आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की पत्रकारिता परमार
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सोशल नेटवर्किंग साइटऔर मीडिया के अन्य साधनों में दिनों दिन बढ़ती जा रही झूठी खबरें, छेड़छाड़ करके बनाए गए वीडियो, अप्रमाणित समाचार हमारे समाज मेंअराजकता और वैमनस्य फैलाने का काम करते हैं।
झूठी खबरों और झूठी क्लिप्स को बनाने के लिए आजकल एक आर्टीफिशियल लर्निंग एल्गोरि दम का उपयोग किया जाने लगा है, जो जेनेरेटिव एडवरसेरियल नेटवर्क के अंतर्गत आता है।इस एल्गोरि दम के माध्यम से किसी क्लिप को उसकी एडिटिंग में छेड़छाड़ किए बिना भी बदला जा सकता है। ऑडियो क्लिप को बदलना भी आसान है।अब आगे के समय में झूठे वीडियो बनाए जा सकेंगे। ऐसा लगता है कि आने वाले समय में आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस ऐसे तथ्य लाने में कामयाब हो जाएगा,जिन पर यकीन करना बहुत मुश्किल होगा।इसलिए वर्तमान समय में इनके प्रतिसतर्क हो जाने की बहुत जरूरत है।
- हम रोज ही देख रहे हैं कि हमारी जानी-मानी हतिस्यां खासतौर पर नेतागण इस प्रकार की झूठी खबरों का शिकार हो रहे हैं।
- व्हाटस्एप पर रोजाना कितनी झूठी खबरें फॉरवर्ड की जार ही हैं और लोग उन पर यकीन कर रहे हैं।
- इन झूठी खबरों को जाँचने का कोई ठोस तरीका नहीं है।
पत्रकारिता का काम किसी खबर की तह तक जा कर उसकी सच्चाई का पता लगाना है।लेकिन आज आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस ने उसके इस स्वरूप का दमन कर दिया है।आज हम सब उस स्थिति में हैं, जहाँ सच्चाई और जनहित को समर्पित खबरों की दुनिया दबाव में है।
‘द हिन्दू’ मेंप्रकाशित ए.एस.पनीरसेल्वम के लेख परआधारित।