कोयले पर निर्भरता को कैसे कम करेगा भारत

Afeias
09 Dec 2022
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कोप 26 या कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज या यूनाइटेड नेशन्स क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस में ईधन के रूप में कोयले के इस्तेमाल को कम करने को लेकर संकल्प लिए गए थे। परंतु यूक्रेन युद्ध से परंपरागत ऊर्जा स्रोतों की आपूर्ति में आई बड़ी रुकावट ने कोयले के उपयोग को बढ़ा दिया है। स्थितियों के मद्देनजर भारत ने कोप-27 में प्रस्ताव रखा है कि केवल कोयले में कटौती करने की जगह, सभी जीवाश्म ईंधनों पर चरणबद्ध तरीके से कटौती की जाए। भारत के इस प्रस्ताव के दो कारण हैं –

1) प्राकृतिक गैस और तेल भी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के लिए उतने ही दोषी हैं।

2) भारत को कोयले पर अत्यधिक निर्भरता के लिए अक्सर लक्ष्य किया जाता है। यह अन्यायपूर्ण है।

भारत के प्रस्ताव कितने खरे –

  • दुनिया के अमीर देशों को चाहिए था कि वे जीवाश्म ईंधन पर विकासशील देशों की निर्भरता को कम करने में मदद करें। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
  • अमेरिका में प्रति व्यक्ति तेल की खपत बहुत ज्यादा है। इसलिए उस जैसे देशों को अपना दोष भारत जैसे विकासशील देशों पर नहीं डालना चाहिए।
  • भारत स्वयं ही नवीकरणीय ऊर्जा में भारी निवेश कर रहा है। लेकिन भू-राजनैतिक बाधाओं, गर्मी के लंबे समय तक चलने और लगातार कम होती गरीबी से बढ़ती मांग का अर्थ, हमारी ऊर्जा सुरक्षा की कोयले पर निर्भरता का बढना है।
  • भारत का 85% कोयला उत्पादन मध्य एवं पूर्वी राज्यों में होता है। ये राज्य अपेक्षाकृत गरीब हैं, और यहाँ की जनसंख्या की आजीविका का एक बड़ा साधन कोयला है। जबकि नवीकरणीय ऊर्जा का वर्तमान संक्रेद्रण मुख्यतः दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में है, और ये अपेक्षाकृत समृद्ध राज्य हैं। कोयले पर निर्भरता को कम करने के लिए भारत को अपनी जनसंख्या के इस एक बड़े हिस्से के लिए रोजगार के विकल्प तलाशने होंगे।
  • दूसरी ओर, कोयला खदानों में आए दिन होने वाली मौतों और भारतीय नगरों में होने वाले प्रदूषण के स्तर को देखते हुए भारत स्वयं ही इसमें अपने तरीके से कटौती करना चाहता है, लेकिन पश्चिमी देशों के दबाव में नही।

इस वर्ष वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के रिकार्ड स्तर पर पहुंचने की आशंका है। इन स्थितियों में भले ही कोयले पर हमारी निर्भरता खत्म न हो, लेकिन 2040 तक इसे क्रमशः कम से कमतर स्थिति पर लाया जा सकता है। इससे बाहर निकलने में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल पर भारत की नजर होनी चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 14 नवंबर, 2022

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