14-10-2024 (Important News Clippings)

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14 Oct 2024
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Date: 14-10-24

Hurricane Of Troubles

Some US netas deny climate change. Indian netas don’t, but they sanction environmentally risky projects

TOI Editorials

Ahead of US presidential elections, a pair of hurricanes that has battered Americans in recent days is causing heated debates. Trump has slammed the Biden-Harris administration’s rescue and relief operations. But what is making things more complex is the deluge of fake information that hurricanes Helene and Milton have brought in their wake.

Politics over hurricanes | Republican Trump supporters have been quick to spread conspiracy theories. They have accused the Biden-Harris administration of ‘manipulating’ the weather and ‘sending’ the hurricanes to Republican areas. Fake, AI-generated images of devastation have been used to create an impression of administrative apathy. Trump himself has repeated false claims about hurricane relief funds being spent on illegal migrants.

Divided America | At the heart of the issue is the refusal of Trumpsters and other conservative Republicans to acknowledge the role of climate change in manifesting extreme weather. Scientific studies say climate change has made hurricanes more powerful and rainier. But the huge oil lobby in US would have one believe that it’s all normal and any devastation wrought is due to official incompetence.

Indian experience | Unlike rich US, India’s disaster management response during cyclones has been praiseworthy. The impact of cyclone Nisarga, which hit India’s west coast in 2020, was blunted with meticulous planning that saw 100,000 people being evacuated. During cyclone Fani in Bay of Bengal in 2019, a record 1.2mn people were evacuated in less than 48 hours. It helps there are no polarising debates about climate change in India. But govts across the board here continue to greenlight damaging actions that contribute to climate change. Be it parcelling off tracts of the Aravallis, the environmentally questionable Char Dham Pariyojana or tourist attractions in Western Ghats and Himalayas. Indian govts might be better at mitigating disasters, but they’re also playing a role in creating them.


Date: 14-10-24

विकास की गतिशक्ति

संपादकीय

देश में विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए तीन वर्ष पहले शुरू की गई पीएम गतिशक्ति योजना पर प्रधानमंत्री ने यह सही कहा कि यह एक परिवर्तनकारी पहल है और इसके जरिये भारत सभी क्षेत्रों में तेजी से विकास कर रहा है। निश्चित रूप से इस महत्वाकांक्षी योजना ने बीते तीन वर्षों में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है।

एक दर्जन से अधिक मंत्रालयों में समन्वय कायम करने वाली इस योजना के चलते केवल बुनियादी ढांचे से जुड़ी योजनाओं को आगे बढ़ाने में ही सफलता नहीं मिली है, बल्कि लॉजिस्टिक पर आने वाले खर्च को कम करने और एक स्थान से दूसरे स्थान पर सामग्री भेजने में लगने वाले समय को कम करने में भी कामयाबी हासिल हुई है।

देश की जरूरतों के अनुरूप बुनियादी ढांचे का निर्माण विकसित भारत के सपने को साकार करने की एक अनिवार्य शर्त है। इस योजना की सफलता का मूल्यांकन इससे किया जा सकता है कि श्रीलंका और बांग्लादेश ने भी अपने यहां बुनियादी ढांचे के विकास के लिए पीएम गतिशक्ति के इस्तेमाल के लिए समझौता किया है।

यह अच्छा हुआ कि पीएम गतिशक्ति योजना के तीन साल पूरे होने के बाद अब इस योजना के अगले चरण में बुनियादी ढांचे संबंधी जिला स्तरीय योजनाओं को भी शामिल किया जाएगा। ऐसा किया जाना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि अभी जिला स्तर पर विभिन्न विभागों में समन्वय की कमी दिखती है। इससे कई बार योजनाएं देरी से शुरू हो पाती हैं।

इसी तरह प्रायः उनमें तालमेल के अभाव के चलते समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इसके चलते बुनियादी ढांचे संबंधी योजनाओं की लागत में भी वृद्धि होती है और उनमें समय भी अधिक लगता है। अब जब सभी राज्यों में बुनियादी ढांचे संबंधी जिला स्तरीय परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए सभी राज्यों के एक-एक जिले में पायलट प्रोजेक्ट तैयार किया जा रहा है तब फिर इस आवश्यकता की भी पूर्ति होनी चाहिए कि ऐसी परियोजनाओं में न तो दलगत राजनीति आड़े आए और न ही विभागीय असहमतियां।

उचित यह होगा कि ऐसी कोई व्यवस्था बने जिससे बुनियादी ढांचे संबंधी प्रत्येक योजना का मूल्यांकन और उनकी समीक्षा उसी तरह से हो जैसे पीएम गतिशक्ति योजना के तहत होता है। इसमें संदेह नहीं कि पीएम गतिशक्ति योजना विभिन्न मंत्रालयों में समन्वय कायम करने और योजनाओं को सही तरह से आगे बढ़ाने में सहायक साबित हुई है, लेकिन इस योजना के तहत यह भी देखा जाना चाहिए कि बुनियादी ढांचे संबंधी जो भी निर्माण हो रहे हैं, वे भविष्य की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हैं या नहीं।

यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि सड़कों से जुड़ी परियोजनाओं में यह देखने में आता है कि जो निर्माण कार्य किया गया होता है, उसमें कुछ ही समय बाद विस्तार करने या समानांतर कोई योजना तैयार करने की आवश्यकता महसूस होने लगती है। पीएम गतिशक्ति योजना के तहत यह भी देखने की आवश्यकता है कि जो भी निर्माण कार्य किए जा रहे हैं, उनकी गुणवत्ता विश्वस्तरीय हो।


Date: 14-10-24

आकार लेती स्वास्थ्य क्रांति

विवेक देवराय,आदित्य सिन्हा, ( देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख और सिन्हा परिषद में ओएसडी-अनुसंधान हैं )

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी नेशनल हेल्थ अकाउंट्स यानी एनएचए के हालिया आंकड़े भारत के स्वास्थ्य तंत्र को लेकर कई सकारात्मक रुझान दर्शाते हैं। इसमें एक उल्लेखनीय पहलू यही है कि सेहत पर लोगों का खर्च घटा है। वर्ष 2013-14 में लोगों को स्वास्थ्य संबंधी मामलों पर अपनी जेब से जो 64.2 प्रतिशत खर्च करना पड़ रहा था, वह 2021-22 में घटकर 39.4 प्रतिशत रह गया।

आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना यानी पीएम-जय, फ्री डायलिसिस और ऐसे ही अन्य सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रमों के चलते स्वास्थ्य पर लोगों का खर्च कम हुआ है और इस बचत ने उन्हें आर्थिक सुरक्षा का कवच प्रदान किया है। इन योजनाओं के विस्तार से लोगों के करीब एक लाख करोड़ रुपये बचे हैं। इस सफलता से यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज यानी यूएचसी के लक्ष्य को संबल मिला है, जो पिछले कुछ समय से सरकार की प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक है।

सेहत पर सरकार के खर्च में बढ़ोतरी का सीधा संबंध इस पर लोगों के घटे खर्च से है। वर्ष 2014-15 से 2021-22 के बीच सेहत पर सरकारी खर्च जीडीपी के 1.13 प्रतिशत से बढ़कर 1.84 प्रतिशत हो गया और कुल सरकारी खर्च में स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय भी 3.94 प्रतिशत से बढ़कर 6.12 प्रतिशत हो गया।

स्वास्थ्य सेवाओं में सरकार की बढ़ती भूमिका एक न्यायसंगत स्वास्थ्य प्रणाली की ओर संकेत करती है। इससे जहां लोगों पर आर्थिक बोझ घटा है तो आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच भी सुगम हुई है। देश के निरंतर उन्नत होते इस बुनियादी ढांचे में सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों के सेवा प्रदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका है।

स्वास्थ्य सेवाओं में सरकारी अस्पतालों की 1.49 लाख करोड़ रुपये और निजी अस्पतालों की 2.12 लाख करोड़ रुपये की हिस्सेदारी है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, डिस्पेंसरी और परिवार नियोजन केंद्र भी इस मोर्चे पर 56,477 करोड़ रुपये का अहम योगदान करते हैं। खर्च में वितरण एवं विविधता का यह स्तर स्वास्थ्य सेवाओं में सरकारी खर्च की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है, जिसका प्राथमिक एवं निदानात्मक उपचार, दोनों स्तरों पर विस्तार हुआ है। खासतौर से ग्रामीण और दूर-दराज के वंचित क्षेत्र इससे लाभान्वित हुए हैं।

खर्च की पड़ताल करें तो समझ आता है कि प्राथमिक सेवाओं पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है, जिसमें कुल व्यय का 46 प्रतिशत इन पर हो रहा है। प्राथमिक सेवाओं पर तो सरकारी खर्च 50 प्रतिशत तक है, जो दर्शाता है कि मूलभूत स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी आवश्यकताओं की पूर्ति को प्राथमिकता दी जा रही है।

वहीं द्वितीयक सेवाओं पर 33 प्रतिशत तो तृतीयक सेवाओं पर 16 प्रतिशत खर्च इस बात का संकेत है कि सभी स्तरों पर संतुलन साधा जा रहा है। समग्रतापूर्ण दृष्टिकोण से उन्नत किया जा रहा स्वास्थ्य ढांचा न केवल कोविड महामारी जैसी आकस्मिक चुनौतियों का सामना करने में कहीं अधिक सक्षम बनाएगा, बल्कि गैर-संचारी रोगों के बढ़ते दायरे से निपटने में भी मददगार होगा। लंबे अर्से से स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित इलाकों में भी इन सेवाओं की पहुंच और विस्तार के लाभ सामने आ रहे हैं।

सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं का विस्तार भी स्वास्थ्य पर लोगों के खर्च को घटाने में मददगार साबित हो रहा है। सरकार ने बीमा योजना और ऐसी ही कुछ अन्य पहल की हैं, जिनका लाभ लोगों को मिला है। वर्ष 2014-15 में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर जो खर्च 5.7 प्रतिशत था, वह 2021-22 में बढ़कर 8.7 प्रतिशत हो गया है, जो इसका सूचक है कि स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर वित्तीय जोखिम झेलने वाले लोगों को एक सुरक्षा आवरण प्राप्त हुआ है।

भारत में लंबे समय से यह सिलसिला कायम रहा है कि बीमारियों के चलते परिवार के परिवार गरीबी के दलदल में चले जाते थे। ऐसे में, सामाजिक सुरक्षा योजनाएं उनके लिए एक बड़ा संबल बनकर उभरी हैं। स्वास्थ्य पर सरकार के बढ़ते खर्च और लोगों पर घटते वित्तीय बोझ के देश को सामाजिक-आर्थिक विकास से जुड़े दूरगामी लाभ हासिल होंगे। इससे शिशु-मातृ मृत्यु दर पर अंकुश लगाने के साथ ही जीवन प्रत्याशा बढ़ेगी।

जीवन की गुणवत्ता बढ़ेगी। सेहतमंद होने से लोगों की उत्पादकता में बढ़ोतरी होगी, जिससे आर्थिक वृद्धि को तेजी के नए पंख लगेंगे। इन सकारात्मक रुझानों के बीच अभी भी कुछ ऐसे बिंदु सामने आते हैं, जिन पर समय रहते ध्यान देने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य पर बढ़े खर्च के साथ ही इससे हासिल हो रहे फायदों की निरंतरता का भी ध्यान रखना होगा।

इसका अर्थ है कि स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के साथ ही इस पर नजर बनाए रखी जाए कि जो सेवाएं उपलब्ध हो रही हैं, उनकी गुणवत्ता कैसी है। इसके साथ ही बीमारी की शुरुआती स्तर पर पहचान के तंत्र को भी प्रभावी बनाना होगा ताकि अगले चरण में बीमारी के बिगड़ने पर जो अधिक खर्च एवं जटिलताएं बढ़ती हैं, उन्हें दूर किया जा सके। इससे लोगों को लाभ मिलने के साथ ही स्वास्थ्य तंत्र पर भी बोझ घटेगा।

कुल मिलाकर, एनएचए के आकलन यही दर्शाते हैं कि स्वास्थ्य के मोर्चे पर देश सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। नि:संदेह यह प्रगति प्रशंसनीय है, लेकिन इस क्रम को यथावत बनाए रखने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ ही पर्याप्त नीतिगत हस्तक्षेप भी आवश्यक होंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार के बढ़े खर्च ने एक मजबूत बुनियाद रखी है, लेकिन अगले चरण के स्वास्थ्य सुधारों में गुणवत्ता और दीर्घकालिक निरंतरता पर ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि प्रत्येक नागरिक तक उत्तम कोटि की स्वास्थ्य सुविधाएं किफायती दरों पर पहुंच पाएं।


Date: 14-10-24

उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर बुजुर्ग

डॉ. विशेष गुप्ता, ( लेखक उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष हैं )

देश के सत्तर साल से अधिक उम्र के सभी बुजुर्गों को बीते दिनों सरकार ने आयुष्मान भारत योजना में शामिल करने का निर्णय लिया। इसके तहत करीब छह करोड़ वरिष्ठजनों को पांच लाख रुपये का बीमा कवरेज मिलेगा। बुजुर्गों के लिए केंद्र सरकार की यह योजना अनायास नहीं है। हाल में प्रकाशित चार रिपोर्टों में देश में बुजुर्गों की तेजी से बढ़ती आबादी का आकलन किया गया है। इन सभी ने केंद्र सरकार का भी ध्यान खींचा है।

इनमें पहली रिपोर्ट कुछ भारतीय और अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन पर आधारित है। उनका यह अध्ययन प्लस वन नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इससे पता चलता है कि आज देश का हर चौथा बुजुर्ग स्मृति लोप, भाषा का ठीक से प्रयोग न करने, सोचने-समझने एवं निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाने तथा अपने दैनिक कामों में समस्या का अनुभव करने जैसी दिक्कतों से जूझ रहा है।

दूसरी रिपोर्ट एसबीआइ की है जिसमें कहा गया है कि भारत की कामकाजी आबादी की औसत आयु 2021 में 24 वर्ष के मुकाबले 2024 में बढ़कर 28-29 वर्ष होने की संभावना है। आज चीन की कामकाजी औसत आयु 39.5 साल है। वहीं यूरोप में यह 42 साल, उत्तरी अमेरिका में 38 साल तथा एशिया में 32 साल है। वैश्विक स्तर पर यह औसत आयु 30.4 वर्ष है। वर्ष 2001 में बुजुर्गों की जो आबादी 7.9 करोड़ थी, वह 2024 में बढ़कर 15 करोड़ हो गई है।

बुजुर्गों की यह आबादी देश की कुल जनसंख्या का 10.7 प्रतिशत है। इनमें 7.7 करोड़ पुरुष तथा 7.3 करोड़ महिलाएं हैं। 2001 में जो कामकाजी आबादी 58.6 करोड़ थी, 2024 में इसके 91 करोड़ रहने की संभावना है। इस प्रकार जल्द ही देश की कुल आबादी में 67 प्रतिशत हिस्सेदारी कामकाजी लोगों की होगी।

इस कड़ी में मेन एंड वीमेन नामक तीसरी रिपोर्ट केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय की है। यह बताती है कि 2036 तक देश में बच्चों एवं किशोरों की आबादी में तेजी से गिरावट आएगी। दूसरी ओर बुजुर्गों और मध्यम उम्र के लोगों की संख्या बढ़ेगी। वर्तमान आबादी में 60 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के लोगों का प्रतिशत 9.5 है। वहीं 2036 में बुजुर्गों की आबादी बढ़कर 13.9 प्रतिशत हो जाएगी। चौथी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की भारत प्रमुख एंड्रिया वोजनार के एक साक्षात्कार में दिए गए बयान से जुड़ी है।

उनके अनुसार भारत में अगले 25 वर्षों में देश की आबादी में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या बढ़कर 20.8 प्रतिशत हो जाएगी। अर्थात देश में हर पांचवां व्यक्ति बुजुर्ग होगा। यूएनएफपीए के अनुसार 2024-2050 के बीच देश की कुल आबादी 18 प्रतिशत ही बढ़ेगी, मगर वृद्ध जनसंख्या में 134 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होगी। देश की आबादी में जिस प्रकार बुजुर्गों की आबादी लगातार बढ़ रही है उससे देश में कामकाजी युवाओं और वृद्धजनों के बीच असंतुलन आने के आसार बढ़ रहे हैं।

एक खास बात यह भी है कि विकसित देशों मसलन जापान, फ्रांस, जर्मनी, आस्ट्रेलिया एवं ब्रिटेन जैसे देशों में जनसंख्या के बढ़ने का स्तर अमूमन शून्य हो चुका है। निःसंदेह भविष्य में वहां वृद्धजनों की संख्या बढ़ेगी और कार्यशील जनसंख्या कम होती जाएगी जिससे उत्पादन स्वतः ही घटेगा। हालांकि भारत में ऐसा नहीं है।

उपरोक्त चारों रिपोर्टों का सार यह है कि यहां अगर बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है तो उससे कहीं बढ़े हुए अनुपात में कामकाजी युवक-युवतियों की संख्या भी बढ़ रही है। आज ब्राजील, रूस, भारत और चीन में जन्म दर और जनसंख्या वृद्धि दर लगातार घट रही है। भविष्य में केवल भारत देश ही ऐसा होगा, जहां की कार्यशील और ज्ञानाश्रित युवा जनसंख्या संपूर्ण विश्व में अपना परचम फहराएगी।

आज देश में बुजुर्गों से जुड़े सामाजिक ढांचे तथा युवाओं और वरिष्ठजनों के बीच बढ़ रहे पीढ़ीगत अंतराल और जनसंख्यात्मक असंतुलन को लेकर चिंता अधिक है। यदि देश के युवाओं की ऊर्जा, शक्ति, उत्साह और सामर्थ्य देश के काम आएगा तो उसी अनुपात में देश के वरिष्ठजनों का लंबा अनुभव भी इन युवाओं की सुरक्षा में ढाल का कार्य करेगा।

किसी भी देश को महान वहां के रहने वाले लोग बनाते हैं और यही लोग आगे चलकर उस महान देश के महत्वपूर्ण नागरिक बन जाते हैं, परंतु भारत जैसे सुसंस्कृत देश के बुजुर्ग नागरिक यहां उपेक्षित जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। अमेरिका और यूरोप में किसी भी राजनीतिक दल में इतना साहस नहीं है कि वे वहां के वरिष्ठ नागरिकों की अनदेखी कर सकें। यूरोप और अमेरिका के बजट का एक बड़ा हिस्सा बुजुर्गों के सामाजिक एवं आर्थिक कल्याण पर खर्च होता है।

आवश्यकता है कि जहां सरकारों द्वारा उनकी पेंशन राशि में बढ़ोतरी हो, वहीं रेल एवं हवाई यात्रा में छूट तथा स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार और एक गरिमापूर्ण जीवन जीने की सुलभता के साथ-साथ उनकी सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम हों।

याद रहे कि जो समाज एवं राष्ट्र अपने वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान करता है वह वर्तमान के साथ सुनहरे भविष्य के लिए भी अपनी सामाजिक पूंजी को सहेजकर रखता है। वर्ष 2047 तक हम जिस विकसित भारत की कल्पना कर रहे हैं वह वरिष्ठ नागरिकों के बढ़ते संख्यात्मक बल से जुड़े लंबे अनुभव और युवाओं की कार्यात्मक ऊर्जा एवं शक्ति के मध्य सहक्रिया के सेतु पर संतुलित पदचापों से ही पूरी हो पाएगी।


Date: 14-10-24

सौहार्द है जरूरी

संपादकीय

बांग्लादेश के पुराने ढाका के तांती बाजार इलाके में दुर्गा पूजा के दौरा कथित तौर पर देशी बम फेंका गया जिससे मंडप में आग लग गई और कुछ लोग घायल हो गए। दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान बांग्लादेश भर से पैंतीस अप्रिय घटनाओं की खबरें हैं। सत्रह लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। वहां की सत्रह करोड़ की आबादी में महज 8 फीसद हिन्दू हैं जो 32 हजार से ज्यादा मंडपों में हर वर्ष की तरह धूमधाम से दुर्गा पूजा कर रहे थे। तांती बाजार की घटना तथा जोशेश्वरी काली मंदिर से सोने के मुकुट की चोरी पर भारत के विदेश मंत्रालय ने गंभीर चिंता जताते हुए इन्हें बांग्लादेश में मंदिरों और देवी-देवताओं को अपवित्र करने की योजनाबद्ध साजिश बताया। यह मुकुट 2021 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंदिर को भेंट किया था। भारत सरकार की तरफ से वहां की सरकार से अपील की गई है कि हिन्दुओं और अल्पसंख्यकों तथा उनके पूजा स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करे । भारतीय हाई मीशन ने भी चिंता व्यक्त करते हुए बांग्लादेश की सरकार से चोरी की जांच और मुकुट बरामद करने के साथ ही अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की अपील की है। हालांकि इस दरम्यान वहां के तीनों सेना- थल, नौसेना और वायुसेना प्रमुखों ने ढा काली मंदिर का दौरा किया। बीते महीने इस्लामी समूहों की धमकियों के बाद अंतरिम सरकार ने हिन्दू पर्व के दौरान सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने की बात की थी। स्पष्ट चेतावनी दी गई थी कि पूजा स्थलों को किसी भी तरह का निशाना बनाने वालों के खिलाफ सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी। दुर्गा पूजा बांग्लादेश की संस्कृति के बड़े त्योहारों में शामिल है जो सामाजिक एकता और लचीलेपन का प्रतीक मानी जाती रही है। मगर राजनीतिक उथल-पुथल के कारण अराजक तत्वों ने ऐन पहले ही पूजा संपन्न न होने देने की अफवाह फैलाई गईं। हालांकि अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने ढाकेश्वरी मंदिर का दौरा कर इस सारे विवाद को ठंडा करने जैसा सकारात्मक कदम उठाया है। पूजा भले ही संपन्न हो चुकी है, मगर सरकार का जिम्मा है कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के प्रति मुस्तैद हो और पीढ़ियों से वहां रहने वालों के हक में फौरी कदम भी उठाए। अराजक तथ्वों पर लगाम लगाना और विभिन्न समुदायों के दरम्यान सौहार्द बनाए रखना हर सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है।


Date: 14-10-24

अंतरिक्ष से निगरानी

संपादकीय

भारत जब चारों ओर से प्रतिकूल स्थितियों से घिरता दिख रहा है, तब देश की सुरक्षा या निगरानी के लिए किया जाने वाला कोई भी इंतजाम स्वागत योग्य है। देश की सुरक्षा के मोर्चे पर यह किसी खुशखबरी से कम नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा संबंधी कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने अंतरिक्ष आधारित निगरानी (एसबीएस) मिशन के तीसरे चरण को मंजूरी दे दी है। जल, थल और नभ की पूरी निगरानी के लिए किया जा रहा यह कार्य देश को गर्व की अनुभूति करा रहा है। ध्यान रहे कि इस परियोजना को रक्षा मंत्रालय में एकीकृत मुख्यालय के तहत रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है। ऐसे सुरक्षा कार्यक्रमों को गोपनीय रखना चाहिए, पर यह हर्ष और कौतूहल का भी विषय है, इसलिए इसकी एक सीमा में रहते हुए चर्चा स्वाभाविक है। भारत एक उदार लोकतांत्रिक देश है और देश से जुड़ी बुनियादी सूचनाओं से देशवासियों को लैस करने में कोई बुराई नहीं है। आकाश में उपग्रहों का जाल बिछाकर किस तरह से देश की सुरक्षा और सूचना जरूरतों को पूरा किया जाएगा, इसके बारे में देशवासी जरूर जानना चाहेंगे।

शुरुआती सूचनाओं के अनुसार, भारत सरकार निजी क्षेत्र को साथ लेकर देश के निगरानी तंत्र को मजबूत कर रही है। यह समय के अनुरूप उठाया गया कदम है। कम से कम 52 उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़े जाएंगे, जिन पर 26,968 करोड़ रुपये तक खर्च होंगे। इसरो 21 उपग्रहों का निर्माण करेगा और 31 उपग्रह निजी कंपनियों द्वारा तैयार किए जाएंगे। यह सूचना भी आज बहुत उपयोगी हो गई है कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय साल 2001 में अंतरिक्ष आधारित निगरानी तंत्र की शुरुआत चार उपग्रहों के साथ हुई थी। उसके बाद दूसरे चरण में साल 2013 में मनमोहन सिंह की सरकार के समय छह उपग्रह छोड़ने का फैसला हुआ था, उसके बाद अब जाकर तीसरे चरण का फैसला हुआ है। इसमें एक राय यह भी है कि अंतरिक्ष से निगरानी का काम अपेक्षाकृत कम गति से हो रहा है। देश की निगरानी व संचार जरूरतों को देखते हुए इसमें और तेजी आनी चाहिए। यह समझने की बात है कि प्रतिवर्ष औसतन पांच उपग्रह निगरानी के उद्देश्य से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित होंगे। दस साल में कुल 52 उपग्रह अंतरिक्ष की निचली कक्षा में तैनात हो जाएंगे।

कोई शक नहीं कि भारत को थल, जल और नभ, तीनों ही मोर्चों पर खुद को मजबूत करना चाहिए। आज भारत के साथ दुनिया के ताकतवर देश खड़े हैं, फिर भी भारत को स्वयं अपने स्तर पर पुख्ता इंतजाम रखने चाहिए। भारत चुनौतियों से घिरा हुआ है और दुनिया की सबसे विशाल आबादी है, भारतीय जीवन अनमोल है, अत: हमें सबकी रक्षा के लिए अपने निगरानी तंत्र को मजबूत करना ही होगा। इसमें भी कोई दोराय नहीं कि हमारा निगरानी तंत्र अगर मजबूत होगा, तो हमारे पड़ोसी देशों को भी फायदा होगा। आपात स्थिति या आपदाओं के समय हम दुनिया के अन्य देशों की मदद करने में ज्यादा सक्षम होंगे। निगरानी तंत्र केवल युद्ध या अपनी रक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि तेज, सतत और सुनिश्चित विकास के लिए भी जरूरी है। पूरी सतर्कता के साथ इस अभियान को आगे बढ़ाना चाहिए। निजी उपग्रहों को जरूर जगह मिलनी चाहिए, लेकिन सभी पर रक्षा मंत्रालय या भारत सरकार का नियंत्रण सुनिश्चित होना चाहिए, ताकि भारतीय सुरक्षा में किसी सेंध की कोई गुंजाइश न रहे।


Date: 14-10-24

देश में तकनीकी क्रांति का नया दूत बनेगा परमरूद्र

संपादकीय

भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वदेशी तकनीक से परमरूद्र सहित तीन सुपर कंप्यूटरों को बनाया है। इनसे ब्रह्मांड की उत्पत्ति, ब्लैकहोल, खगोल विज्ञान और मौसम के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेंगी। भारत की तकनीकी प्रगति में यह मील का पत्थर है। इससे नई तकनीकों का विकास होगा और नवाचार को प्रोत्साहन मिलेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में इन सुपर कंप्यूटरों को देश को समर्पित किया है। परमरूद्र के अलावा अन्य दो सुपर कंप्यूटरों के नाम अरका और अरुणिका रखे गए हैं।

विश्व स्तर पर चीन के पास सर्वाधिक सुपर कंप्यूटर हैं। इसके बाद अमेरिका, जापान, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड और ब्रिटेन का स्थान है। इसको देखते हुए भारत सरकार ने मार्च 2015 में ही सात वर्षों की अवधि (वर्ष 2015-2022) के लिए 4,500 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से राष्ट्रीय सुपर कंप्यूटिंग मिशन की घोषणा की थी। इस मिशन के अंतर्गत 70 से अधिक उच्च प्रदर्शन वाले सुपर कंप्यूटरों के माध्यम से एक विशाल सुपर कंप्यूटिंग ग्रिड स्थापित कर देश भर के राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों और संस्थाओं को सशक्त बनाने की परिकल्पना की गई। इस परियोजना का उद्देश्य एक मजबूत भारतीय नेटवर्क स्थापित करना है, जो विश्वसनीय कनेक्टिविटी प्रदान करने में सक्षम होगा।

परमरूद्र सुपर कंप्यूटिंग सिस्टम की प्रोसेसिंग स्पीड एक पेटाफ्लॉप प्रति सेकंड है, यानी ये कंप्यूटर एक सेकंड में 1,000 खरब फ्लोटिंग-प्वॉइंट ऑपरेशन को अंजाम दे सकते हैं। किसी एक मशीन के लिए यह बेहद तेज कंप्यूटिंग स्पीड है। एचपीसी (हाई परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग) सुपर कंप्यूटिंग सिस्टम उन्नत कंप्यूटिंग प्रणाली हैं, जिनको जटिल और डेटा-गहन कार्यों को संभालने के लिए डिजाइन किया गया है। इन प्रणालियों का उपयोग आमतौर पर जलवायु मॉडलिंग, आणविक जीव विज्ञान व जीनोमिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और मशीन लर्निंग, इंजीनियरिंग व सामग्री विज्ञान सिमुलेशन और रक्षा व एयरो स्पेस के क्षेत्र में किया जाता है। परमरूद्र एक उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग सिस्टम है, जिसे जटिल गणनाओं और सिमुलेशन को उल्लेखनीय गति से संभालने के लिए डिजाइन किया गया है। ये सुपर कंप्यूटर भारत के राष्ट्रीय सुपर कंप्यूटिंग मिशन का परिणाम हैं, जो घरेलू स्तर पर उन्नत तकनीक को विकसित करने में हमारी निरंतर बढ़ती क्षमताओं को दर्शाते हैं।

पुणे में स्थापित विशाल मीटर रेडियो टेलीस्कोप (जीएमआरटी) परमरूद्र का उपयोग फास्ट रेडियो बर्स्ट (एफआरबी) और अन्य खगोलीय घटनाओं के अध्ययन के लिए करेगा। जाहिर है, इससे ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ बढे़गी। दिल्ली स्थित अंतर विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र (आईयूएसी) में सुपर कंप्यूटर पदार्थ विज्ञान और परमाणु भौतिकी में अनुसंधान को बढ़ावा देगा। अरका और अरुणिका सूर्य पर आधारित हैं। 850 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किए गए इन सिस्टमों की मिली-जुली प्रोसेसिंग क्षमता 21.3 पेटाफ्लॉप है। ये दोनों नोएडा स्थित नेशनल सेंटर फॉर मीडियम रेंज वेदर फोरकास्ट और पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रोपिकल मीटरोलॉजी में पहले से मौजूद सिस्टम प्रत्युष और मिहिर की जगह लेंगे। अरका और अरुणिका की मदद से हाई-रेजोल्यूशन वाले मॉडल तैयार किए जाएंगे, जो उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों, भारी वर्षा, आंधी, ओलावृष्टि, गर्म लहरों, सूखे व अन्य मौसम संबंधी अहम घटनाओं से संबंधित भविष्यवाणियों की सटीकता और लीड टाइम को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाएंगे। इनकी मदद से भारत मौसम विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ा खिलाड़ी बनने को तैयार है।

इन प्रणालियों का असर वैज्ञानिक अनुसंधानों के अलावा कई अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ेगा। इनमें कृषि, आपदा प्रबंधन और अंतरिक्ष अन्वेषण सहित विभिन्न क्षेत्रों को लाभ पहुंचाने की विराट क्षमता है। उदाहरण के लिए, बेहतर मौसम पूर्वानुमान हमारे किसानों को फसल प्रबंधन के बारे में बेहतर तैयारी करने में मदद कर सकता है। स्पष्ट है, इन सुपर कंप्यूटरों को स्वदेश में विकसित करके भारत तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। उसका यह कदम वैज्ञानिक नवाचार और तकनीकी उन्नति के वैश्विक केंद्र बनने के देश के व्यापक लक्ष्यों के अनुरूप है।