नीति आयोग के दो वर्ष
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हाल ही में नीति आयोग ने अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे किए हैं। इस मौके पर योजना आयोग के एवज में काम कर रहे नीति आयोग की प्रकृति और कार्य को समझने की आवश्यकता है। पंचवर्षीय योजनाओं को तैयार करके उन्हें लागू करवाना एवं राज्यों को वित्तिय सहायता देना ही योजना आयोग के दो प्रमुख कार्य थे। इसमें से कोई भी काम नीति आयोग का नहीं है। पंचवर्षीय योजना का अंत इस वर्ष मार्च में हो जाएगा। जहाँ तक राज्यों को वित्तिय सहायता देने का प्रश्न है, वह भी नीति आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। चैदहवें वित्त आयोग ने पहले ही राज्यों को दी जाने वाली धनराशि के प्रतिशत को 32 से बढ़ाकर 42 कर दिया है। इसलिए अब नीति आयोग के पास राज्यों को धन आवंटित करने की कोई गुंजाइश ही नही हैं।
नीति आयोग के बहुत से कामों में से तीन मुख्य काम हैं – सहयोगी एवं प्रतियोगी संघवाद को बढ़ावा देना, नीति निर्माण में केंद्र सरकार को सहयोग देना और तीसरे, सरकार के विचार- केंद्र (Think Tank) के रूप में काम करना। नीति आयोग के ये तीनों ही काम अपने आप से अलग-अलग होने के बजाय एक दूसरे के परिपूरक हैं।
सभी राज्यों के मुख्यमंत्री एवं केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल नीति आयोग की संचालन परिषद् (Governing Council) के हिस्से हैं। इसकी पहली और एकमात्र बैठक फरवरी 2015 में संपन्न हुई थी। इसमें मुख्यमंत्रियों के तीन उपवर्ग बनाए गऐ थे, जो प्रधानमंत्री को केंद्र संरक्षित योजनाओं; जैसे-कौशल विकास एवं स्वच्छ भारत मिशन पर सलाह देंगे। इस बैठक में कृषि विकास एवं गरीबी उन्मूलन पर दो कार्यदल भी गठित किए गये थे। ऐसे कार्यदल राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में भी गठित किए गए।
आयोग के सहयोग से इन उपवर्गों ने अल्पावधि में ही अपना काम पूरा करके रिपोर्ट सौंप दी। इसी प्रकार कार्यदलों का काम भी जल्दी ही पूरा हो गया। इन पाँचों की रिपोर्टों में दी गई सिफारिशों को या तो कार्यान्वित किया जा चुका है उन्हें विचाराधीन रखा गया है।
आयोग ने राज्यों में अनेक सुधारों को भी प्रोत्साहन दिया है। इसने एक आदर्श भूमि पट्टा कानून को निरूपित किया है, जिसे मध्यप्रदेश सरकार ने अपना लिया है तथा उत्तर प्रदेश ने पहले से विद्यमान कानून में आयोग के निरूपित कानून को सम्मिलित कर लिया है। अन्य राज्य भी इसे अपना रहे हैं।आयोग ने कृषि विपणन में सुधारों के लिए एक अभियान चलाया है। इसने विभिन्न मंत्रालयों के पास राज्यों के लंबित पड़े मामलों के शीघ्र निपटाने के भी प्रयास किए हैं। यह विभिन्न मंत्रालयों से संबद्ध राज्य स्तरीय अधिकारियों के साथ नियमित संपर्क बनाकर राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में बेहतरीन कार्यों का प्रसार भी करता है।
केंद्र के नीति निर्माता की भूमिका में आयोग ने सार्वजनिक क्षेत्र के अनेक बीमार संस्थानों को बंद करने के लिए उनकी पहचान की है। इनमें से 17 ईकाईयों पर काम शुरू किया जा चुका है। आयोग ने विनिवेश के लिए काम कर रही अनेक ईकाईयों को चुना है। वित्त मंत्रालय को चाहिए कि इन ईकाईयों को बेचने का प्रबंध करे। आयोग ने 1956 के चिकित्सा परिषद् आयोग अधिनियम में भी जबर्दस्त बदलाव किये है । इसके बदले यह चिकित्सा शिक्षा आयोग अधिनियम लेकर आया है, जिससे भारत में चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन किया जा सकेगा।
आयोग ने राष्ट्रीय ऊर्जा नीति का एक विस्तृत मसौदा तैयार कर लिया है। उसे किसी जन-मंच पर लाकर उस पर विस्तार से चर्चा होना अभी बाकी है। देश में 20 स्तरीय विश्वविद्यालय बनाने के लिए भी आयोग काम कर रहा है। इसके साथ ही 1956 के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम एवं 1957 के अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् अधिनियम में भी सुधार करने की तैयारी की जा रही है। आयोग ने अच्छी नौकरियाँ उपलब्ध कराने की दृष्टि से तटीय रोजगार क्षेत्र का शुभारंभ कर दिया है।
सरकार के विचार-केंद्र की तरह काम करते हुए आयोग ने एक ऐसी पुस्तक तैयार की है, जिसमें सर्वोत्कृष्ट कार्यप्रणाली, इससे जुड़ी कार्य-शालाओं के आयोजन, भारतीय ऊर्जा सुरक्षा परिदृश्य 2047, प्रायोजित शोध एवं विभिन्न अवसरों पर प्रकाशित लेख शामिल किए गए हैं। आयोग ने 15 वर्षों की झलक, 7 वर्षों की कार्यनीति एवं तीन वर्षों के एक्शन प्लान संबंधी दस्तावेज भी लाने की तैयारी कर रखी है। आयोग ने थर्मन शन्मुग्रत्नम सिंगापुर के उपमुख्यमंत्री एवं बिल गेट्स जैसे वक्ताओं की एक व्याख्यान श्रृंखला का भी आयोजन किया है। प्रधानमंत्री, केबिनेट एवं कई सचिवों ने भी इस व्याख्यान श्रृंखला का लाभ उठाया।
अटल इनोवेशन मिशन (Atal Innovation Mission) के द्वारा आयोग ने नवपरिवर्तन एवं उद्यमिता की एक हवा पूरे देश में चला दी है। इसको और प्रोत्साहित करने के लिए देश के 200 विद्यालयों में लैब एवं इन्क्यूबेटर बनाए जाएंगे।योजना आयोग के 1200 पदों के स्थान पर आयोग ने 500 पद ही रखे हैं। साथ ही लगभग 45 युवा व्यावसायिक एवं 12 वरिष्ठ अधिकारियों को बाहर से नियुक्त किया है। इससे आयोग की ऊर्जाशक्ति में बहुत वृद्धि हुई है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया‘ में प्रकाशित अरविंद पनगढ़िया के लेख पर आधारित।