बिजली उत्पादन में कोयले से जुड़े अहम मुद्दे

Afeias
18 Oct 2025
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आज हमारे सामने जलवायु परिवर्तन और विकासशील देशों की बढ़ती ऊर्जा की चुनौती है। इसलिए यह प्रश्न भी उठता है कि हमें विद्युत उत्पादन में कोयले के प्रति क्या रवैया अपनाना चाहिए। पृथ्वी का तापमान 1.5॰C से ज्यादा न हो, इसके लिए भी इस पर विचार व क्रियान्वयन जरूरी है।

समाधान के रूप में हम कह सकते हैं कि कोयले का खनन न हो, न उसे बिजली उत्पादन में प्रयोग किया जाए। लेकिन फिर ऊर्जा की कमी किस प्रकार पूरी की जाएगी?

विकसित देश विकसशील देशों से स्वच्छ ऊर्जा की अपेक्षा रखते हैं। लेकिन उनके पहले के अधिक उत्सर्जन के कारण ही हमारा पर्यावरण इतना अधिक प्रदूषित हुआ है। अब ये देश प्राकृतिक गैस जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोत अपना रहे हैं। पर इनसे भी छोटे पैमाने पर ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन होता है।

यूरोपीय संघ ने भी अमेरिका से अपनी हरित ऊर्जा योजनाओं के विपरीत 250 अरब डॉलर के ऊर्जा उत्पादों को आयात का वादा किया है।

हमारे समक्ष किफायती विकास की चुनौती है। साथ ही विकसित देशों की कठोर वास्तविकताएँ भी हैं। तब क्या हमें कोयले पर निर्भरता छोड़ देनी चाहिए या पुरानी व नई ऊर्जा के स्रोतों के मध्य संतुलन लाने का प्रयास करना चाहिए?

आगे की राह –

  • 2030 तक हमारी ऊर्जा की मांग दोगुनी हो जाएगी। इसमें कोयला हमारी ऊर्जा जरूरतों का 50% ही पूरा कर पाएगा। इसीलिए सरकार द्वारा धीरे-धीरे कोयले पर निर्भरता कम करने का रास्ता ही सही है।
  • यह सच है कि कुछ सालों में कोयला इतिहास का हिस्सा बन जाएगा। लेकिन हमें उससे पहले तथा बाद के लिए ऐसी नीतियाँ बनानी होंगी कि सभी क्षेत्रों में उत्सर्जन कम हो। स्थानीय हवा की गुणवत्ता के लिए जहरीले प्रदूषक तत्वों की कमी के लिए तथा वैश्विक स्तर पर बेहतर जलवायु स्थिति के लिए यह अनिवार्य है।
  • भारत में कोयला आधारित ताप विद्युत क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने से जुड़े रोडमैप शीर्षक वाली रिपोर्ट के अनुसार ताप विद्युत संयंत्रों; को यदि कार्बन मुक्त किया जाता है, तो लोहा और इस्पात एवं सीमेंट क्षेत्र से भी उत्सर्जन कम हो सकता है।
  • मौजूदा संयंत्रों को मानक कुशलता हासिल करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए अहम तकनीक पर आधारित विद्युत संयंत्र जो मौजूदा कुल संयंत्र का 85% है, उन्हें शीर्ष स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करने वाले संयंत्रों के उत्सर्जन मानक तक पहुंचाना चाहिए।
  • कच्चे माल में कोयले की जगह दूसरा विकल्प प्रयोग किया जाए। कुछ बिजली संयंत्र बायोमास का प्रयोग कोयले के साथ करते हैं। यह बायोमास प्रयोग 20% करना चाहिए। लेकिन इसके लिए बेहतर योजना के साथ ही स्पष्ट निर्देशों की आवश्कयता है। सरकार की योजना उन्नत ताप विद्युत संयंत्र बनाने की है, जो परंपरागत तकनीक से अधिक कुशल व स्वच्छ होंगे।
  • सही नीतिगत प्रोत्साहन के बिना 40% नई पीढ़ी की इकाइयाँ 50% प्लांट लोड फैक्टर से कम पर काम करती है। इसका मतलब यह है कि उनका उत्सर्जन पहले वाले संयंत्र से ज्यादा होता है। यह मैरिट आर्डर डिस्पैच सिस्टम अर्थात बिजली कंपनियों को सबसे सस्ती बिजली पहले बेचने के नियम तय करने वाली प्रणाली, उत्पादन लागत पर आधारित है।

पुराने बिजली संयंत्र में पूँजीगत लागत कम होती है, क्योंकि इसमें तकनीक या रखरखाव में कम खर्च होता है। इसी कारण कोयले की बादशाहत अब तक कायम है। इसे खत्म किया ही जाना चाहिए।

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