कार्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व की कम प्रतिष्ठा

Afeias
20 Sep 2025
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इस कानून को लाने का कारण –

  • वेदांता कंपनी ओडिशा के आदिवासी क्षेत्र में बाक्साइट खनन को लेकर विवादों में थी।
  • पर्यावरण के लिहाज से संवेदशील क्षेत्रों को कोयला खनन की इजाजत दी जाए या न दी जाए, यह विवाद था।
  • विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए किसानों की जमीन हड़पने व उनको सही मुआवजा न देने के मामले भी सामने आए।
  • उसी समय हुए सत्यम घोटाले ने स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका पर सवाल खड़ा किया, जिससे सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर एक दाग लग गया।
  • प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कंपनी के सी.ई.ओ. से कम वेतन लेने की बात कही।

क्या है सीएसआर कानून –

  • इसके तहत पात्र कंपनियों को पिछले तीन वित्तीय वर्ष के दौरान हुए औसत शुद्ध लाभ का 2% सीएसआर गतिविधियों; जैसे स्वास्थ्य व शिक्षा जैसे क्षेत्रों में खर्च करना होता है।
  • कंपनी अधिनियम की धारा 135 के तहत एक निश्चित नेटवर्थ, टर्नओवर व लाभ वाली कंपनियों के लिए सीएसआर पर व्यय अनिवार्य होता है। ऐसा न करने पर कारण बताना होता है।

सी.एस.आर. के लाभ –

  • 2024 में सीएसआर में सूचीबद्ध कंपनियों का व्यय 16% बढ़ चुका है।
  • 98% कंपनियों ने अपनी सीएसआर जिम्मेदारियों को पूरा किया और लगभग 50% ने तय सीमा से अधिक खर्च किया।
  • विदेशी फंडिंग में कमी आने के कारण सीएसआर एनजीओ में फंडिंग का एक स्रोत बन गया है।
  • इससे कार्पोरेट क्षेत्र के अधिकारी अपने दफ्तर के बाहर का भी भारत देख पाते हैं।

सी.एस.आर. से जुड़ी चिंताएँ –

  • हमें इस क्षेत्र में भी क्षेत्रीय असमानता देखने को मिलती है। महाराष्ट्र, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्य; जहाँ सबसे ज्यादा कंपनियां है, वहाँ सीएसआर का ज्यादा लाभ मिलता है। वहीं झारखंड, मध्यप्रदेश, बिहार जैसे आकांक्षी जिलों से सीएसआर पूँजी का सिर्फ 20% ही मिल पाता है।
  • यह धन शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे बड़े क्षेत्रों में जाता है, झुग्गी-झोपड़ियों के विकास, अजीविका और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में नहीं। ज्यादातर कंपनियाँ वहाँ पैसा लगाना पसंद करती हैं, जहाँ उनका ज्यादा से ज्यादा प्रचार हो।
  • सीएसआर पर खर्च की अनिवार्यता हमें लाइसेंस राज की याद दिलाती है। क्यों, कहाँ और कितना खर्च करना है यह उन्हें सरकार बताती है। हो सकता है क्षेत्रीय असमानता देखकर सरकार भविष्य में क्षेत्र के हिसाब से लक्ष्य तय कर दे। इससे और अधिक परेशानियाँ होंगी।

आगे की राह –

  • अमेरिका व यूरोप के देशों में ऐसी नीतियाँ हैं, जो सीएसआर के लिए सिर्फ प्रोत्साहित करती हैं, बाध्य नहीं करती हैं।
  • पश्चिमी देशों में उत्तराधिकार-कर का प्रावधान है। इसीलिए बिल गेट्स और जार्ज सोरोस जैसे अरबपतियों ने धर्मार्थ संस्थाएँ खोली हैं। इससे पश्चिमी देशों में इनका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है।

भारत में यह कानून था, पर राजस्व कम होने के कारण 1985 में इसे समाप्त कर दिया गया।

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