एशिया – प्रशांत क्षेत्र में भारतीयों के लिए बहुत से अवसर
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‘चीन प्लस-वन’ आपूर्ति श्रृंखला रणनीति और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती आर्थिक भागीदारी का सबसे अधिक लाभ भारत के सफेदपोश नौकरीपेशा के लिए सुअवसर है।
कुछ बिंदु –
- भारतीय छात्र पड़ोसी देशों के विश्वविद्यालयों में बड़ी संख्या में पढ़ने जाते हैं।
- इसके अलावा भारत जलवायु परिवर्तन जैसे उभरते क्षेत्रों में कौशल विकास के लिए शिक्षा नीति में बदलाव कर रहा है। एशिया प्रशांत क्षेत्र में ऐसे विशेषज्ञों की मांग बढ़ने की पूरी संभावना है।
- आर्थिक संभावनाओं में सुधार, अनुकूल आव्रजन नीतियां और भौगोलिक निकटता का बड़ा लाभ भारतीयों को मिल सकता है।
- प्रवासी भारतीय वर्ग एक समय भारत की एक्ट ईस्ट नीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
- चीन के आर्थिक प्रतिपक्ष के रूप में भारत को दक्षिण पूर्व एशिया के काफी देशों का समर्थन मिल सकता है।
- इसके साथ ही भारत दक्षिण एशिया के विनिर्माण को यूरोप तक निर्यात करने के लिए प्रवेश द्वार का काम कर सकता है।
कुल मिलाकर, इस पूरे क्षेत्र में भारतीय कौशल के लिए इतनी संभावनाएं हैं कि यह भारतीय प्रवासियों का नया ठिकाना बन सकता है। इससे इस क्षेत्र की आर्थिक छवि में उछाल आएगा।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 26 नवंबर, 2024
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