उच्च शिक्षण संस्थानों की उन्नति का मार्ग
Date:05-04-21 To Download Click Here.
क्यू एस वर्ल्ड रैंकिंग के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों और संस्थाओं में हमारे 12 प्रतिष्ठानों को विभिन्न विषयों में स्थान मिला है। यह प्रशंसनीय है, लेकिन देश में उच्च शिक्षण संस्थानों की गिनती को देखते हुए यह बहुत कम है। इसका कारण है कि हमारे अधिकांश संस्थान प्रणालीगत त्रुटियों से पीड़ित हैं।
शिक्षा की गुणवत्ता का सीधा संबंध विद्यार्थियों की भीतर आकांक्षा से है। देश में लाखों युवा उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। लेकिन यह शिक्षा मात्र कैरियर से जुड़ी हुई है। अगर पढ़ाई और सोच एक बेहतर कैरियर की ओर न ले जाएं, तो अकादमिक महत्वाकांक्षा पर विराम लगना स्वाभाविक है।
दरअसल, बहुत कम रोजगार के अवसर ऐसे हैं, जिनमें आईआईटी जैसी बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा की जरूरत होती है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण सर्वोत्तम अकादमिक और अनुसंधान कार्य हो सकते हैं। वास्तव में तो ज्यादातर रोजगार के अवसर ऐसे हैं, जिनमें किसी भी अच्छे संस्थान से प्राप्त उचित शिक्षा पर्याप्त हो सकती है। विडंबना यह है कि नामी संस्थानों के अलावा अन्य संस्थानों से निकले विद्यार्थियों के लिए रोजगार के अवसरों की क्रमशः कमी होती रही है। इस हेतु अवसरों में प्रणाली-व्यापी विकास किए जाने की आवश्यकता है। यह विकास विभिन्न स्तरों पर किया जाना चाहिए .
- शीर्ष पर नीतिनिर्माण है।
- उद्योगों को तकनीकों के आयात के स्थान पर घरेलू स्तर पर इनके विकास में निवेश करने की जरूरत है।
- महाविद्यालयों के शिक्षकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
- अगर विद्यार्थी बेहतर ज्ञान की लगातार मांग करें, तो संस्थानों को बाध्य होकर यह देना ही होगा।
सवाल उठता है कि विद्यार्थी ऐसी मांग क्यों और कब करेंगे ? ऐसी मांग तभी की जाएगी, जब हमारा समाज बेहतर शिक्षा के मूल्य को स्थान देगा। अगर ये मूल्य विद्यार्थी को आर्थिक दृष्टि से भी लाभ पहुँचा सकते हैं, तो यह उनके लिए अतिरिक्त लाभ होगा।
निष्कर्ष यही है कि शिक्षा का सीधा संबंध समाज से जुड़ा होना चाहिए, तभी वह लाभकारी हो सकती है और उत्कृष्ट हो सकती है।
भारतीय समाज में केवल रोजगार की तलाश नहीं की जा रही है, वरन् ऐसे अनेक रोजगार भी हैं, जो उपयुक्त लोगों की आस में हैं। डिजाइन, स्वास्थ, विनिर्माण, परिवहन, सुरक्षा, कचरा-प्रबंधन, जल, ऊर्जा आदि अनेक ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ युवा और नवोन्मेषी मस्तिष्क की अत्यंत आवश्यकता है। इसके लिए हमें कक्षा की चारदीवारी और जीवन के बीच खड़ी दीवार को तोड़ना होगा। हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों की उन्नति का यह सर्वोत्कृष्ट मार्ग हो सकता है।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अनिंद्य चटर्जी के लेख पर आधारित। 12 मार्च, 2021