फसल बीमा योजना में किसानों की भागीदारी सुनिश्चित करें।
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प्राकृतिक आपदाओं से पड़ने वाली मार का शिकार सबसे ज्यादा किसान होते हैं। 2014-15 और 2015-16 के सूखे के बाद अब गुजरात, राजस्थान और असम में आई बाढ़ ने यह सिद्ध कर दिया है कि फसल बीमा योजना को सक्रिय रूप से कार्यान्वित किए बिना किसानों को टूटने से बचाया नहीं जा सकता। राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना एवं मौसम आधारित फसल बीमा योजना के अंतर्गत बीमा की राशि बहुत कम रही है। इसकी भरपाई के लिए सरकार को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कोष के जरिए किसानों की सहायता करनी पड़ती थी। परन्तु सन् 2016 से प्रधानमंत्री ने जिस फसल बीमा योजना की शुरूआत की है, उससे किसानों में एक नई उम्मीद जग गई है।
इस योजना से किसानों के जीवन में निश्चित रूप से परिवर्तन आया है। इसके अंतर्गत बीमे की राशि को धरातल के स्तर पर ऊपज की राशि के अनुकूल रखा गया है। प्रीमियम में केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों ने भारी छूट देते हुए खरीफ के लिए किसानों से 2 प्रतिशत एवं रबी के लिए 1.5 प्रतिशत देय राशि तय की है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के प्रति किसानों में बहुत उत्साह देखने में आया है। इससे जुड़ने वाले किसानों और भूमि का क्षेत्र एक वर्ष में ही बहुत अधिक बढ़ गया है।बीमा के अंतर्गत कृषि भूमि के बढ़ने से बीमा कंपनियों में प्रतियोगिता का माहौल तैयार हो गया है। परन्तु किसी भी फसल बीमा योजना की सफलता तभी सिद्ध होती है, जब वह जल्द से जल्द पीड़ित किसान का उसकी मुआवजा राशि मुहैया करवा सके। इस प्रकार की सफलता के लिए कुछ सुधार करने की आवश्यकता है। फिलहाल बीमा प्रक्रिया ऐसे चलती है –
- राज्य सरकार अपने क्षेत्र की ऊपज को पहचान कर जिलों के समूह बना देते हैं। जिला स्तरीय समितियों को बीमे की राशि के आकलन का काम सौंपा जाता है। तत्पश्चात बीमा कंपनियों से टेंडर लिए जाते हैं।
- बीमा करने वाली कंपनियों का प्रीमियम केन्द्र और राज्य सरकारें देती हैं।
- फसल खराब होने की स्थिति में नुकसान का अनुमान लगाकर जल से जल्द उसकी मुआवजा राशि दी जाती है।
इस प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से किसान की कोई भागीदारी नहीं है। इसके कारण पूरी प्रक्रिया में जगह-जगह दरारें हैं। अगर राज्य सरकार की ओर से अधिसूचना में प्रीमियम देने में या फसल के आंकड़े देने में देर होती है, तो किसानों को देर से मुआवजा मिलता है। ऐसा भी सुनने और देखने में आया है कि दिए जाने वाले प्रीमियम की तुलना में बीमा राशि का दावा बहुत कम किया जाता है।दूसरे, अधिकतर राज्य सरकारों ने बीच में होने वाले मौसम परिवर्तन के लिए कोई दावा नहीं किया है। जबकि ऐसी स्थिति में किसान 25 प्रतिशत राशि लेने के अधिकारी हैं।
तीसरे, अधिकतर राज्य सरकारें राजस्व विभाग के कर्मचारियों को स्मार्ट फोन उपलब्ध कराने में असफल रही हैं। इसके कारण खेत में हुए नुकसान की फोटो नहीं भेजी जा सकी और किसानों को मुआवजा नहीं मिल सका।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की सफलता के लिए जरूरी है कि इस पूरी प्रक्रिया में किसानों की भी प्रत्यक्ष भागीदारी हो। दूसरे, बीमा के डाटाबेस को कोर बैंकिंग सॉल्यूशन्स से जोड़ने की आवश्यकता है। ऐसा होने पर प्रीमियम राशि कटने पर किसान को बीमा राशि एवं बीमा कंपनी की जानकारी मिल जाएगी।फिलहाल बहुत से किसानों को यह भी पता नहीं है कि उनकी फसल का बीमा कराया गया है। जब तक यह प्रक्रिया राज्य सरकार एवं बीमा कंपनियों के बीच चलती रहेगी, तब तक किसानों के जीवन में अपेक्षित परिवर्तन नहीं आ सकेगा।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अशोक गुलाटी एवं सिराज हुसैन के लेख पर आधारित।