि साइबर हथियार छोटे द्वीप देशों के लिए भी उतने ही उपलब्ध हैं, जितना कि बड़े देशों के लिए। इस हथियार में बड़े राष्ट्रों को तबाह करने की क्षमता छोटे और गरीब देशों की भी पहुंच के भीतर है।

इसका प्रभाव –

  • 21वीं सदी के साइबर युद्धों में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए केवल गुप्त और खुले ऑपरेशन ही शामिल नहीं है, बल्कि इन नए हथियारों से एक दूरस्थ केंद्र पर बैठकर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण द्वारा विरोधी को अवरूद्ध किया जा सकता है।

हाल ही में मुंबई में एक बड़े पॉवर फेलयर के पीछे चीन का हाथ बताया जा रहा है। साइबर युद्ध का यह एक उदाहरण है।

  • इस प्रकार के युद्ध से निपटने हेतु प्रत्येक राष्ट्र को द्विपक्षीय संघर्षों के लिए अधिक तैयारी करनी होगी।

यह देखते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा नीति को चार आयामों पर आधारित किया जाना चाहिए –

  1. उद्देश्य : राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का उद्देश्य यह परिभाषित करना है कि किन संपत्तियों की रक्षा की जानी चाहिए। किसी राष्ट्र को प्रभावित करने के लिए लोगों में विचलन पैदा करने की कोशिश करने वाले विरोधियों की पहचान करना ही प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए।
  1. प्राथमिकताएं : कोरोना वायरस जैसे अचानक हुए हमलों की आशंकाओं के मद्देनजर सुरक्षा प्राथमिकताओं के लिए हाइड्रोजन ईंधन सैल, समुद्री जल का विलयणीकरण, परमाणु प्रौद्योगिकी के लिए थोरियम, कंप्यूटर विरोधी वायरस और प्रतिरक्षा करने वाली नई दवाओं की खोज जैसे नवाचार और प्रौद्योगिकी के कई क्षेत्रों का समर्थन करने के लिए नए विभागों की आवश्यकता होगी।
  1. रणनीति : अपने दुश्मनों को कई आयामों से पूर्वानुमानित करना होगा। विरोधियों के प्रतिरोध की रणनीति विकसित करनी होगी। साथ ही महत्वपूर्ण और नई प्रौद्योगिकियों, कनेक्टिविटी, बुनियादी ढांचा, साइबर सुरक्षा और समुद्री सुरक्षा को रणनीति का एजेंडा बनाना होगा।
  1. संसाधन जुटाना : संसाधन जुटाने का मैक्रोइकॉनॉमिक्स इस बात पर निर्भर करता है कि किसी देश में आर्थिक घाटे के साथ ‘मांग’ है या नहीं। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए देश के बाजार की मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन का होना बहुत जरूरी है।

किसी भी देश की सुरक्षा नीति में साइबर प्रौद्योगिकी का अगर स्थान है, तो फिर भौगोलिक आकार और सकल घरेलू उत्पाद मायने नहीं रखता है। भारत को भी अपने सुरक्षा ढांचे में स्पष्ट रणनीति और व्यापक पारदर्शिता को लेकर चलना चाहिए।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित सुब्रह्मण्यम स्वामी के लेख पर आधारित। 21 अक्टूबर, 2021