16-08-2025 (Important News Clippings)

Afeias
16 Aug 2025
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Date: 16-08-25

Dharali To Kishtwar To…

Two tragedies within days caused by two extreme weather events. But will govts change anything?

TOI Editorial

Cloudbursts are no longer freak events – flash floods in Kashmir’s Kishtwar come barely 10 days after a similar extreme weather event in Uttarakhand’s Dharali. Such sudden, intense downpours over a small area have increased in recent years due to climate change – glofs, flash floods and landslides are the terrible new normal. But fact is, the damage and losses suffered on ground are also due to unplanned development in mountainous areas. There is nothing muddy about the impact of climate change, the hydrological system out of whack or mountainsides destabilised with construction activities. One feeds into the other. Dharali yesterday, Kishtwar today, another one awaits. It rains in violent bursts, glaciers are melting faster while aquifers are draining without recharge.

The impact is global. Maximum June temperature in Portugal breached 46°C. Almost 2,000 have died in Europe’s heatwaves this year. Wildfires across US through Jan – beyond the fire-season of dry Aug-Sep –burned over 1,000 acres of land, displaced thousands. Meanwhile, it is business as usual of reckless construction, carbon trading, gassing on emissions and drawing sustainability-flavoured pies in the sky in corporate boardrooms with almost the same fervour that marks the inaction on climate, across govts. It is essential to stop activities that result in making the impact of freak weather more severe. The search &rescue in Dharali and Kishtwar is another sobering reminder – if we are not to lurch from one Himalayan crisis to another.


Date: 16-08-25

Ceremonial heads

Governors as chancellors do more harm than good in universities

Editorial

The Supreme Court of India’s strong censure of Tamil Nadu Governor R.N. Ravi in April seems to have done little to slow down the collision course that many Governors have been on with the respective State governments. Not only did the Court rule against the Governor casting a de-facto veto on 10 Bills relating to universities passed by the State legislature but it also specified timelines for the Governor’s response to Bills. Importantly, it declared infructuous any Presidential intervention based on the Governor’s recommendation. Last week, Mr. Ravi had referred the Kalaignar University Bill to the President instead of giving it his assent. In Kerala, Governor Rajendra Vishwanath Arlekar has kicked off yet another controversy after directing State-run universities to observe a ‘Partition horrors day’ on August 14, 2025, drawing criticism about possible ideological and communal motives. His predecessor, Arif Mohammed Khan, had also locked horns with the government, sitting on and practically vetoing Bills especially relating to universities. The Court’s line has been de-facto challenged by the President, but through a reference.

State-owned universities have become the key battlegrounds in the Governor-State government conflicts. They are among the few institutions over which the Governor has a direct say. As scholars point out, the office of the Governor was a colonial mechanism of control over provinces that may be ruled by Indian parties. That the universities had British Governors as their ceremonial heads, or rather Chancellors, was to bring colonial prestige and ensure their autonomy and importance. India’s early national-level leaders retained the Governor as a central appointee to guard against separatist tendencies. It appears that legislation in many States retained the role of Governors as Chancellors of State-run universities to give them the same colonial veneer and aura. Even a Tamil Nadu Bill that had sought to minimise the Governor’s role in Vice-Chancellor appointments did not seek to remove the Governor as Chancellor of the university. In Kerala and Tamil Nadu, the Governors are central proxies with a hostile political and ideological agenda. Meanwhile, draft UGC regulations seek to divest State governments of their role in the selection of the Vice-Chancellor, vesting all powers in the Chancellor. But the thrust of the National Education Policy 2020 has been towards greater autonomy for educational institutions. Universities are expected to raise funds and be accountable for spending. A university head’s role is expected to be not just academic and administrative but also that of a business manager, cheerleader and fundraiser. It may make sense to have professionals become the ceremonial as well as executive heads of universities, replacing Governors.


Date: 16-08-25

रेयर – अर्थ तत्वों को लेकर चीन की बराबरी मुश्किल है

एंजेला झांग, ( हांगकांग यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर )

अमेरिका-चीन व्यापार वातों में चीन द्वारा रेयर – अर्थ का हथियार के तौर पर इस्तेमाल एक प्रमुख मसला बन गया है। ये महत्वपूर्ण तत्व, खासतौर पर उच्च गुणवत्ता वाले चुम्बक, इलेक्ट्रिक वाहनों, विंड टरबाइन, औद्योगिक रोबोटिक्स और अत्याधुनिक रक्षा प्रणालियों के लिए बेहद जरूरी हैं रेयर – अर्थ नियत पर चीन के इस कठोर नियंत्रण के परिणास्वरूप अमेरिका ने टैरिफ में काफी कमी कर दी। एआई चिप पर निर्यात प्रतिबंधों में रिवायत दी और यहां तक कि चीनी छात्रों के लिए वीजा प्रतिबंधों में भी राहत दे दी।

इसी के साथ अमेरिका वैकल्पिक आपूर्ति व्यवस्था भी बनाने में जुटा है। जुलाई में ही रक्षा विभाग ने अमेरिका के फ्लैगशिप रेयर – अर्थ प्रोजेक्ट की कर्ता- धतां कंपनी एमपी मैटेरियल को बढ़ावा देने के लिए अरबों डॉलर के ऐतिहासिक निवेश पैकेज की घोषणा की। लेकिन क्या होगा यदि भारी सब्सिडी और वर्षों की मेहनत के बाद भी अमेरिका चीनी रेयर – अर्थ पर निर्भरता खत्म ना कर सके ?

इसमें जापान की कहानी एक सबक देती है। 2010 में सेंकाकू द्वीप को लेकर एक समुद्री टकराव के बाद चीन ने जापान को रेयर – अर्थ का निर्यात रोक दिया था। इसके जवाब में जापान सरकार ने कई सारे रणनीतिक कदम उठाए। इसमें ऑस्ट्रेलियाई उत्पादक लिनास रेयर-अर्थं’ में निवेश, री-साइकलिंग में घरेलू शोध में बढ़ोतरी, चीनी चुंबक निर्माताओं के साथ व्यावसायिक साझेदारी बनाना और भविष्य में आपूर्ति की किल्लत से बचने के लिए रणनीतिक भंडार बनाना शामिल था। लेकिन एक दशक बीतने के बावजूद जापान आज भी अपने आयात का 70% रेयर – अर्थ चीन से ले रहा है। रेयर – अर्थ में चीन का दबदबा रातोरात नहीं बना चीन की ताकत कच्चे माल के संचय नहीं, उनके शोधन, प्रसंस्करण और बड़े पैमाने पर उत्पादन की औद्योगिक क्षमता में निहित है। वैश्विक रेयर – अर्थ प्रसंस्करण क्षमता के 85% से 90% हिस्से पर चीन का नियंत्रण है। वह दुनिया के उच्च गुणवत्ता वाले रेयर – अर्थ चुंबकों का लगभग 90% हिस्सा उत्पादित करता है। वही एकमात्र देश है, जिसके पास रेयर – अर्थ के खनन से लेकर रासायनिक पृथक्करण और चुंबक निर्माण तक की पूर्ण एकीकृत सप्लाई चेन है। विनिर्माण में चीन की श्रेष्ठता ने ना केवल उसे औद्योगिक बढ़त दी, बल्कि तकनीकी तौर पर उसे अभेद सुरक्षा भी प्रदान की है। 1950 से 2018 के है

बीच, चीन ने रेयर – अर्थ सबंधी 25 हजार से अधिक पेटेंट दायर किए, जो अमेरिका में दायर पेटेंट से दोगुने हैं रेयर – अर्थ प्रसंस्करण की जटिल केमिस्ट्री और धातु विज्ञान में दशकों के व्यावहारिक अनुभव ने चीन को ऐसी विशेषज्ञता दी है, जिसके बराबर पश्चिमी कंपनियां आसानी से नहीं पहुंच पाएंगी। अपनी बढ़त को और मजबूत करने के लिए चीनी सरकार ने दिसंबर 2023 में रेयर – अर्थ उत्खनन, पृथक्करण और चुंबक उत्पादन तकनीकों पर व्यापक निर्यात प्रतिबंध भी लगा दिए।

चीन के लचर पर्यावरणीय नियमों ने भी उसे पश्चिमी प्रतिस्पर्धियों पर बढ़त दिलाई है। 2002 में कैलिफोर्निया के माउंटेन पास रेयर – अर्थ माइन को एक विषाक्त कचरे के रिसाव के बाद शोधन कार्य रोकने पड़े थे। इसके विपरीत, चीन के उदार नियामकों ने कम देरी और बहुत कम लागत के साथ रेयर – अर्थ उत्पादन को तेजी से बढ़ने का मौका दिया है। अधिक महत्वपूर्ण यह है कि रेयर अर्थ संबंधी समस्याएं फिक्स नहीं हैं। वे प्रौद्योगिकी के साथ पनपती रहती हैं। चीन इसे समझ गया और उसने धैयपूर्वक प्रतीक्षा की। वैश्विक हरित बदलावों के साथ रेयर – अर्थ पर पश्चिम की निर्भरता बढ़ी तो इसने ईवी और विंड टरबाइनों की भारी मांग पैदा कर दी।

इसलिए अमेरिका को इस कड़वी सच्चाई का सामना करना पड़ेगा कि रेयर – अर्थ के मामले में चीन का प्रभुत्व अभी बना रहेगा। सप्लाई चेन के विविधीकरण जैसी रक्षात्मक रणनीतियां कुछेक जोखिमों का हल हो सकती हैं। लेकिन सही मायनों में अनुकूलन तो एक आक्रामक रणनीति से ही संभव है। हालांकि अभी भी अमेरिका के हाथ में कई तुरुप के पत्ते हैं। जब तक उसकी एडवांस चिप, अग्रणी एआई मॉडल्स और डॉलर आधारित वित्तीय तंत्र जैसी तकनीक और बुनियादी ढांचे पर पकड़ बरकरार है, चीन को रेयर – अर्थ की आपूर्ति करनी होगी। कई वर्षों तक अमेरिका चीन को प्रमुख तकनीकों की आपूर्ति रोक कर उल्टी चाल चलता रहा है। ट्रम्प द्वारा चीन को एनवीडिया के एच- 20 चिप्स की बिक्री पर लगे प्रतिबंधों में राहत देना बताता है कि सोच अब प्रतिबंधों से हटकर संतुलित जुड़ाव की ओर बढ़ रही है। यह जोखिम कम करने का स्मार्ट तरीका हो सकता है।


Date: 16-08-25

आत्मनिर्भरता का उद्घोष

संपादकीय

स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से प्रधानमंत्री के संबोधन की प्रतीक्षा रहती ही है। इस बार अधिक थी, क्योंकि देश घरेलू और बाहरी मोर्च पर कई चुनौतियों का सामना करने के साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की खुली धमकियों का भी सामना कर रहा है। यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी ने इन चुनौतियों से पार पाने का संकल्प व्यक्त करते हुए उनसे निपटने के उपाय भी बताए और इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएं भी कीं।

इन घोषणाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत संकटकाल में अपनी शक्ति को पहचान रहा है और हर तरह की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है। इसका संकेत आतंक के आका और भारत के शत्रु पाकिस्तान से स्थगित सिंधु जल समझौते के संदर्भ में खून और पानी साथ नहीं बहने, दीवाली पर जीएसटी का नया स्वरूप लाने, पीएम विकसित भारत रोजगार योजना शुरू करने, अपना फाइटर जेट बनाने, सेमीकंडक्टर निर्माण में अग्रणी बनने समेत अन्य अनेक घोषणाओं से मिलता है। एक अत्यंत महत्वपूर्ण घोषणा सीमावर्ती क्षेत्रों में डेमोग्राफी बदलने के खिलाफ कदम उठाने की भी है। पीएम के संबोधन में आपरेशन सिंदूर की विशेष चर्चा आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य ही थी।

लाल किले से प्रधानमंत्री के लंबे संबोधन का सार यही है कि भारत आत्मनिर्भर बनने के लिए कमर कस चुका है। यदि प्रधानमंत्री की घोषणाओं को जमीन पर उतारने के लिए किसी को सबसे अधिक सक्रियता दिखानी होगी तो वह है नौकरशाही। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सत्तारूढ़ नेता तमाम घोषणाएं करते हैं, लेकिन नौकरशाही उनके अनुरूप पूरी इच्छाशक्ति और ईमानदारी नहीं दिखाती। यह किसी से छिपा नहीं कि जहां कई घोषणाओं पर एक हद तक अमल हुआ है और उनका लाभ भी मिला है, वहीं कई योजनाएं आधी-अधूरी ही हैं।

प्रधानमंत्री ने लाल किले से जो कुछ कहा और जो योजनाएं शुरू करने की घोषणा की, यदि उन पर 60-70 प्रतिशत भी क्रियान्वयन हो सके तो देश के आत्मनिर्भर एवं विकसित राष्ट्र बनने का रास्ता आसान हो जाएगा और ट्रंप सरीखे मतलबी नेताओं को सही तरह जवाब भी दिया जा सकेगा। ट्रंप भारत को अपना मित्र देश बताते हैं, लेकिन वे उसे धमकाने में भी लगे हैं। चूंकि वे अपनी हद पार कर गए हैं, इसलिए उनकी धमकियों के आगे झुकने का प्रश्न ही नहीं। यह संदेश मोदी सरकार के साथ-साथ देश को भी देना चाहिए। यह दुर्भाग्य है कि कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल इससे बच रहे हैं। यह तो राजनीतिक क्षुद्रता ही है कि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर लाल किले पर आयोजित समारोह का बहिष्कार किया। ऐसा तो लोग मोहल्ला समितियों के समारोह में भी नहीं करते।

स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से प्रधानमंत्री के संबोधन की प्रतीक्षा रहती ही है। इस बार अधिक थी, क्योंकि देश घरेलू और बाहरी मोर्च पर कई चुनौतियों का सामना करने के साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की खुली धमकियों का भी सामना कर रहा है। यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी ने इन चुनौतियों से पार पाने का संकल्प व्यक्त करते हुए उनसे निपटने के उपाय भी बताए और इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएं भी कीं।

इन घोषणाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत संकटकाल में अपनी शक्ति को पहचान रहा है और हर तरह की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है। इसका संकेत आतंक के आका और भारत के शत्रु पाकिस्तान से स्थगित सिंधु जल समझौते के संदर्भ में खून और पानी साथ नहीं बहने, दीवाली पर जीएसटी का नया स्वरूप लाने, पीएम विकसित भारत रोजगार योजना शुरू करने, अपना फाइटर जेट बनाने, सेमीकंडक्टर निर्माण में अग्रणी बनने समेत अन्य अनेक घोषणाओं से मिलता है। एक अत्यंत महत्वपूर्ण घोषणा सीमावर्ती क्षेत्रों में डेमोग्राफी बदलने के खिलाफ कदम उठाने की भी है। पीएम के संबोधन में आपरेशन सिंदूर की विशेष चर्चा आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य ही थी।


Date: 16-08-25

उपलब्धियां कई मगर चुनौतियां भी

संपादकीय

देश आज 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस अवसर पर खुशियां मनाने के लिए उपलब्धियों की कमी नहीं है। भारत ने जो मुकाम हासिल किया है वह कोई छोटी बात नहीं है क्योंकि मतभेदों और विविधताओं के बावजूद भारत दशकों से एकजुट रहा है और उत्तरोत्तर मजबूत हुआ है। उदाहरण के लिए इस साल मई में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भारत में राष्ट्रीय एकता की भावना उफान पर थी। भारत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर आतंकी हमलों के जवाब में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया।

पहलगाम आतंकी हमले के बाद पूरा राष्ट्र न केवल एक साथ शोक में डूब गया बल्कि जब जवाब देने की बारी आई तो सरकार और सशस्त्र सेना के साथ मजबूती से खड़ा रहा। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में पाकिस्तान में आतंकवादी ढांचे नष्ट कर दिए गए और फिर पाकिस्तानी सेना के उकसावे का मुंहतोड़ जवाब दिया गया। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के बुनियादी ढांचे को गंभीर नुकसान पहुंचाया। इसके साथ ही भारत ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद से निपटने के मामले में एक नई रेखा खींच दी।

आर्थिक लिहाज से भी भारत वर्तमान में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। पिछले कुछ दशकों के दौरान देश की अर्थव्यवस्था ने तेज गति से प्रगति की है जिससे देश में गरीबी काफी कम हुई है। एक राष्ट्र के रूप में भारत के पास जश्न मनाने के लिए कई उपलब्धियां मौजूद हैं मगर यह अपनी कमियों पर ध्यान देने एवं भविष्य की चुनौतियों से निपटने की रणनीति तैयार करने का भी अवसर है। सरकार ने भारत को स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक स्वागत योग्य लक्ष्य है मगर इस पर भी चर्चा आवश्यक है कि क्या भारत की राजनीति और अर्थव्यवस्था यह सपना साकार करने के लिए सही दिशा में बढ़ रही है। हम सभी इस बात से सहमत हैं कि भारत को त्वरित गति से आगे बढ़ने की जरूरत है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां पिछले कुछ दशकों की तुलना में कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण हो गई हैं।

अमेरिका ने भारत पर 50 फीसदी से अधिक शुल्क लगा दिए हैं जिनमें रूस से तेल खरीदने पर लगाया गया अतिरिक्त 25 फीसदी शुल्क भी शामिल है। यह स्थिति इसलिए गंभीर है क्योंकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। हालांकि, यह उम्मीद जरूर की जा रही है कि आने वाले सप्ताहों में स्थिति सुधरेगी किंतु इतने ऊंचे शुल्क के कारण निर्यात, देश में विकास और रोजगार सृजन पर गंभीर असर होगा। अमेरिका के साथ भारत के संबंध लगातार प्रगाढ़ हो रहे थे किंतु अचानक हालात बदल गए।

इसे देखते हुए यह समझना होगा कि आखिर क्या दिक्कतें आईं और भारत अपना वजूद दोबारा कैसे हासिल कर सकता है। यह समय इस विषय पर भी चर्चा करने के लिए माकूल है कि भारत को कैसी अर्थव्यवस्था तैयार करनी चाहिए ताकि युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करने के साथ विकास लक्ष्य भी सहजता से हासिल हो जाए।

आने वाले वर्षों और दशकों में भारत जो कुछ भी हासिल करेगा वह काफी हद भारत की राजनीति और शासन व्यवस्था की दिशा एवं दशा पर निर्भर करेगा। मजबूत संस्थानों पर आधारित एक मुक्त, नियम-आधारित व्यवस्था भारत के हित में बेहतर रहेगी। हालांकि, भारत की कार्य व्यवस्था में कुछ संस्थानों ने अपेक्षित प्रदर्शन नहीं किया है। उदाहरण के लिए संसद या राज्य विधान सभाओं में महत्त्वपूर्ण विधेयक बिना अधिक चर्चा एवं बहस के पारित हो जाते हैं।

भारतीय निर्वाचन आयोग की कार्य प्रणाली पर विपक्ष प्रश्न खड़ा कर रहा है। इसके पहले ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई थी। निर्वाचन आयोग का गैर-पक्षपातपूर्ण व्यवहार भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की आधारशिला है जिस पर शेष सब कुछ निर्भर करता है। राजनीतिक कार्यकर्ताओं और मतदाताओं दोनों के मन-मस्तिष्क में संदेह और भ्रम की स्थिति नहीं रहनी चाहिए।

आयोग को इसे दूर करने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। एक और संस्थान जिसे मजबूत करने की आवश्यकता वह है न्यायपालिका। न्यायालयों में मामलों पर सुनवाई में देरी से प्रायः शासन-व्यवस्था और आर्थिक विषयों से जुड़े निर्णयों की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इस तरह, भारत को फिलहाल बाहरी आर्थिक चुनौतियों से निपटना है मगर दीर्घ अवधि में इसकी प्रगति एवं विकास यात्रा उसके संस्थानों की ताकत पर निर्भर करेगी।


Date: 16-08-25

समस्या और सुप्रीम कोर्ट

रजनीश कपूर

बीती-ग्यारह अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली – एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या पर स्वतः संज्ञान लेते हुए आदेश जारी किया कि दिल्ली सरकार और स्थानीय निकाय अगले छह-आठ सप्ताह के भीतर सभी आवारा कुत्तों को सड़कों से हटा कर आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करें, उनकी नसबंदी करें और टीकाकरण सुनिश्चित करें। कोर्ट ने स्थिति को ‘बेहद गंभीर’ बताते हुए कहा कि बच्चों और बुजुर्गों को आवारा कुत्तों के हमलों से बचाना अत्यंत आवश्यक है।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में इस साल जनवरी से जून तक 35,198 कुत्तों के काटने के मामले दर्ज किए गए जिनमें 49 रेबीज़ के मामले भी शामिल हैं। रेबीज एक जानलेवा बीमारी है और भारत वैश्विक रेबीज मृत्यु दर का 36% हिस्सा लेता है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद और गुरुग्राम में तत्काल प्रभाव से कुत्तों को पकड़ने, नसबंदी और टीकाकरण करने और उन्हें आश्रय स्थलों में रखने की प्रक्रिया शुरू की जाए। साथ ही कोर्ट ने एक हेल्पलाइन स्थापित करने और आश्रय स्थलों में सीसीटीवी निगरानी सुनिश्चित करने का भी आदेश दिया। पशु प्रेमियों, जो जानवरों के कल्याण के प्रति संवेदनशील होते हैं, को इस निर्णय को सकारात्मक कदम के रूप में देखना चाहिए। यह आदेश केवल कुत्तों को सड़कों से हटाने की बात नहीं करता, बल्कि उनके लिए सुरक्षित और मानवीय वातावरण प्रदान करने पर भी जोर देता है । नसबंदी और टीकाकरण जैसे कदम न केवल कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करेंगे, बल्कि उनके स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाएंगे। कहना न होगा कि आवारा कुत्ते अक्सर भोजन, पानी और चिकित्सा सुविधाओं की कमी से जूझते हैं। इस कारण आक्रामक हो सकते हैं। आश्रय स्थलों में उन्हें नियमित भोजन, चिकित्सा देखभाल और सुरक्षित स्थान मिलेगा जो उनके जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाएगा।

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सरकार को कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। यह न केवल दिल्ली-एनसीआर, बल्कि पूरे देश के लिए एक मॉडल बन सकता है। कोर्ट ने शुरुआत में 5,000 कुत्तों के लिए आश्रय स्थलों के निर्माण का आदेश दिया है। दिल्ली में अनुमानित 10 लाख आवारा कुत्तों को देखते हुए यह संख्या अपर्याप्त हो सकती है। फिर, इन आश्रय स्थलों में पशु चिकित्सकों और प्रशिक्षित कर्मचारियों की नियुक्ति भी आवश्यक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 70% से अधिक कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण रेबीज को नियंत्रित करने में प्रभावी है। गोवा का ‘मिशन रेबीज’ इस दिशा में सफल उदाहरण है, जिसने रेबीज को नियंत्रित करने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। कोर्ट ने एक हेल्पलाइन स्थापित करने का निर्देश भी दिया है, जो कुत्तों के काटने की शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई करे। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि हेल्पलाइन 24/7 सक्रिय रहे। शिकायत मिलने पर चार घंटे के भीतर कार्रवाई हो। रेबीज और कुत्तों के काटने से बचाव के लिए जनता को जागरूक करना आवश्यक है। लोगों को सड़कों पर कुत्तों को भोजन न देने को कहना होगा क्योंकि यह उनकी आबादी को बढ़ाने का कारण बनता है। अभी पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 के तहत नसबंदी के बाद कुत्तों को उसी स्थान पर छोड़ना अनिवार्य है। यह नियम कई बार प्रभावी नहीं होता क्योंकि यह आक्रामक कुत्तों को नियंत्रित करने में बाधा बनता है।

सरकार को नियमों में संशोधन करना चाहिए ताकि खतरनाक कुत्तों को आश्रय स्थलों में रखा जा सके। यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी होगी कि इस प्रक्रिया मैं कुत्तों के साथ क्रूरता न हो । आश्रय स्थलों में कुत्तों को पर्याप्त भोजन, पानी और चिकित्सा सुविधाएं मिलनी चाहिए। पशु कल्याण संगठनों को इस प्रक्रिया में शामिल करना जरूरी है ताकि सुनिश्चित हो सके कि कुत्तों के साथ मानवीय व्यवहार किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या को हल करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है। उल्लेखनीय है कि दुनिया भर में नीदरलैंड ही ऐसा देश है जहां आपको आवारा कुत्ते नहीं मिलेंगे। नीदरलैंड सरकार ने एक अनूठा नियम लागू किया। किसी भी पालतू पशु की दुकान से खरीदे गए महंगी नस्ल के कुत्तों पर वहां सरकार भारी मात्रा में टैक्स लगती है। वहीं यदि कोई नागरिक बेघर पशुओं को गोद लेकर अपनाता है, तो उसे आयकर में छूट मिलती है । इस नियम के लागू होते ही लोगों ने अधिक से अधिक बेघर कुत्तों को अपनाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे नीदरलैंड में आवारा कुत्तों की संख्या घटते-घटते शून्य हो गई। दुनिया भर के पशु प्रेमी संगठनों ने इस कार्यक्रम को सबसे सुरक्षित और असरदार माना है। इस कार्यक्रम से न सिर्फ आवारा कुत्तों की जनसंख्या पर रोक लगती है, बल्कि आम नागरिकों को भी इस समस्या से निजात मिलती है। हमारे देश में ऐसा कब होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।


Date: 16-08-25

सेहतमंद भारत की मंजिल पर पहुंचने के पांच रास्ते

चंद्रकांत लहारिया, ( वरिष्ठ चिकित्सक और नीति विशेषज्ञ )

आजादी के बाद से भारत ने स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। सन् 1947 में हमारी राष्ट्रीय जीवन प्रत्याशा 32 वर्ष थी, जो बढ़कर आज 70 वर्ष के आस-पास हो चुकी है। शिशु मृत्यु दर समेत सभी आयु- वर्गों में मृत्यु दर में कमी आई है। लोग लंबा और स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। फिर भी, हम नई-पुरानी उपलब्धियों पर गर्वित होकर बैठ नहीं सकते। वैसे भी, पुरानी चुनौतियां खत्म हो जाती हैं, तो नई सामने आती हैं और हमें उनके लिए तैयार रहना पड़ता है।

वर्तमान में हमारे पास युवाओं की संख्या सर्वाधिक है, मगर आने वाले वर्षों में बुजुगों की तादाद काफी बढ़ने वाली है। जाहिर है, तब स्वास्थ्य क्षेत्र की जरूरतें अलग किस्म की होंगी। इसके साथ ही देश में स्वास्थ्य संबंधी कई विषमताएं हैं। ये विषमताएं राज्यों के भीतर हैं, राज्यों केबीच में भी हैं और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों में भी हैं। इनमें से कुछ चुनौतियों से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति- 2017 में उपाय किए गए हैं, पर भविष्य की बेहतर स्वास्थ्य- सेवाओं के लिए पांच क्षेत्रों में ठोस और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है- सबसे पहले, देश में बढ़ते गैर- संचारी रोगों को देखते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को नए सिरे से संगठित करने और इन केंद्रों को बुजुर्गों की सुविधा के अनुकूल बनाने की आवश्यकता है। सन् 1950 के दशक से इस सदी के शुरुआती दौर तक, भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली संक्रामक रोगों और मां-बच्चे की स्वास्थ्य जरूरतों के अनुरूप चल रही थी। अब, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और मोटापा जैसी गैर-संचारी बीमारियां आम हो गई हैं। इसलिए भारत में गैर-संचारी, संक्रामक और मातृ-शिशु संबंधी बीमारियों की तिगुनी जरूरत को पूरा करने के लिए इन केंद्रों को तैयार किया जाना चाहिए। 2017 में ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी फॉर इंडिया’ में पाया गया कि देश में 60 प्रतिशत से अधिक मौतें गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के कारण होती हैं। इसलिए, ग्रामीण, शहरी और आदिवासी क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की कार्यक्षमता को मजबूत किया जाना चाहिए। इसके लिए इलाज को सस्ता बनाना होगा ।

दूसरा क्षेत्र, एआई और मशीन लर्निंग का उपयोग करके अत्याधुनिक संक्रामक रोग निगरानी और उपचार एवं डाटा विश्लेषण प्रणाली तैयार करना है। स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए बढ़े बजट से इसे पूरा किया जाना चाहिए। हाल के वर्षों में कोरोना, डेंगू, चिकनगुनिया और मौसमी सर्दी-जुकाम के नियमित प्रकोपों के अनुभव से महसूस किया गया है कि एक तत्पर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की सख्त जरूरत है। इसके लिए मेडिकल कॉलेजों या जिला अस्पतालों को प्रहरी केंद्र के रूप में जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।

तीसरा क्षेत्र शिशु विकास और स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य पर केंद्रित होना चाहिए, क्योंकि अभी के बच्चेही आगे युवा कार्यबल बनेंगे। चौथी बात, देखभाल के सभी स्तरों पर मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करना चाहिए। भारत में अवसाद, चिंता, मादक द्रव्यों के सेवन और आत्महत्या जैसे मामलों की सर्वाधिक उपेक्षा की जाती है। अवसाद हर पांच में से एक गर्भवती महिला को प्रभावित करता है और हर साल लगभग 50 लाख महिलाएं इसकी शिकार बनती हैं। बुजुर्गों का मानसिक स्वास्थ्य भी अहम मुद्दा है। आखिर में, हमें एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य दृष्टिकोण बनाने की जरूरत है। कुत्तों के काटने, मौसमी, मच्छर जनित और गर्मी से होने वाली बीमारियों में वृद्धि याद दिलाती है कि हमें समग्र रूप से सोचने की जरूरत है। भारत में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, अस्वच्छता और शहरी भीड़ लोगों में श्वास संबंधी, पेट संबंधी और अन्य रोगों के प्रमुख वाहक हैं। शहरों में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा, पुराने डीजल वाहनों को हटाना, औद्योगिक उत्सर्जन मानकों को लागू करना और हरित बफर जोन बनाना जरूरी है।

‘स्वस्थ भारत 2047’ कोई आकांक्षा नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्र के लिए आवश्यक है। उपरोक्त पांच रणनीतिक और परस्पर जुड़े क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके अगले दो दशकों में समन्वित, सुवित्तपोषित और समुदाय आधारित कार्रवाई सुनिश्चित करके, भारत अपने नागरिकों के स्वास्थ्य में बदलाव ला सकता है।


Date: 16-08-25

पांच श्रेष्ठ घोषणाएं

संपादकीय

भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से दिया गया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण ऐतिहासिक और अनुकरणीय है। ऐतहासिक इसलिए कि लगातार 12वीं बार उन्होंने लाल किले से भाषण दिया है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को लाल किले से 17 बार देश को संबोधित करने का मौका मिला है। दूसरी बात, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले के प्राचीर से अब तक का सबसे लंबा, 103 मिनट का भाषण दिया है। यह भारत के इतिहास में किसी भी प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया सबसे लंबा भाषण है। यह भाषण इसलिए अनुकरणीय है, क्योंकि इसमें जो घोषणाएं शामिल हैं, उनकी देश को बड़ी जरूरत है। विशेष रूप से सुदर्शन चक्र अभियान की घोषणा आज के समय में विशेष मायने रखती है। आज सीमाओं पर भारत की चुनौतियां बहुत बढ़ गई हैं। स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर प्रतिकूल पड़ोसियों का यहां नाम लेना उचित नहीं है, पर इस देश का जन-जन जानता है कि देश की सुरक्षा को सतत सुनिश्चित रखना आवश्यक है। सुरक्षा के इस नए अभियान का नाम बहुत सोचकर सुदर्शन चक्र रखा गया है, इस चक्र को अमोघ माना जाता है और यह भी ध्यान देने की बात है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी इस बार स्वतंत्रता दिवस के ठीक अगले दिन पड़ रही है।

भारत अपने राष्ट्रीय सुरक्षा कवच के विस्तार, सुदृढ़ीकरण और आधुनिकीकरण के लिए सुदर्शन चक्र नामक एक मिशन शुरू करेगा। देश की सुरक्षा जरूरतों को आज हर कोई समझ रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के समय हमारी जो बढ़त रही, वह वास्तव में आधुनिक तकनीक का कमाल है। इस कमाल ने हमें मिसाइलों और घातक ड्रोन की बौछारों से बचाया है। भारत जिस प्रकार का देश है, उसे किसी पर प्रहार करने की क्षमता से ज्यादा ध्यान अपनी सुरक्षा के अत्याधुनिक इंतजामों पर देना चाहिए। अगर हमारे सुरक्षा इंतजामों ने किसी भी प्रकार के हमलों से हमें बचा लिया, तो इससे ज्यादा सुखद बात और कुछ न होगी। यह बहुत प्रशंसनीय है कि सुदर्शन चक्र अभियान भारत को आयरन डोम से लैस करेगा। यह हमें सीमाओं और सीमा के अंदर भी सुरक्षा देगा। लाल किले के प्राचीर से दूसरी अहम घोषणा जीएसटी सुधार से ताल्लुक रखती है। यह एक तरह से दिवाली उपहार की तरह है, महंगाई दर भले ही 1.55 हो गई है, पर बहुत लोगों को राहत का एहसास नहीं हुआ है। रोजमर्रा के उत्पादों पर जीएसटी को जब घटाया जाएगा, तब लोगों को राहत का एहसास होगा। कहना न होगा कि जीएसटी में कभी का लोगों को महीनों से इंतजार है।

तीसरी घोषणा उचित ही रोजगार को लेकर है। देश में रोजगार की मांग लगातार बढ़ रही है। ऐसे में, रोजगार योजना की घोषणा स्वागत- योग्य है। यदि यह योजना जमीन पर साकार हुई, तो देश में अगले दो वर्षों में 3.5 करोड़ नौकरियां पैदा हो सकती हैं। प्रधानमंत्री की चौथी घोषणा उच्च-स्तरीय जनसांख्यिकी मिशन शुरू करने की है। सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ और अवैध प्रवास से निजात पाना जरूरी हो गया है। भारत सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है और इसे अपनी भूमि पर किसी भी प्रकार के जनसांख्यिकीय असंतुलन से बचना चाहिए। प्रधानमंत्री की पांचवीं घोषणा भी बहुत कारगर है। साल 2047 तक देश की परमाणु ऊर्जा क्षमता को दस गुना तक बढ़ा देना है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए 10 नए परमाणु रिएक्टरों पर काम चल रहा है। घोषणाएं और भी हैं, पर इन पांच विशेष घोषणाओं को अगर हमने साकार कर दिखाया, तो देश को बहुत मजबूती मिलेगी ।