विश्व व्यापार संगठन के अस्तित्व का संकट
Date:26-10-21 To Download Click Here.
वर्ष 1995 में गठित विश्व व्यापार संगठन (वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन या डब्ल्यू टी ओ) की नींव नवउदारवाद के दौरान रखी गई थी। यह संगठन मुक्त बाजार पूंजीवाद का एक ज्वलंत उदाहरण बन गया था। यही संगठन आज अस्तित्व के एक गंभीर संकट से गुजर रहा है। इसका कारण इसके समक्ष उपस्थित निम्न चुनौतिया हैं –
- ढाई दशक के दौर में अमेरिका ने धीरे-धीरे इसमें अपनी रुचि समाप्त कर दी है। अमेरिका इस सोच से पीड़ित है कि संगठन, चीन के प्रसार को रोकने में विफल रहा। बहुत से विवादों में इसने अमेरिकी राष्ट्रीय हितों की रक्षा नहीं की। इन सबके चलते अमेरिका ने इसके विवाद तंत्र या अपीलीय निकाय की रिक्तियों को ही भरने नहीं दिया।
- खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग का कोई समाधान नहीं निकाला गया है। भारत जैसे देशों के लिए यह सबसे अधिक चिंता का विषय है। खाद्यान्नों की खरीदी के लिए भारत, न्यूनतम समर्थन मूल्य का उपयोग करता है। विश्व व्यापार संगठन के नियम देशों को एक निश्चित मूल्य पर खरीद की अनुमति देते हैं। इस सीमा से बाहर प्रदान की गई बजटीय सहायता को व्यापार नियमों का उल्लंघन माना जाता है। इस घेरे में भारत भी आता है। हालांकि, संगठन के देशों ने आपसी सहमति से यह तय कर रखा है कि बजटीय सहायता की सीमा के उल्लंघन को कानूनी चुनौती नहीं दी जाएगी।
ट्रेड रिलेटेड आस्पेक्टस ऑफ इंटेलेक्टयुअल प्रापर्टी राइटस (ट्रिप्स)
- एक वर्ष पूर्व भारत और दक्षिण अफ्रीका ने टीकों सहित कोविड-19 चिकित्सा उत्पादों की पहुंच बढाने में बौद्धिक संपदा से संबंधित बाधाओं को दूर करने के लिए ट्रिप्स में छूट का प्रस्ताव रखा था। इस पर अभी भी बहुत से देश असहमत हैं।
- संगठन के अनेक देश मछली पकड़ने के लिए प्रदान की जाने वाली तर्कहीन सब्सिडी को विनियमित करने हेतु समझौता करना चाहते हैं। इस समझौते से चीन जैसे देशों द्वारा समुद्री संसाधनों का अत्यधिक दोहन किए जाने की आशंका है। अच्छा होगा कि समुद्री संसाधनों के संरक्षण और लाखों मछुआरों की आजीविका संबंधी चिंताओं के बीच संतुलन बनाया जाए।
- विश्व व्यापार संगठन में गतिरोध के कारण बड़े बहुपक्षीय व्यापार समझौतों का उदय हुआ है। इन बहुपक्षीय समझौतों से न केवल अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर वैश्विक शासन को खंडित किया जा रहा है, बल्कि बहुपक्षीय व्यवस्था को भी हाशि, पर धकेला जा रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी हाल की अमेरिकी यात्रा के दौरान, नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था के लिए अनुरोध किया था। बढते आर्थिक राष्ट्रवाद की तुलना में संस्थागत बहुपक्षवाद निःसंदेह बेहतर होगा। अपनी खामियों के बावजूद, विश्व व्यापार संगठन एकमात्र ऐसा मंच है, जहां भारत जैसे विकासशील देश, एक समावेशी वैश्विक व्यापार व्यवस्था को विकसित करने के लिए जोर दे सकते हैं।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित प्रभास रंजन के लेख पर आधारित। 7 अक्टूबर, 2021