पनडुब्बी क्षमता में पिछड़ा भारत

Afeias
01 Oct 2021
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Date:01-10-21

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हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से कई देश चिंता में हैं। इसके चलते हाल ही में आस्ट्रेलिया, अमेरिका और यू. के. ने एक त्रिपक्षीय सुरक्षा समझौता किया है। इस समझौते के केंद्र में नौसैनिक शक्ति की मजबूती पर जोर दिया जा रहा है। इसका उद्देश्य हिंदप्रशांत क्षेत्र में चीन के समुद्री युद्ध का मुकाबला करना है, जिसमें पनडुब्बियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।

इस समझौते में परोक्ष रूप से सिंगापुर, इंडोनेशिया, जापान और ताईवान जैसे वे सभी देश शामिल हैं, जो चीन की सैन्य-धमकी का खामियाजा भुगत रहे हैं। चीनी आक्रमण का मुकाबला करने के लिए वे तेजी से परमाणु संचालित पनडुब्बियों को शामिल कर रहे हैं।

भारत की स्थिति –

पनडुब्बी के क्षेत्र में भारत की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है। भारत के पास कुछ पुरानी डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां हैं, जिनमें से केवल आधी ही समय पर चालू होती हैं। तीन फ्रांसीसी पनडुब्बी बेड़े के साथ, भारत के पास केवल एक परमाणु संचालित पनडुब्बी आई एन एस अरिहंत है।

इसके विपरीत, चीन के पास पहले से ही 350 युद्धपोतों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है। 10 परमाणु-पनडुब्बी भी हैं।

नौसैनिक कौशल ने अंतर की इस बड़ी खाई को कम किए बिना भारत के लिए चीन का मुकाबला करना कठिन है।

संयोग से जून, 2021 में ही रक्षा अधिग्रहण परिषद् ने छः नई पनडुब्बियों पी-751 के निर्माण की मंजूरी दी है। इसके अलावा, भारत को 18 पारंपरिक पनडुब्बियों, चार परमाणु संचालित पनडुब्बियों और छह मिसाइल चलाने में सक्षम परमाणु पडुब्बियों की जरूरत है। फिलहाल हम इस लक्ष्य के करीब भी नहीं है। भारत को क्वाड समूह में अपनी स्थिति की मजबूती और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए तेजी से कदम बढ़ाने की आवश्यकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 22 सितंबर, 2021