कचरा निष्पादन:- समस्या और समाधान

Afeias
12 Jul 2017
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Date:12-07-17

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आज भारत के लगभग हर नगर के आसपास कूड़े के पहाड़ देखने को मिल जाते हैं। ये कूड़े के पहाड़ हमारी वर्षों से चली आ रही कचरा निष्पादन के प्रति अनदेखी का नतीजा है। सन् 2000 के म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट (मैनेजमेंट एण्ड हैण्डलिंग) रूल्स में कचरे को अलग-अलग करके बचे हुए कचरे के लिए निश्चित स्थान आज खुले कूड़ाघर बने हुए हैं। गीले और सूखे कूड़े को अलग करके इकट्ठा करने की कोई कोशिश नगर निगमों की ओर से प्रारंभ नहीं की गई है। इस प्रकार के कूड़े के पहाड़ आज हमारी जान के लिए संकट बने हुए हैं।

  • इन कूड़े के पहाड़ों में हवा के जाने की बिल्कुल गुंजाइश नहीं रखी जाती है। अतः इनसे मीथेन नामक ऐसी गैस निकलती है, जो सूर्य के ताप को अवशोषित कर लेती है, वातावरण की गर्मी को बढ़ाती है और इस प्रकार यह ग्लोबल वार्मिंग के लिए भी जिम्मेदार है। कार्बन डाइ ऑक्साइड की तुलना में यह 20 प्रतिशत अधिक ताप को अवशोषित करती है।
  • 25 से 30 साल पुराने कूड़े से एक प्रकार का द्रव लीचेट निकलना शुरू हो जाता है। यह जहरीला होता है। यह कूड़े के पहाड़ों के आसपास के भूजल और मिट्टी में मिलकर उसे जहरीला बना देता है।
  • कूड़े के ढेरों से उठने वाली बदबू और आए दिन उन्हें जलाने से उठने वाला धुंआ; दोनों ही वहाँ रहने वालों के लिए कष्टदायक हैं।

कचरा निष्पादन की समस्या को लेकर लगातार दायर की जाने वाली याचिकाओं के बाद अब सूखा कचरा निष्पादन नियम, 2016 लाया गया है। इन नियमों में सूखे और गीले कूड़े को अलग-अलग रखने के निर्देश दिए गए हैं। ऐसा न करने की स्थिति में दंड का भी प्रावधान रखा गया है। संविधान के अनुच्छेद 51(ए) में दिए गए मौलिक कत्र्तव्यों में स्पष्ट कहा गया है कि ‘जंगल, झील, नदी और वन्य-जीवन जैसे प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा और विकास करना हर नागरिक का कत्र्तव्य है।’ कचरा निष्पादन के संबंध में कुछ अन्य नियम ऐसे हैं, जो कचरे का जैविक निष्पादन कर उसे संतुलित रखने पर बल देते हैं।

कचरा निष्पादन से संबंधित बहुत सी चुनौतियां अभी भी सामने खड़ी हैं, जिनसे निपटने के लिए कानूनों के व्यावहारिक स्तर पर अमल किए जाने की नितांत आवश्यकता है।

  • कूड़े के मैदानों की कोई सीमाएं नहीं बनाई गई हैं। न तो नीचे की गहराई की कोई सीमा है और न ही अगल-बगल की।
  • इन कूड़े के पहाड़ों को ऊपर से ढकना और भी ज्यादा खतरनाक है। मुंबई के मलाड में ऐसा किए जाने पर इनसे निकलने वाली जहरीली गैस ने पास के व्यावसायिक केन्द्र के इलैक्ट्रानिक उपकरण जला दिए। साथ ही वहाँ के निवासियों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगा।
  • कई स्थानों पर लगाए गए कचरे से ऊर्जा बनाने वाले संयंत्र भी कारगर सिद्ध नहीं हो रहे हैं। यूरोप और चीन जैसे देशों में भी अब इन्हें सफल नहीं माना जा रहा है।
  • इन संयंत्रों से आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। इनमें आने वाला गीला कूड़ा व्यर्थ जाता है। केवल सूखा कूड़ा ही ऊर्जा उत्पादन के काम आता है। दूसरे, इन संयंत्रों से अपेक्षित ऊर्जा भी नहीं मिल रही है।कचरा रूपांतरण संयंत्रों से वायु प्रदूषण बहुत अधिक होता है।
  • समाधान

हाल ही में भारत के स्वच्छ भारत अभियान की राष्ट्रीय विशेषज्ञ रागिनी जैन ने कचरा निष्पादन से जुड़ा एक ऐसा उपाय प्रस्तुत किया है, जो सुरक्षित और लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

इस प्रक्रिया में कूड़े के पहाड़ों को अलग-अलग भागों में एक प्रकार से काटकर उन्हें सीढ़ीनुमा बना दिया जाता है। इससे उनके अंदर पर्याप्त वायु प्रवेश कर पाती है और लीचेट नामक द्रव अंदर भूमि में जाने के बजाय बहकर बाहर आ जाता है। कूड़े के हर ढेर को सप्ताह में चार बार पलटा जाता है। उस पर कॅम्पोस्ट माइक्रोब्स का छिड़काव किया जाता है, जिससे उसे जैविक मिश्रण के रूप में बदला जा सके। इस चार बार के चक्र में कूड़े का ढेर 40 प्रतिशत कम हो जाता है। इस प्रकार उसका जीवोपचारण कर दिया जाता है। लीचेट के उपचार के लिए भी कुछ सूक्ष्म जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद जैव खनन के द्वारा इसका उपयोग खाद, सड़कों की मरम्मत, रिफ्यूज डिराइव्ड फ्यूल पैलेट, प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग और भूमि भराव के लिए किया जा सकता है।जीवोपचार से कचरा निष्पादन करने के प्रयास में अनेक उद्यमी एवं अन्वेषक लगे हुए हैं। इस प्रकार के उपचार से कचरे से पटी भूमि अन्य कार्यों के भी उपयुक्त हो जाती है। यह सुरक्षित, सरल और मितव्ययी प्रणाली है।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित इशर जज अहलूवालिया एवं अलमित्रा पटेल के लेख पर आधारित।