भारत में न्याय की गति से संबंधित कुछ तथ्य
Date:17-12-19 To Download Click Here.
- देश में विविध स्तरों पर न्यायालयों में साढ़े तीन करोड़ से अधिक मुकदमें लंबित हैं। इनमें से तकरीबन साठ हजार मामले तो अकेले उच्चतम न्यायालय में लंबित हैं।
- कानून मंत्री ने सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से आग्रह किया है कि वे अपने यहाँ की अदालतों में लंबित पड़े दस साल या इससे पुराने मामलों का त्वरित निपटारा सुनिश्चित करें।
- न्यायालयों को मुकदमों से निजात दिलाने के लिए केन्द्र सरकार ने कुछ साल पहले राष्ट्रीय मुकदमा नीति बनाने की बात की थी। इसके अंतर्गत प्रमुख लंबित मुकदमों की औसत अवधि को पन्द्रह साल से कम करके तीन साल करने तथा न्यायलय के समय का सदुपयोग करने के लिए सभी न्यायालयों में कोर्ट प्रबंधकों की नियुक्ति करने जैसी बातें शामिल थीं। यह मामला आगे नहीं बढ़ा।
- ज्यादातर मुकदमें छोटे-छोटे झगड़ों, आपसी अहं, यातायात से संबंधित अपराधों, चैक बाउंस जैसी शिकायतों से संबंधित होते हैं। इस प्रकार के मामलों में दोनों पक्षकारों के बीच बातचीत के जरिए समझौता करवाया जा सकता है। इसके लिए समय-समय पर लोक-अदालतों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। याचिकाकर्ताओं को मध्यस्थता जैसी प्रक्रिया का सहारा लेने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
- न्याय की गति को बढ़ाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट या त्वरित न्यायालयों का भी सहारा लिया गया है। जब कोई न्यायालय अपने पास आए मुकदमे को एक साल की अधिकतम अवधि में निपटा सके, तो उसे फास्ट “ट्रैक कोर्ट” कहा जाता है। 2018 में देश में 699 ऐसे न्यायालय थे।
- ऐसे न्यायालयों की स्थापना के लिए राज्यों का अपना अधिकार है। 2017 में झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु के त्वरित न्यायालयों ने अपने पास आए आधे मुकदमों को एक साल में निपटा दिया था। 2017 में ही बिहार ने सबसे ज्यादा 6704 मामले निपटाए।
- 2019 में इन त्वरित न्यायालयों को बलात्कार और पाक्सो कानून से संबंधित मामले निपटाने को कहा गया है।
- देश में न्यायिक सेवा की मद में बजटीय आवंटन बहुत ही कम है। भारत में यह जीडीपी के आधा प्रतिशत से भी कम है।
- हमारे यहाँ जजों की बहुत कमी है, जो न्यायिक सेवा की गति पर प्रभाव डालती है। भारत में प्रति दस लाख की जनसंख्या पर मात्र 11 जज हैं। जबकि आस्ट्रेलिया में 42, कनाड़ा में 75 और ब्रिटेन में 51 हैं।
पर्याप्त बजट आवंटन के अलावा न्याय तंत्र की गति बढ़ाने के लिए इसे आधुनिक तकनीकी सुविधाओं से लैस करने की आवश्यकता है। आंकड़े इकट्ठे करने, अदालती कार्यवाही में देरी पर नजर रखने, एक तरह के मामलों को समायोजित करके उनकी संख्या को बढ़ने से रोकने के अनेक लाभ हो सकते हैं। न्यायपालिका में सुधार को सरकारी प्राथमिकता में शामिल करने की जरूरत है।
विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित।
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