हिन्द महासागर ही भारत की प्राथमिकता हो
Date:23-01-18 To Download Click Here.
बदलते वैश्विक परिदृश्य में अमेरिका भारत के नजदीक आ रहा है, जबकि चीन से उसकी दूरियां बढ़ गई हैं। अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी ने भी ऐसे ही संकेत दिए हैं। अमेरिका ने आस्ट्रेलिया, जापान और भारत के साथ बने क्वाडिलेटरल सहयोग को बढ़ाने पर जोर भी दिया है। इन सबके बीच भारत को कोई भी कदम उठाने से पहले दो पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए।
- चीन के बढ़ते दबदबे को रोकने के प्रयास में अमेरिका कहीं भारत का इस्तेमाल न करे, और
- भारत को प्रशांत महासागर के देशों के साथ संबंध बनाने से अधिक आवश्यक हिन्द महासागरीय क्षेत्र की रक्षा करना है।
विश्व-पटल पर भारत की भूमिका एक संतुलन-शक्ति की रही है। वैश्विक राजनीति में उसकी भूमिका के बढ़ने के साथ ही भारत और विश्व का हित इसी में है कि वह संतुलन बनाए रखे। हाल ही में भारत ने येरूशलम के मामले में अमेरिका के विरूद्ध जाकर ऐसा कर भी दिखाया है।हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन धीरे-धीरे अपना विस्तार करता जा रहा है। हाल ही में उनकी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने भी इस बात के संकेत दिए हैं कि वह अफ्रीका, पश्चिम एशिया एवं अन्य क्षेत्रों में अपनी सैन्य चैकियां स्थापित करने की संभावना तलाश कर रहा है। भारत के लिए यह एक प्रकार की चेतावनी है। उसे एडेन की खाड़ी से लेकर मल्लका जलडमरू मध्य तक के हिन्द महासागर क्षेत्र को संरक्षित करने पर विचार करना चाहिए। सबसे अच्छा तो यही है कि इसके लिए भारत अपनी क्षमता और सुरक्षा साधनों का मूल्यांकन करे।
हिन्द महासागर या दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारत के हितों की रक्षा के लिए अनेक देश शुभचिंतक बने हुए हैं। उन सबका ऐसा प्रयास मनभावन हो सकता है, परन्तु असलियत में तो भारत को चाहिए कि वह स्वयं ही अपने को इतना मजबूत बना ले कि उसे अपने क्षेत्र में किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता ही न पड़े। इसके लिए भारत को अपने पड़ोसी देशों को सर्वोच्च प्राथमिकता में निरंतर रखना चाहिए। विश्व के अन्य देशों के साथ चतुर्भुज या त्रिकोणीय समझौते किए जा सकते हैं। परन्तु इस प्रकार के समूहों में शामिल अन्य देशों की अपनी प्राथमिकताएं होती हैं। जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ बने क्वाडिलेटरल में भी अन्य देशों की प्राथमिकता प्रशांत महासागर, विशेषतः दक्षिण चीन सागर है।
- किए गए प्रयास–
- भारत ने सिंगापुर के साथ नौसेना समझौता किया है। यह एक द्विपक्षीय समझौता है, जिसमें भारत को मलल्का जलडमरू मध्य के मुहाने तक प्रवेश मिल जाएगा।
- आसियान देशों के साथ भी बहुपक्षीय संयुक्त अभ्यास पर काम चल रहा है।
- इसी प्रकार के कई लॉजिस्टिक समझौतों पर कई देशों के साथ बातचीत चल रही है।
- गत माह भारत ने गोवा मेरीटाइम कॉनक्लेव की मेजबानी की, जिसमें हिन्द महासागर से जुड़े दस देश सम्मिलित हुए थे। इन देशों ने आपसी सहयोग पर बातचीत की। भारत के नेतृत्व में किया गया यह ऐसा प्रयास है, जिसमें देशों ने समुद्री गतिविधियों की वास्तविक जानकारी को साझा करने पर सहमति जताई है।
यही वे प्रयास हैं, जिनकी भारत को सबसे ज्यादा जरूरत है। भारत को समान प्राथमिकताओं वाले देशों के साथ मिलकर इसी दिशा में कदम उठाना चाहिए।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित दिनाकर पेरी के लेख पर आधारित।