जलवायु परिवर्तन से होने वाले जोखिम को दर्शाते कुछ तथ्य तथा वित्त आयोग की भूमिका

Afeias
01 Nov 2025
A+ A-

To Download Click Here.

जलवायु परिवर्तन से होने वाले बदलावों के बारे में हम सभी जानते हैं। लेकिन इसी परिवर्तन के कारण हमारे शहर भी चिंताजनक बदलाव से गुजर रहे हैं।

महत्वपूर्ण तथ्य –

  • विश्व बैंक की ‘ग्राउंडस्वेल’ रिपोर्ट का अनुमान है कि जलवायु संबंधी दबावों के कारण 2050 तक लगभग 21.6 करोड़ लोग अपने देश के भीतर विस्थापित होने को मजबूर हो सकते हैं। सूखे के कारण गाँवों से तथा बढ़ते समुद्री जलस्तर के कारण लोग तटीय इलाकों को छोड़कर शहरों में जा रहे हैं।
  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण शहर आकर्षण का केंद्र बनेंगे, क्योंकि शहरों में रोजगार व जीवन की अच्छी संभावनाएँ हैं। अनियोजित शहरी योजना के कारण ऐसे लोगों को बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदा वाले क्षेत्रों में रहना पड़ सकता है।
  • आईपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन अब सिर्फ अलग स्तर पर ही झटके नहीं देता, बल्कि यह बेहद जटिल और एक के बाद एक आने वाले खतरे पैदा करता है। बिजली, पानी, परिवहन और संचार के नेटवर्कों से जुड़े शहर यह महसूस कर रहे हैं कि एक विफलता अक्सर दूसरे को भी नीचे खींच लेती है।
  • जब वातानुकूलित तंत्र चलना ही बंद कर देंगे, तो मृत्यु दर बहुत बढ़ जाएगी। ऊँचे ज्वार, भारी वर्षा तथा, उफनती नदियाँ एक साथ मिलकर भारी बाढ़ लाती हैं। शहर अलग-अलग खतरों से निपटने के लिए नियोजित होते हैं, पर इस तरह साथ आने वालें खतरों के लिए तैयार नहीं होते।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की ‘अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट’ 2024 के अनुसार जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकासशील देशों को प्रत्येक वर्ष 194 से 366 अरब डॉलर की जरूरत है। लेकिन 2022 तक उनको सिर्फ 28 अरब डॉलर ही मिल पाएँ। जलवायु परिवर्तन पर आवंटित धन का 10% ही जलवायु अनुकूलन के लिए लगाया जाता है। ज्यादातर धन जलवायु परिवर्तन रोकने में खर्च होता है।
  • विश्व बैंक का अनुमान है कि भारतीय शहरों को अपने बुनियादी ढ़ाँचें को जलवायु परिर्वतन से बचाने के लिए 2050 तक 2.4 लाख करोड़ डॉलर की आवश्यकता होगी। हमें अपने शहरों को बाढ़ जैसी आपदाओं के जोखिम से होने वाली हानि से बचाने के लिए अभी से उपाय करने होंगे, वरना यह हानि 4 अरब डॉलर से 30 अरब डॉलर हो सकती है।

16वें वित्त आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका –

  • वित्त आयोग को जलवायु जोखिम के लिए होने वाले राजस्व हस्तांतरण को मुख्य धारा में लाने की जरूरत है।
  • वित्त आयोग जलवायु संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर राजस्व के मापदंड बनाए। वर्तमान में ‘वन एवं पारिस्थितिकी’ के लिए 10% हिस्सा राजस्व का दिया जाता है। इसमें अधिकतर धनआपदा के बाद के जोखिमों पर ध्यान देने के लिए दिया जाता है।
  • एक रिपोर्ट के अनुसार जनसंख्या और क्षेत्रफल का हिस्सा 15 से घटाकर 13% वन व पर्यावरण का 10 से 9% किया जाए। इस तरह जो धन बचे, उसे जलवायु से जुड़े खतरों में अलग से लगाया जाए।

पलायन, आपदाएँ व धन की कमी साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन के जोखिम को बढ़ाती हैं। पलायन का सही प्रबंधन बुनियादी ढांचे को सुनियोजित करके ही किया जा सकता है, जिसके लिए धन आवश्यक है। प्राकृतिक व मानव निर्मित बुनियादी ढ़ांचे को एक साथ जोड़ने की आवश्यकता है। भारत को अच्छे मानक स्थापित कर ग्लोबल साउथ के लिए लीडर बनना चाहिए।

*****